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नालंदा का ऑक्सीजन ब्राह्मणों ने काटा था खिलजी तो 13वीं शताब्दी में आया

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बिलासपुर, 20 जून 2024। 
इस बार भी मामला इतिहास को अपनी सुविधा अनुसार परोसने का है और बहुत सारे ज्ञानी या कम जानकर ज्ञानी की संवाद में खिलजी ने आग लगा दी को लिख रहे हैं। आज सुबह एक प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र देशबंधु का संपादकीय और प्रथम लेख पढ़ रहा था। पता चल यहां भी गलत तथ्य परोसा गया है। जाने या अनजाने वर्तमान बिहार भारत का एक राज्य जहां गुप्त साम्राज्य के वक्त का नालंदा विश्वविद्यालय खुदाई में निकला लेख कहता है। कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने इसे जला दिया था कहते हैं। ग्रंथालय में 90 लाख किताबें थी अग्निकांड के कारण 3 महीने तक जलती रही। यह अतिशयोक्ति है किताब के जलने की गति के संदर्भ में यह कुछ ज्यादा ही फेंकने वाली बात है। मैं रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र विभाग का पीजी का छात्र था। बौद्ध दर्शन और भारत में उसके विस्तार के विषय में भारतीय दर्शन के ख्यात नाम प्रोफेसर डॉक्टर श्री प्रकाश दुबे जो अब इस धरती को छोड़ चुके हैं ने भारी क्लास में हम सबको बताया बौद्ध धर्म का ब्राह्मणों से प्रतिस्पर्धा अपने नकारात्मक स्तर तक जा चुकी थी। नागार्जुन और शंकराचार्य कटक वितरक इसका एक उदाहरण है। 
नालंदा विश्वविद्यालय को तमाम वित्तीय सहायता जिसमें अनाज भी शामिल है राज आश्रय से ही मिलता था। जब सत्ता में ब्राह्मणों का वर्चस्व बड़ा तो उन्होंने ज्ञान के इस केंद्र को वित्तीय संसाधनों में कटौती कर दी और ज्ञान का यह केंद्र अपने तेज को डूबा गया। डॉ दुबे ने जो कुछ भी कहा उसे लाइब्रेरी में जाकर किसी ने रि चेक किया मुझे नहीं पता लेकिन दर्शनशास्त्र विभाग के नीचे ही एनसीयेंट हिस्ट्री और हिस्ट्री का विभाग था समय निकालकर मैंने स्वाभाविक रुचि के लिए कुछ पढ़ पहले ही दिन यह साफ हो गया कि नालंदा विश्वविद्यालय की गतिविधियां 11वीं शताब्दी में खत्म हो चुकी थी। खिलजी का हिंदुस्तान में प्रवेश 13वीं शताब्दी की घटना है और वो अफगानिस्तान के रास्ते दिल्ली से बंगाल तक गया इस रास्ते में नालंदा नहीं आता पर मुसलमान ने भारतीयों का क्या-क्या जला दिया उसमें दो-चार दर्जन स्थान जोड़ देना अपना कर्म किसी और के सिर थोप देना बेहद आसान है। 
अब बात प्रधानमंत्री के भाषण की उन्होंने मानवीय मूल्य, नैतिक मूल्य, इतिहास, भविष्य शब्दों को बार-बार अपने भाषण में उपयोग किया वे यह भूल गए की पांच छात्रों पर एक शिक्षक का रेसियो रखने वाला नालंदा और वर्तमान में भारत के विश्वविद्यालय जहां छात्रों का भविष्य तदर्थ प्राध्यापको के हिस्से है सेट करो विश्वविद्यालय में हजारों शैक्षणिक गैर शैक्षणिक पद खाली पड़े हैं। जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में बैठे छात्रों को घुसकर पीठ दिया जाता है पीटने वाले इस बार अफगानिस्तान से नहीं आए थे। जेएनयू की कमर को कोई खिलजी नहीं तोड़ रहा विचारधारा पर विश्वविद्यालय स्तर में खुले रूप में चर्चा हो किसी को इनकार नहीं पर यह चर्चा एक हाथ में डंडा रखकर नहीं की जा सकती। 
पटना विश्वविद्यालय के छात्र कई साल से केंद्रीय विश्वविद्यालय घोषणा के लिए आंदोलन करते हैं वह मांग पीएम साहब को दिखाई नहीं देती। नालंदा में प्रवेश नीट यूजीसी परीक्षा से नहीं होता था। वर्तमान भारत में होता है और इन दोनों परीक्षाओं की वास्तविकता की कलाई 4 जून के बाद ही खुली है। एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार 10 साल में इस स्तर की परीक्षाओं का आदर्श स्थापित नहीं कर सके बावजूद इसके मंत्री इस्तीफा नहीं देता। किसी मुद्दे पर कोई इस्तीफा नहीं देता तो 4 जून के बाद गृह मंत्री ने मणिपुर, नीट पर शिक्षा मंत्री और रेल दुर्घटना पर रेल मंत्री ने दे दिया होता।