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भाजपाई कुंभ का जवाब राष्ट्रीय रामायण से दोनों में लोक कहां ?
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समाचार -
बिलासपुर, 1 जून 2023। छत्तीसगढ़ के पुरातन औद्योगिक शहर रायगढ़ में आज से 3 दिन का राष्ट्रीय रामायण महोत्सव हो रहा है। जिसकी थीम अरण्य कांड है इस पर बात करें के पूर्व 2003 के साथ छत्तीसगढ़ की सत्ता में आई भाजपा सरकार ने धार्मिक मामलों के लिए अलग से एक मंत्रालय ही बना दिया था और उस विभाग का मुखिया जिसे बनाया गया उसने स्वयं को महामंडलेश्वर तक घोषित करा लिया। उसी दौरान प्रारंभ हुआ राजिम में कुंभ, देशभर से हर तरह के साधु एकत्र होते थे कुंभ की तर्ज पर कुंभ हो रहा था सरकारी खजाना दान दक्षिणा के लिए खुला था और भिन्न-भिन्न मुद्राओं में उछलते कूदते पानी में अठखेलियां करते रोज लंबे समाचार प्रकाशित होते थे। कहां जाता था की छत्तीसगढ़ की धरा पवित्र हो रही है और धर्म का विस्तार ही जन कल्याण कर देगा। कल्याण किसका हुआ किसने किया जिन्हें पता है वह बताने तैयार नहीं है पर अब राजिम कुंभ की चर्चा किसी अखबार के प्रथम पेज पर नहीं होती क्योंकि ना तो जैकेट मिलता है ना ही फुल पेज का विज्ञापन तो कुंभ का कु लिखना भी गवारा नहीं अब तो चर्चा होती है राम पथ गमन मार्ग की क्योंकि सरकार बदल गई है इसे भारतीय राजनीति का बदलता स्वरूप ( पतन) ही माना जाएगा कि लोक के मुद्दे गौण हते गए और कभी हिंदुत्व तो कभी सनातन राजनीति जनसंवाद पर भारी होती गई। छत्तीसगढ़ में रायगढ़ की पहचान सांस्कृतिक रूप से संगीत समारोह को लेकर है संगीत समारोह में ना जाती होती ना पाती वहां तो मंच पर सूर की साधना होती है। अब लगता है कि रायगढ़ से उसकी यह पहचान गायब होगी और उसका स्थान रामायण महोत्सव ले लेगा। इस कार्यक्रम की जो रूपरेखा दिखाई जा रही है उसके अनुसार उत्तराखंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, असम, हिमाचल प्रदेश, गोवा, कंबोडिया, इंडोनेशिया से भी रामायण मण्डलीयां आ रही है रायगढ़ की समस्याएं रोड, पर्यावरण, भूजल का गिरता स्तर, नदी की घटती धार और उसका स्वास्थ्य आदि पर कोई कार्य उस स्तर पर नहीं हुआ जिस स्तर पर रामायण महोत्सव हो रहा है। पिछले 20 सालों से महा नदी जल विवाद का सकारात्मक परिणाम नहीं निकला नदियां लंबे तालाब के रूप में परिवर्तित हो रही है क्या इन पर आरती कर लेने से जल, जंगल, जमीन बच जाएगी। रायगढ़ क्षेत्र का कोयला सत्याग्रह आंदोलन करने वालों को हमेशा याद आता है पर सरकार उदासीन रहती है छत्तीसगढ़ में कोयले के कारण ना तो जंगल सुरक्षित है ना हाथी ना वनवासी। स्टेज पर अरण्य कांड की थिम बना लेने से ना जंगल बचता ना जल ना जमीन ऐसे में लोक की वास्तविक समस्याओं को हल किए बिना धर्म आश्रित राजनीति कहां तक उचित है इस विषय पर आदिवासी नेता संत कुमार नेताम ने कहा कि राजनीति के केंद्र में जन होना चाहिए संस्कृति, धर्म, विरासत, रंग तभी बचेगा जब हम छत्तीसगढ़ की जल, जंगल, जमीन को बचाएंगे पर अब हालत यह है कि प्रदूषण जो पहले औद्योगिक शहर की पहचान होता था अब अंदर गहरे जंगल तक पहुंच गया है और सरकारें कहीं बागेश्वर तो कहीं मिश्रा तो कहीं महोत्सव कर के वोट की राजनीति साधने में लगे हैं और जन के मुद्दे पेट की आग, शिक्षा, मौलिक अधिकार, वैज्ञानिक सोच सब पीछे धकेला जा रहा है यह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है।