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चर्च की संपूर्ण संपत्तियां अब इंडियन चर्च ट्रस्ट के अधीन 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश पूरे देश पर है प्रभावशील

बिलासपुर। देश की स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश सरकार ने जाते-जाते चर्च की सभी संपत्ती चर्च ऑफ इंग्लैंड की देख रेख में दे दी। यही कारण था कि धीरे-धीरे इन संपत्तियों का बंदर बांट होने लगा। इंडियन चर्च के वाइस चेयरमैंन व ट्रस्टी मिल्टन लाल और उनके साथ आए अधिवक्ता हजारा ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने सिविल अपील क्रमांक 8800-8801/2013 विनोद कुमार विरूद्ध मंगलदास गोमती में 30 सितंबर 2013 को विस्तृत आदेश प्ररित किया। साथ सिविल अपील संख्या 9491 निर्णय दिनांक 3 मई 2005 का निर्णय पुरे देश पर प्रभावशील है, और अब कही भी किसी भी चर्च की संपत्ती इंडिनय चर्च ट्रस्ट के बिना अनुमति स्वंव्यवहार शून्य है। असल में अधिवक्ता का दावा है कि अब भारतीय चर्च अधिनियम 1927 के अंतर्गत ट्रस्टीयों का निकाय एक पंजीकृत संस्था है तथा भारतीय कंपनी अधिनियम 1913 के अंतर्गत इसाई समाज या निकाय ऐसी संपत्तियों की देखभाल करेगा। भारतीय परिषद में राज्य सचिव इस अधिनियम की उपविधि व नियमों के अंतर्गत अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार उसे ईंडियन चर्च के एक्ट के नियमों के अंतर्गत प्राप्त है। उन्होंने कहा कि भारत के विभिन्न प्रांतों में चर्च की अचल संपत्तियों का क्रय-विक्रय व वित्तिय सवंव्यवहार गैरकानूनी तरीके से हो रहा है जो कि पूरी  तरीके से गलत है। उन्होने कहा कि बिलासपुर, रायपुर, बेमेतरा, मुंगेली सहित कई स्थानों पर चर्च की संपत्तियां गैंर कानूनी तरीके से बेची जा रही है। इस संबंध में राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महा निर्देशक, बिलासपुर-रायपुर आईजी को अवगत कराया गया है। फर्जी तरीके से खरीदी गई, बेची गई चर्च की संपत्तियों के विके्रेता व खरीदार के विरूद्ध नियमानुसार कार्यवाही होगी। 

  • vidhi

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