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सनातन परंपरा का रहस्य, बैकुंठ पहुंचने का मार्ग
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बिलासपुर, 30 जनवरी 2025।
29 जनवरी 2025 हिंदू जिसे अभी सनातन कहा जा रहा है। मूल मंत्र ओंकार पुनर्जन्म में दृढ़ विश्वास रखता है। जब पुनर्जन्म एम मानेंगे तो अगला पड़ाव मोक्ष अर्थात पूर्वजन्म से मुक्ति होता है। परंपरा रहती है "जहां आस्था से ही चलना है तर्क और संदेह नहीं"की चार धाम सहित संगम, कुंभ, देवस्थानों में प्राण उत्सर्ग से सीधे बैकुंठ प्राप्त होता है। जितना ज्ञात है 1947 के बाद ही देख ले 1954 का इलाहाबाद कुंभ, 1986 हरिद्वार का कुंभ, 2015 महाराष्ट्र मंधार देवी, 2008 नैना देवी, रतनगढ़ 2013, इलाहाबाद कुंभ 2013, वैष्णो देवी 2022, हाथरस 2024, तिरुपति 2024 और प्रयागराज जिसे महाकुंभ कहा जा रहा है। 2025 ऐसे दर्जनों नहीं सैकड़ो उदाहरण होंगे जब देव स्थानों में भक्तों को प्राण उत्सर्ग कर बैकुंठ पहुंचने का अभूतपूर्व मौका मिला जो लोग ऐसी स्थितियां बनाते हैं बनने देते हैं उन्हें भी अपूर्ण पुण्य प्राप्त होता है। ऐसी आस्था है जांच आप प्रत्यारोप जब लौकिक है या तो भौतिक शरीर और सांसारिक सत्ता प्राप्ति या विस्थापित करने के लिए तरीके असल सत्ता तो बैकुंठ धाम पहुंचना है।
मेरी अकिंचिन बुद्धि में यह बात अभी भी समझ नहीं आ रही कि बैकुंठ पहुंचने की परम उपलब्धि आम सनातन प्रेमी की ही क्यों है। देवस्थानों पर पहुंचे या पहुंचने वाले धर्माचारीर्यों, मठाधीशों, महामंडलेश्वरो, योगाचारीर्यों, नागा साधुओं को यह बैकुंठ धाम पहुंचने का यह सुअवसर क्यों नहीं प्राप्त होता....
चित्रगुप्त और उनके गुरु यमराज साधारण सनातन धर्मियों को ही यह अवसर क्यों देता है। आज के दैनिक अखबारों को देख कुछ ने तो मोनी अमावस्या के स्थान को विराट रूप में और 30 पुण्य आत्माओं के बैकुंठ प्रस्थान को अति लघु कर दिया यह हमारी पुनर्जन्म की मुक्ति के उपाय की अवहेलना है। जिन्होंने ऐसा किया है चित्रगुप्त अपनी कलम से उसे दर्ज करेंगे।