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हमने बनाया था हम ही संवारेंगे जुमला मात्र
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बिलासपुर, 22 जनवरी 2025।
छत्तीसगढ़ राज्य के राजनीतिक सामाजिक परिदृश्य में हाल ही में कुछ प्रमुख घटनाएं यह बताती है कि हमने बनाया है हम ही संवारेंगे का ध्येय वाक्य केवल जुमला है। राज्य के मुख्य सचिव रहे ढ़ाड साहब को ईडी ने आबकारी घोटाले का मास्टरमाइंड बताया..... उनके पारिवारिक संपन्नता आईएएस का करियर यह बताता है कि शिक्षा का गलत इस्तेमाल साध्य और साधन दोनों की पवित्रता को नष्ट करता है। इसी कांड के दूसरे अभियुक्त, लगातार विधायक बन रहे कवासी लखमा जो स्वयं को अनपढ़ बता रहे हैं और इसी तर्क पर अपनी बेगुनाही मीडिया के सामने जाहिर कर रहे हैं। उनका भी साध्य और साधन अनपढ़ होने के बावजूद वही है जो मुख्य सचिव ढ़ाड़ साहब का है। भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक दौर था जब यह कहा जाता था कि नया आईएएस अधिकारी चार-पांच साल तो ईमानदार रहता है। पर यह सत्य नहीं है।
पैसा जो कुछ न कर आए काम है इसी सप्ताह कोरबा सत्र न्यायालय ने तीन-चार अभियुक्त को बलात्कार हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा सुनाई है। जिसकी हत्या हुई वे पहाड़ी कोरवा जनजाति के हैं। यह परिवार जिनके यहां नौकरी करता था वेतन और चावल मजदूरी के रूप में पूरा नहीं मिलता था अतः काम छोड़कर जा रहा था। जो काम देने वाला परिवार था उसी के सदस्यों ने हत्या भी की, हत्या पूर्ण बलात्कार भी की गवाह की भी हत्या कर दी। यहां भी पैसा ही कारण है। हम फिर कहते हैं कि हमने बनाया है हमने बनाया है हम ही संवारेंगे जुमला मात्र है। 25 साल से यह होता नहीं दिख रहा है। 2001-2003 में छत्तीसगढ़ का स्थापना खर्च 17% से नीचे था। ऐसा करने में उसे समय के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री कामयाब रहे। 2003 के बाद सत्ता में और पूरी राजनीति में पैसे का जबरदस्त प्रवाह आया विधायक बनते ही दल बदल ना हो गाड़ियां भी बांटी गई जबकि उससे पूर्व में कैबिनेट मंत्री को भी उसे समय की लग्जरी टाटा सफारी उपलब्ध नहीं थी। यह गौरव केवल विधानसभा अध्यक्ष के पास था। और अब विधानसभा अध्यक्ष को छोड़ो नगर पंचायत, नगर पंचायत के अध्यक्ष और गांव के सरपंच भी लाखों की एसयूवी में जन सेवा करते दिखाई देते हैं। यहां तक की निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के समर्थकों को भी महंगी गाड़ियां रखने में कोई दिक्कत नहीं है। तो राजनीति में पैसा इतना ज्यादा आ गया है कि उसे पाने के लिए इच्छुक व्यक्ति साधन की पवित्रता पर बात ही नहीं करता ...।