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हवाबण हरडे की तर्ज पर हुआ कांग्रेस संभागीय पदाधिकारी सम्मेलन

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समाचार-
बिलासपुर, 7 जून 2023। छत्तीसगढ़ के दोनों राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा अब पूरी तरह से चुनावी मोड पर आ गए हैं उठना, खाना, सोना, नहाना सब कुछ चुनाव से प्रेरित है। ऐसे में यदि सत्ताधारी दल अपने संभागीय पदाधिकारियों का सम्मेलन बुला ले तो दावेदारों की तो निकल पड़ती है। बस यही हुआ बिलासपुर के सिम्स ऑडिटोरियम में, बिलासपुर संभागीय मुख्यालय है इसके अंतर्गत जितने जिले आते हैं उसमें कुल मिलाकर 24 विधानसभा सीटों होती है जिसमें से 12 पर कांग्रेस काबिज़ है। इसे कांग्रेस का खुल्ला लोकतंत्र कहेंगे कि सीट कांग्रेस की जीती हुई हो या हारी हुई टिकट का दावेदार हर सीट पर है ऐसे में 24 विधानसभा सीट पर 4 दावेदार भी माना जाए तो 96 दावेदार हो जाते हैं एक दावेदार 100 लोगों को भी लेकर आए तो शहर में भीड़ का अंदाज लगाया जा सकता है बस यही तो कांग्रेश की ऊर्जा है करना धरना कुछ है नहीं, रणनीति बनानी नहीं है, विषय सूची बनानी नहीं है पिछली बार क्यों जीते क्यों हारे पिछली बार और इस बार में क्या अंतर होगा। 4 साल में क्या खोया क्या पाया से कोई सरोकार नहीं । बस भूपेश है तो भरोसा है यह वैसे ही है जैसे मोदी है तो मुमकिन है। असल में यह राजनीति का उत्थान नहीं पतझड़ है और विवेक हीनता की पराकाष्ठा है ऐसे में केवल इस भरोसे की मतदाता भाजपा की नीति रीति से चिड रही है, कांग्रेस को जीता दे की तर्ज पर एक-एक सीट पर 4 नहीं 8-8 दावेदार पैदा हो जाएंगे। और यहीं से प्रारंभ होगा कांग्रेस की हार का सिलसिला जिसे इस बात पर भरोसा ना हो वह कांग्रेस के इतिहास को उठाकर देख ले के भीतरघात, खुलाघाट कांग्रेस में खूब होता है और जयचंद ढूंढने कहीं दूर नहीं जाना पड़ता। इस पार्टी में वह शाख पर नहीं पत्ते पत्ते पर बैठा होता है। बिलासपुर संभाग में कांग्रेस के पास एक भी ऐसा प्रभावशाली नेता नहीं है जिसे सुनने के लिए नागरिक अपने आप चल कर आ जाए नागरिक को छोड़िए पार्टी के कार्यकर्ता ही सुनने नहीं आते जो भीड़ आती है वह कैसे लाई जाती है इस पर जुबान खोलना उचित नहीं लगता। 
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी बदलने के बाद साफ दिखाई देता है कि यह त्रिभुज बन गया है। कौन किसे कब हटाने की खबरें शुरू करवा देता है और उसे रुकवाने के लिए जो ऊर्जा लगती है वह पार्टी की क्षति हैं जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा सकारात्मक ऊर्जा नहीं नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा। इस बार तो रूठे हुए कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए लाल बत्ती का झुनझुना भी नहीं है और इस पार्टी में अनुशासन का डंडा तो चलाया ही नहीं जा सकता। बड़े नेता यह मानकर चल रहे हैं कि दिल्ली से प्रियंका गांधी एक ओर मध्यप्रदेश संभालेगी तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ का कल्याण भी करेंगी, छत्तीसगढ़ की 23 साल की राजनीति में कांग्रेस पार्टी में वर्तमान में पार्टी के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके हाथ के इशारे को कार्यकर्ता मान जाए ऐसे में भेड़ चाल सराबोर ऊर्जा के साथ सत्ता की मद में चुनाव की रणभूमि पार पाना कठिन होता जाएगा। 

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