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कर्म प्रधान ब्राह्मण आदि शंकराचार्य को अपना रोल मॉडल क्यों नहीं मानता

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समाचार -
बिलासपुर, 25 अप्रैल 2023। आदि शंकराचार्य भारत के एक महान दार्शनिक, धर्म प्रवर्तक थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया भगवत गीता उपनिषद और वेदांत सूत्र पर लिखी हुई टिकाएं प्रसिद्ध है। दर्शन में खंडन मंडन की बात करें तो उन्होंने सांख्य दर्शन के प्रधान कारण वाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान, कर्म, सामुच्यवाद का खंडन किया। परंपरा के अनुसार उनका जन्म 508 - 9 ईसा पूर्व तथा समाधि 477 ईसा पूर्व हुई। उनकी उम्र महज 32 वर्ष रही इतनी कम आयु में इतना गहन दार्शनिक ज्ञान विरले ही प्राप्त कर पाते हैं। यहां पर ध्यान देने वाली बात है कि वे सनातन धर्म में भी किसी के अवतार नहीं माने जाते, आज सनातन धर्म और उसकी वर्ण व्यवस्था का पहला वर्ण ब्राह्मण के लिए एक विचारणीय बात है कि वो अपना आदर्श आदि शंकराचार्य को क्यों नहीं मानता यदि ऐसा कर लिया जाए तो सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, अध्यात्म सभी दृष्टि से बेहतर और प्रभावशाली होगा। देश के राजनीतिक दलों ने समय-समय पर अपने रोल मॉडल चुने हैं बदले हैं और अपनी सफलता की लकीरों को लंबा किया है। यहां पर यह कहने की जरूरत नहीं है की रोल मॉडल बदलने के मामले में भारतीय जनता पार्टी सबसे अधिक चालाक निकली। कभी विवेकानंद तो कभी पटेल, कभी अंबेडकर तो कभी क्षेत्रीयता के अनुसार कोई और अभी हाल ही में परशुराम जयंती मना कर हम निकले हैं और हमने देखा कि ब्राह्मण वर्ग का प्रभाव इतना गजब है कि इस दिन किसी अन्य वर्ग, उप वर्ग, जाति या पंथ ने ब्राह्मण वर्ग को बधाई भी नहीं दी। इतने पर भी यदि ब्राह्मण इस बात को नहीं समझता तो वह अपने को बौद्धिक रूप से सक्षम नहीं कह सकता। आदि शंकराचार्य को अपना रोल मॉडल बनाने से बेहतर संदेश जाएगा। सनातन धर्म को यदि इसी वक्त किसी अन्य धर्म में टक्कर दी तो वे मुस्लिम नहीं थे। इतिहास को टटोलने पर पता चलता है की सजा धन धर्म को दार्शनिक स्तर पर सबसे ज्यादा टक्कर बौद्ध धर्म ने दी और शंकराचार्य वो हस्ती है जिसने बौद्ध धर्म के धर्मगुरु नागार्जुन को अपने दार्शनिक तर्कों के सामने पीछे हटने पर मजबूर किया। आज भी साहित्य, धर्म, सत्ता की दृष्टि से देखें तो सनातन धर्म को नव बुद्धिस्ट ही सबसे ज्यादा प्रतिस्पर्धा देते हैं ऐसे में शंकराचार्य की परंपरा को अर्थात उनके ज्ञान, दर्शन, अध्यात्म को आगे बढ़ाना सबसे जरूरी है पर यह कहने में कोई संकोच नहीं की हमारे जागरूक नेता जो साल में एक दिन अपने नाम के आगे पं. लिखते हैं। आदि शंकराचार्य को उस तरह से याद नहीं करते जिस तरह से अवतारों को याद करते हैं जबकि हमेशा याद रखें आदि शंकराचार्य अवतारी पुरुष नहीं थे और उनके ज्ञान, अध्यात्म की बराबरी उस आयु वर्ग में किसी ने नहीं की....।