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जाने कृषि कानून में क्या हुआ है बदलाव
- By 24hnbc --
- Thursday, 10 Dec, 2020
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसान दो सप्ताह से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। नए कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच चल रही तनातनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार जारी है। किसानों की मांग है कि सरकार इन तीनों कानून को वापस ले। सरकार कानून वापस लेने की बजाए सिर्फ संशोधन का प्रस्ताव दे रही है। इसी बीच किसान संगठनों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया है। सरकार और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच वार्ता का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। दरअसल सितंबर के लोकसभा सत्र में केंद्र सरकार किसानों से जुड़े तीन बिल लेकर आई और विरोध के बावजूद ये बिल कानून बन गए हैं। आइए जानते हैं कि पहले क्या कानून थे, नए कानूनों में क्या बदलाव हुआ और क्यों हो रहा है इनका विरोध आवश्यक वस्तु (संशोधन) 2020 पहले क्या कानून था?
1955 के आवश्यक वस्तु कानून के तहत 'आवश्यक वस्तुओं' की बिक्री, उत्पादन, आपूर्ति आदि को आम जनता के हित के लिए नियंत्रित किया जाता है। इस कानून के तहत ये ध्यान दिया जाता है कि उपभोक्ताओं को सही कीमत पर चीजें मिल रही हैं या नहीं। केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह राज्यों को स्टॉक लिमिट तय करने और जमाखोरों पर नकेल कसने के लिए कहे ताकि चीजों की आपूर्ति प्रभावित न हो और दाम भी ज्यादा ना बढ़े। कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं जिसके बिना जीवन व्यतीत करना मुश्किल होता है। ऐसी चीजों को सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु की सूची में डाल देती है।नए कानून में क्या बदलाव हुआ?
इस कानून में अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर करने का प्रावधान है। ऐसा माना जा रहा है कि कानून के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगाक्योंकि बाजार में स्पर्धा बढ़ेगी। 1955 के इस कानून में संशोधन किया गया है। क्यों हो रहा है विरोध?
किसान संगठनों का आरोप है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को होगा। नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण लगाएंगी। ये स्थितियां अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा हो सकती है।नए कानून में उल्लेख है कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी जब सब्जियों और फलों की कीमत 100 फीसदी से ज्यादा हो जाएगी या फिर खराब ना होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक का इजाफा होगा।किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) 2020पहले क्या कानून था?एपीएमसी यानी एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइव स्टॉक मार्केट कमेटी को सरल भाषा में मंडी कहते हैं। यहां उत्पादन बेचने पर राज्य सरकारें व्यापारियों से टैक्स वसूलती हैं और मंडियों का संचालन करती हैं। सरकारी खरीद भी इन मंडियों से ही होती है। प्रत्येक राज्य में इनसे जुड़ा एपीएमसी एक्ट भी होता है। नए कानून में क्या बदलाव हुआ?
इस कानून में एक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण का प्रावधान किया गया है, जिसमें किसान और व्यापारी विभिन्न राज्य कृषि उपज विपणन विधानों के तहत अधिसूचित बाजारों के भौतिक परिसरों या सम-बाजारों से बाहर निपुण, पारदर्शी और बाधा रहित एक राज्य से दूसरे राज्य और अपने राज्य में व्यापार वाणिज्य तथा किसानों की उपज को बढ़ावा देने के लिए प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार चैनलों के माध्यम से किसानों की उपज की खरीद और बिक्री लाभदायक मूल्यों पर करने से संबंधित चयन की सुविधा का लाभ उठा सकेंगे। आसान भाषा में समझें, तो इस कानून के तहत किसान एपीएमसी यानी कृषि उत्पाद विपणन समिति के बाहर भी अपने उत्पाद बेच सकता है। इस कानून में बताया गया है कि देश में एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाएगा कि जहां किसानों और व्यापारियों को मंडी के बाहर फसल बेचने का आजादी होगी। प्रावधानों में राज्य के अंदर और दो राज्यों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने की बात कही गई है। साथ ही मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने की भी बात कही गई हैं।क्यों हो रहा है इसका विरोध?किसान संगठन किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक का ज्यादा विरोध कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि वह मंडियों से खरीद पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देना जारी रखेगी। लेकिन किसानों का कहना है कि जब सरकार पूरे देश में खरीद-बिक्री का नियम ला रही है, तो निजी क्षेत्र में भी न्यूनतम समर्थन मूल्य अनिवार्य क्यों नहीं कर रही है। कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020
पहले क्या कानून था?इसके तहत पहले भी किसान और व्यापारियों के बीच एग्रीमेंट होता था, लेकिन कोई ऐसा कानून नहीं था कि सबसे पहले शिकायत कहां करें। यानी किसान और व्यापारी थाने में भी शिकायत कर सकता था या सीधेकोर्ट भी जा सकता था। नए कानून में क्या बदलाव हुआ?
नया कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को वैधता प्रदान करता है। कोई विवाद होता है तो एसडीएम, फिर कलेक्टर और उसके बाद कोर्ट में शिकायत होगी। कानून के मुताबिक किसान को फसल की डिलीवरी के समय ही दो तिहाई राशि का भुगतान करना होगा और बाकी का पैसा 30 दिन के अंदर देना होगा। इसमें यह प्रावधान भी है कि खेत से फसल उठाने की जिम्मेदारी व्यापारी की होगी, अगर कोई एक पक्ष समझौते को तोड़ेगा तो उस पर पेनल्टी लगाई जाएगी।इसमें कृषि समझौतों पर राष्ट्रीय ढांचे के लिए प्रावधान है, जो किसानों को कृषि व्यापार फर्मों, प्रोसेसरों, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ कृषि सेवाओं और एक उचित तथा पारदर्शी तरीके से आपसी सहमत लाभदायक मूल्य ढांचे में भविष्य में होने वाले कृषि उत्पादों की बिक्री तथा इसने जुड़े मामलों या इसके आकस्मिक मामलों में जुड़ने के लिए किसानों को संरक्षण देगा और उनका सशक्तिकरण भी करता है।इस कानून का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी फसल की निश्चित कीमत दिलवाना है। इसके तहत कोई किसान फसल उगाने से पहले ही किसी व्यापारी से समझौता कर सकता है, इस समझौते में फसल की कीमत, फसल की गुणवत्ता और कितनी मात्रा में और कैसे खाद का इस्तेमाल होगा जैसी बातें शामिल हैं।क्यों हो रहा है इसका विरोध?
इसका विरोध इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जानकारों का कहना है कि विवाद निराकरण का तरीका गलत है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिकायत निपटाने की समयसीमा तय नहीं की गई है। किसान इतने स्मार्ट नहीं हैं कि खुद केस लड़ सकें जबकि कंपनी अपना वकील खड़ा करके किसानों को उलझा सकती है।