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₹800 में 2 टाइम का खाना, 2 टाइम का नाश्ता और प्रति लाभार्थी 5 कपड़े कलयुग में असंभव कार्य

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बिलासपुर 19 मई 2024।
₹800 में एक मंदबुद्धि का खाना, कपड़े और 6 महीने के लिए ₹15000 में 25 मंदबुद्धि के लिए दवा क्या बाजार की वास्तविक स्थिति को देखते हुए यह संभव है।₹15000 की दवाई 6 महीना चलनी होती है। ₹800 में दो टाइम का खाना, दो टाइम का नाश्ता (सुबह शाम), और सरकार चाहती है कि प्रतिदिन इसी रकम में मंदबुद्धि हितग्राही को फल भी मिल जाए।₹800 की रकम में खाने के साथ कपड़े का खर्च भी जुड़ा है। लगता है घरौंदा यूनिट चलने वाले संस्थाओं के सदस्यों के खाते में सरकार ने 15 लाख रुपए विदेश से काला धन लाकर जमा कर दिया था। 
घरौंदा परियोजना चलने वाले इन दिनो तीन तरफ संकट में गिरे हैं। अनुदान की राशि एडवांस नहीं मिलती अनुदान पहले साल में एक बार और अभी 6 महीने में एक बार मिलती है। इसका अर्थ की परियोजना संचालित करने वाली समिति मंदबुद्धि हितग्राहियों का अनाज, दूध, सब्जी, राशन, कपड़ा अपने वित्तीय संसाधन से खर्च करें। परियोजना में काम कर रहे कर्मचारियों का वेतन का प्रबंध पहले अपने खाते से करें अनुदान तो 6 महीने बाद ही मिलेगा। परियोजना में मंदबुद्धि बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल महत्वपूर्ण विषय है और एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर के लिए 2500 रुपए महीना और हर महीने पांच विजिट होनी चाहिए। पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा कौन एमबीबीएस डॉक्टर है एमडी डॉक्टर है जो ढाई हजार प्रति माह में 25 लाभार्थियों को स्वयं संस्था में आकर स्वास्थ्य परीक्षण करके जाएगा। हम यह आंकड़े इसलिए बता रहे हैं क्योंकि इन दोनों कोपल वाणी नाम की एक एनजीओ ने घरौंदा यूनिट में चल रही लापरवाहियों के आधार पर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में लगाई है। इस परियोजना की एक और शर्त बड़े शहरों के लिए अचंभित करने वाली है। परियोजना स्थल 10000 स्क्वायर फीट में होना चाहिए वह भी निचली मंजिल पर , ऊपर अन्य कोई भवन नहीं होना चाहिए। क्या इन दोनों 3 बीएचके का मकान भी 10000 स्क्वायर फीट में भी बनता है। ऐसे में परियोजना के व्यवहारिक समस्याओं को समझे बिना इसका संचालन संभव नहीं है। घरौंदा परियोजना के रायपुर सेंटर में साल भर के भीतर 10 मौतें हुई है। पर रायपुर सेंटर की खबरें अखबार की सुर्खी नहीं है।