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देश हमाम में कब बदला पता ही नहीं चला
- By 24hnbc --
- Saturday, 22 Mar, 2025
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बिलासपुर, 22 मार्च 2025।
एक समय भारतीय जनता पार्टी के नेता एकात्मक मानव वाद की बात करते थे। स्वयं को इस दर्शन के प्रति समर्पित बताते थे पर अब इन नेताओं की जबान पर एक ही राष्ट्र धर्म नफरत सजी हुई है। सत्ता की भूख औरंगजेब और अशोक को एक समान और अभी के राजनैतिक दलों के लिए भी यही एक मात्र शर्त है। हम ही देश है हिंदू धर्म पहले कब खतरे में था नहीं पता पर अब है। करण जहरीले पानी को भी अमृत कहा जाए और देश की आबादी का 60 करोड़ व्यक्ति उसमें स्नान करके अपना पाप धोए और पुण्य कमाएं अर्थ एक ही है। हमने अपनी वैज्ञानिक सोच ही नहीं सामान्य बुद्धि को भी नफरत की राजनीति के कारण खो दिया है।
भाषा के मामले में हम दक्षिण के राज्यों से बहुत पीछे हैं। सामान्यतः हिंदी भाषी देशों मे एक या दो भाषा का ज्ञान होता है। आमतौर पर पहले हिंदी और काम चलाऊ अंग्रेजी जबकि दक्षिण के आंध्रप्देश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में तीन से चार भाषाओं की जानकारी आम बात है। फिर भी हम दक्षिण भारत को अपने से कमजोर मानते हैं। आज 22 मार्च को जल दिवस है। देश की कुल नदियों का 49% नदी दूषित हो चुकी है। 1961 से ही भारत पानी के संकट वाले देशों में शामिल हो चुका है। नदियों के प्रति ढेर सारी धार्मिक आस्थाओं के बावजूद हमारी नदियां साफ नहीं है। हमने भू सतह के निचे के पानी को भी दूषित कर लिया है। आज छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार की खबर है। और नियंत्रित ब्लास्टिंग के कारण बलौदाबाजार जिले का भूजल गायब हो रहा है। इस जिले में औद्योगिक कारण व भी खनिज यहां के लिए दुख का कारण बन रहा है। इस जिले में भी एक धार्मिक विवाद ने हजारों की संख्या में नागरिकों को एकत्र किया और सैकड़ो जेल गए। और अभी भी जा रहे हैं। पर पानी के लिए एक दर्जन लोग इकट्ठे होकर औद्योगिक प्लांट के लिए खड़े नहीं होते हैं। पानी सबका मर गया है। रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए ना उबरै, मोती मानस चून। इस पानी के चक्कर में दिल्ली हाई कोर्ट को जस्टिस वर्मा का धन बाहर आ गया। पर पानी तो कब का मर चुका है। अन्यथा जस्टिस साहब स्वयं ही बाहर आकर बता देते की जो धन अग्नि पानी के मेल से बाहर आया वह किसका है और कैसे हैं। कुछ साल पूर्व न्यायपालिका के न्यायाधीशों का पानी जाग गया था तो उन्होंने उस मीडिया को बुलाया था जिसका पानी मार नहीं था पर अब सब की नाक कटी हुई है। इसके लिए हिंदी जिन्हें अच्छी नहीं लगती उसी का मुहावरा है। हमाम में सब नंगे तो अर्थ यह हुआ कि हमारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वाला देश हमाम में परिवर्तन हो गया।