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मस्तूरी निस्तार पत्र में दर्ज भूमि को चर रहा भू-माफिया

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समाचार :-
बिलासपुर, नवंबर 28। 
 
5 साल से मस्तूरी क्षेत्र भू माफियाओं की पहली पसंद बन गया है। मोपका, खमतराई, बहतराई, में नहर जमीन, कब्रिस्तान, मुक्तिधाम, छोटे झाड़ के जंगल, गोचर, पट्टे की जमीन को समाप्त कर लेने के बाद जिले के भूमाफिया मस्तूरी की ओर घूम गए। जो लोग मस्तूरी ब्लॉक का भौगोलिक लेखा जोखा रखते हैं उनके लिए यह याद दिलाने की जरूरत ही नहीं कि पिछले 5 साल में इस क्षेत्र का कायाकल्प किस तरह हुआ है। 
शहर समाप्त होते हैं 3 बड़े उच्च शिक्षा केंद्र साथ में लगा हुआ औद्योगिक क्षेत्र जाने का मार्ग, रायपुर - चांपा जांजगीर हाईवे, मल्हार और शिवरीनारायण जैसे स्थानीय परंपरागत तीर्थ स्थान, मल्हार का नवोदय विद्यालय इस क्षेत्र की विशिष्ट पहचान है यही कारण है कि खनिज, पानी, नहर से संपन्न होने के कारण भू मफिया यहां सक्रिय हो गए। अब तो स्थिति यह है कि बरसों पुरानी पत्थर की खदान को राखड से भरकर उसे छोटे प्लाटिंग में तब्दील कर बेचा जा रहा है। राखड से पत्थर खदान को भरने की अनुमति राजस्व अधिकारी दे रहे हैं, पर्यावरण विभाग सो रहा है। राजस्व अधिकारी ही निस्तार पत्र में दर्ज जमीन को खरीदी बक्री का विषय बना रहे हैं अभी हाल ही में ब्लॉक मस्तूरी का ग्राम दर्रीघाट शासकीय जमीन की हेराफेरी का केंद्र बनकर उभरा है। 
एक से ज्यादा बार माननीय कलेक्टर महोदय को शिकायत हुई ग्राम के ग्राम के दर्जनों नागरिक कुछ ही दिन पूर्व स्थानीय प्रशासन मुर्दाबाद का नारा लगाते हुए ज्ञापन देकर गए। शासकीय मुआवजा वितरण में विशेष हेरफेर की गई है। ग्राम दर्रीघाट खसरा नंबर 22 में मुआवजा वितरण में राजस्व अधिकारियों ने काफी गड़बड़ किया, 1 एकड़ 40 डिसमिल का मुआवजा दिया पर खाते से 80 डिसमिल ही काटा इस तरह नुकसान दो तरफा किया गया पहले शासन के खजाने को क्षति पहुंचाई। मुआवजा ज्यादा दिया खाते से जमीन की कमी कम की और बाद में बचत जमीन को मां बेटे के बीच बंटवारा कर दिया। यहां पर यह कहना भी जरूरी है कि जिस जमीन का मुआवजा दिया जा रहा है वह अधिकार अभिलेख में नर्मदा प्रसाद के नाम से दर्ज है जिसकी जाति ब्राह्मण है। 1972 में इस जमीन का नामांतरण मात्र स्टांप पेपर के आधार पर हुआ। कोई नहीं जानता कि जो जमीन अधिकार अभिलेख में ब्राह्मण जाति के नर्मदा प्रसाद के नाम पर थी उसका मालिक गुप्ता कैसे बन गया क्योंकि जितनी बार भी गुप्ता परिवार ने फावती नामांतरण कराया, एक बार भी नर्मदा प्रसाद दुबे से क्रय वाली रजिस्ट्री प्रस्तुत नहीं की, लाल खदान से मस्तूरी तक और लावर होते हुए दर्रीघाट तक कोई भी व्यक्ति घूम कर देख ले दाएं और बाएं और अवैध प्लाटिंग का धंधा फिर चढ़कर चल रहा है। न्यूनतम ₹700 वर्ग फुट से लेकर 14 सौ वर्ग फुट तक के प्लॉट उपलब्ध हैं। किसी भी केनोपी पर रुक कर पूछ ले किसी के पास कॉलोनाइजर लाइसेंस, पीएनसी या अन्य कोई दस्तावेज नहीं है । 
कहा जाता है कि मस्तूरी तहसील में हाल ही में पदस्थ एक तहसीलदार को इसलिए लाया गया कि वह पूर्व में सकरी तहसील में अवैध कॉलोनाइजर्स का पसंदीदा अधिकारी था याद रखें सकरी क्षेत्र में ही सबसे अधिक कोटवारी भूमि, गोचर भूमि, निस्तार पत्र की भूमि गायब है।