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आंदोलन के मर्म को समझना ही नहीं चाहता केंद्र

 

 

24HNBC किसान आंदोलन के चक्का कार्यक्रम के दिन यानी 6 फरवरी को एक खास बात यह रही कि प्रशासन ने उन जगहों पर भी शहर को लगभग जाम कर दिया, जिन्हें किसान संगठनों ने जाम से छूट दी थी। इनमें एक प्रमुख जगह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है। शहर का नजारा पुलिस व्यवस्था और जगह- जगह लगाए गए बैरिकेड्स के कारण आम हड़ताल जैसा बना रहा। उधर उन वामपंथी संगठनों के समर्थन कार्यक्रम में लगभग दस गुना बल तैनात किया गया, जिनकी बैठकों में सौ- सवा सौ से ज्यादा लोग कभी नहीं आते। नतीजा हुआ कि उस छोटी सभा का टीवी चैनलों पर सीधा प्रसारण हुआ, जिसमें खुद पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक लगभग लगभग 60 लोग थे, जिन्हें हिरासत में लिया गया। तो ये उदाहरण हैं कि सरकार किसान आंदोलन से कैसे निपट रही है। मगर यह सत्ताधारियों को शायद कोई बताने वाला नहीं है कि इन तौर- तरीकों से वह आंदोलन को अधिक चर्चित और अधिक लोगों के मानस तक पहुंचा रही है।6 फरवरी का चक्का जाम पूरे अंतरराष्ट्रीय मीडिया मे बड़ी खबर बना। एक पॉप स्टार के ट्विट पर सरकार ने जो प्रतिक्रिया दिखाई, उसका परिणाम यह हुआ है कि उस स्टार और उससे संबंधित भावना को व्यक्त करने वाले सेलेब्रेटीज का किसान आंदोलन के पक्ष में ट्विट करने का सिलसिला चल पड़ा है। इस रूप में देखें तो शायद यह पहला मौका है, जब किसी मुद्दे पर नैरेटिव सत्ता पक्ष के हाथ से निकल गया है। उसके लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि मेनस्ट्रीम मीडिया और बीजेपी आईटी सेल के दायरे में रहने वाले लोग अभी भी सरकारी कहानियों पर यकीन कर रहे हैं। लेकिन दीर्घकाल में यह कितनी राहत की बात रहेगी, अभी कुछ कहना मुश्किल ही है। सत्ता पक्ष के लिए यह समझने की बात है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में जो लाखों लोग किसान पंचायतों में जुट रहे हैं, वे भी उसी दायरे के लोग रहे हैं। लेकिन आज उनकी बातों में सरकार और सत्ताधारी पार्टी के लिए गुस्सा उबलता दिखता है। दमन के सरकारी तौर-तरीके ने इस गुस्से को और भड़काया है।