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थाना परिसर में किसने लगाए प्रदेश के मुखिया के खिलाफ नारे

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समाचार-
बिलासपुर, 6 जून 2023। 26 मई मस्तूरी के तहसील परिसर से युवा कांग्रेस के दो गुटों का प्रारंभ हुए झगड़े ने सिविल लाइन थाना परिसर में प्रदेश के मुखिया मुर्दाबाद तक का नारा लगवा दिया। ये नारे क्या संकेत देते हैं, इन नारों को सुनने के बाद शहर के उन नेताओं ने खामोशी क्यों अख्तियार कर ली जो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के नाम पर अपनी राजनीति कर रहे हैं, जिनके हर बैनर पोस्टर में पहली फोटो मुख्यमंत्री की होती है जब 4 जून को भरी दोपहर में जब सिविल लाइन थाने का घेराव हुआ और सत्ता में बैठे नेताओं के अपयश के नारे लगे तब या उसके बाद कांग्रेस के एक भी नेता ने इस घटना की निंदा की जिनके सामने ये नारे लगाए गए उनके विरुद्ध कार्यवाही की बात की या यही कांग्रेसी संस्कृति है और इसे कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र कह कर आगे बढ़ लिया जाए। इसके पूर्व जब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता नहीं थी तब कोनी थाना परिसर में पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपने हाईकमान को अपशब्द कहे थे और वह वीडियो जमकर वायरल हुआ था। कोनी की चिंगारी सिविल लाइन तक आ गई सिविल लाइन थाना का इतिहास है जब कांग्रेस सत्ता में नहीं थी तब इसी थाने की पुलिस पर कांग्रेस भवन में घुसकर पार्टी कार्यकर्ता और नेताओं को पीटने का आरोप लगा था। दंडाधिकारी जांच भी चल रही है परिणाम कभी निकलेगा या नहीं, नहीं पता लेकिन यह जरूर पता है कि इसी थाने के एक अधिकारी ने कोविड आपदा अधिनियम के तहत निर्वाचित कांग्रेसी विधायक बिलासपुर के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर ली थी। कांग्रेस में नेताओं का मान अपमान उसके पदाधिकारी कार्यकर्ता ही करते रहते हैं। याद करें शहर विधायक को थाने में बैठकर अपमानजनक टिप्पणी करना जिसकी जांच समिति बनी जांच समिति ने रिपोर्ट रायपुर भेज दी परिणाम आज तक पता नहीं। यदि उसी वक्त पार्टी हाईकमान ने कठोर निर्णय लिया होता तो किस व्यक्ति की हिम्मत होती थाना परिसर में प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ नारा लगाने की, ..... 
कांग्रेस के पास दो ही विकल्प हैं थाना परिसर में जो भी नारे लगा रही है उसका कांग्रेस से कोई संबंध नहीं है कह कर पल्ला झाड़ा या नारे लगाने वालों का कांग्रेस से संबंध है तो तुरंत कार्यवाही की जाए। क्योंकि जो भीड़ सिविल लाइन थाने आई थी वह भीड़ युवा कांग्रेस के पदाधिकारी के समर्थन में आई थी ऐसे में पार्टी स्तर पर जांच जरूरी है कि जो समुदाय विशेष सिविल लाइन थाने में खड़ा है उसका रुख पार्टी के प्रति कैसा है। पार्टी हाईकमान को यह भी देखना चाहिए कि ऐसी ही गतिविधि पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र तखतपुर में भी हुई और उस समय राजधानी तक जाकर पत्रकार वार्ता की गई जिसमें स्पष्ट कहा गया कि चिन्हित वर्ग विशेष को यदि टिकट दिया गया तो तो समुदाय कांग्रेस का काम नहीं करेगाकरेगा। अब शहर में कल कांग्रेस के बड़े नेता आने वाले हैं उनके सामने यह बात कौन उठाएगा की शहर के भीतर एक थाना परिसर में प्रदेश के मुखिया के खिलाफ ही नारे लगते हैं और प्रशासन चुप बैठ जाता है। क्या जिला स्तर पर एसबी, विशेष शाखा, एलआईबी और तमाम सूचना तंत्र इतना ठल्हा हो गया है की मस्तूरी 26 मई का युवा कांग्रेस का झगड़ा और उसके प्रभाव का अंदाज नहीं था या उसे यह नहीं पता था की मॉल के झगड़े के ठीक पूर्व कांग्रेस भवन में दोनों गुटों के बीच समझौता वार्ता विफल कैसे हुई झगड़े के बाद पूरे मामले को कैसे मुख्यमंत्री विरोध तक रच दिया गया, और यह षड्यंत्र किसने किया। थाने के भीतर प्रदेश के मुखिया के विरोध में नारे लगे तो इसे मुखिया का कमजोर होना माना जाए या पार्टी का अंदरूनी कलह दोनों ही स्थिति में इसे पार्टी का बिलासपुर में कमजोर होना माना जाएगा जिसकी जिम्मेदारी जिला स्तर के पदाधिकारियों की बनती है। 
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