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आम आदमी के खून पर खड़ा हुआ भारतीय अरबपतियों का साम्राज्य

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समाचार -
बिलासपुर, 19 मार्च 2023। मुंबईया मसाला फिल्म अब कम लोगों को याद होगी पिक्चर का नाम है "साथी" हीरो कथानक के प्रारंभ में दो हैं। तेज सफलता का प्रारंभ दोनों एक साथ करते हैं। गलती गति के कारण दुर्घटना के परिणाम स्वरूप एक को ब्रेक लगाकर रिवर्स में जाने की इच्छा होती है दूसरा तैयार नहीं होता. .... हमारे यहां इस समय सत्तारूढ़ दल के दोनों हीरो में से एक को भी ना लग रहा है ना लगेगा कि जिस गाड़ी का स्पीड वह लगातार बढ़ा रहे हैं उसमें दुर्घटना, चेतावनी सब हो रहा है पर ब्रेक नहीं मारना है, जबकि गति पर जितना शोध होता है उतना ही शोध ब्रेक प्रणाली पर भी होता है पर भारत की वर्तमान सरकार ने ब्रेक पर अनुसंधान बंद कर दिए हैं। अब समझे हम साथी फिल्म की कहानी को याद क्यों कर रहे हैं। 
हमारे देश की बैंकिंग प्रणाली पिछले 9 वर्ष में पूरी तरह करप्ट हो चुकी है सरकारी दबाव में फर्जी तरीके से बैलेंस शीट ठीक की गई है और आम आदमी का खून चूस कर देश के अरबपतियों को पाला जा रहा है। बैंकिंग सेक्टर के जानकार यह जानते हैं कि बैंक में रखा हुआ पैसा का 63% बचत आम आदमी की है। कारपोरेट क्षेत्र से सिर्फ 22% जमा बैंकों में पहुंचती है। भारतीय स्टार्टअप कंपनियों को सिलीकान वैली डूबने से भी फर्क नहीं पड़ा जबकि स्टार्टअप का 8200 करोड रुपए वहां जमा था इसमें से मात्र 1000 करोड़ रुपए ही बीमीत था । नियम से 7000 करोड रुपए डूबा जाना था पर अमेरिकन सरकार ने पूरा 8200 करोड रुपए स्टार्टअप का दिया और किसी ने लाइन भी नहीं लगाई। अब हम यथार्थ में देखें भारत के तीन बैंक यस बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक, महाराष्ट्र पंजाब सहकारी बैंक जब डूब रहे थे तो आम जनता बैंकों के बाहर कितनी लंबी कतार में खड़ी थी क्या सरकार ने वहां के खाताधारकों का आना पाई वापस किया हमारे यहां तो नियम बन गया बचत खाता धारक हो, एफडी हो बीमीत रकम 500000 होगी आपका 2500000 की एफडी होगी तो भी ₹500000 मिलेगा अगर 300000 की एफडी होगी तो 300000 पूरा मिल जाएगा ऐसे में जिस दिन बैंक दिवालिया होंगे कोई अरबपति नहीं फसेगा फसेंगे केवल वह आम मध्यमवर्गीय परिवार जो अपनी बचत रकम बैंक में रखकर निश्चिंत रहना चाहते हैं। आरबीआई ने बैंकों को सावधान किया है क्रिप्टोकरंसी भारतीय बैंकों का जो नुकसान कर चुकी है उसकी भरपाई नहीं हो सकती हमारा शेयर बाजार पिछले 3 महीने में 33% तक टूटा है सेंसेक्स 5.5% टूटकर चल रहा है। बजट में बैंकिंग सेक्टर से सरकार को जो डिविडेंड मिलना था वह यात्रा 73948 करोड़ बताए गए पर असल में 40993 करोड मिला 50000 करोड़ कम अब कल्पना करने की असलियत कहां पर है। इन दिनों विलफुल डिवाइडर की बात नहीं होती यह वह डिफाल्टर हैं जो पैसा देने की स्थिति में तो है पर देना नहीं चाहता एक नाम ही पर्याप्त है मेहुल चोकसी एसबीआई में विलफुल डिफाल्टर की संख्या 1883 है पीएनबी में 2144, बैंक ऑफ बड़ौदा में 2203, यूनियन बैंक में 1743, बैंक ऑफ इंडिया में 340, आईडीबीआई में 335 कुल मिलाकर 15778 अरबपति भारत के बैंकों से कर्जा लेकर अब चुकाना नहीं चाहते। असल में यह कर्जा आरबीआई नोट छाप कर तो नहीं देती यह पैसा आम जनता के बचत खातों से ही जाता है जिसे डकार अब अरबपति वापस नहीं करना चाहते और इन्हीं अरबपतियों का 1000000 करोड़ का कर्जा मोदी सरकार ने रिटर्न ऑफ किया और फर्जी तरीके से बैलेंस शीट को ठीक कर के एनपीए 5.41 पर लाया गया केवल एसबीआई का ही इस साल 200000 करोड़ का कर्जा रिटर्न आफ किया गया, पंजाब नेशनल बैंक का 67000 करोड रुपए का कर्जा रिटर्न ऑफ किया गया, भारत में कुल एमएसएमई की संख्या लगभग 6600000 है और इसमें केवल मात्र 200000 करोड रुपए का इन्वेस्टमेंट है। जबकि इतना घाटा तो शेयर मार्केट में रोज लगता है सरकार खरबपति अदानी को बचाने के लिए सब कुछ दाव पर लगाती है पर जिस एमएसएमई से रोजगार पैदा होता है उसके लिए उसके पास कोई प्लान नहीं होता यदि प्लान है तो वह केवल दिखावटी है उस प्लान का असली मलाई खरबपति ही खाते हैं। 9 साल में बैंकों का जो राजनीतिकरण हुआ उसने पूरी तरह से आम आदमी का खून चूस कर खराब पतियों का साम्राज्य खड़ा किया है और भारत के बैंक असल में कंगाल हो चुके हैं।