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उपदेश बिना मांगे और रोजगार मांगा तो डंडा

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बिलासपुर, 18 जनवरी 2024। 
कौन कितने घंटे काम करेगा या करना चाहिए पूंजीवाद के सरगना वैसे ही सलाह देते हैं जैसे सन्यासी अविवाहित महिला अच्छे बच्चे ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देते हैं। श्रमिक आंदोलन छत्तीसगढ़ के डीएनए में है, पर इन दोनों गायब है क्योंकि ना वैसा नेतृत्व है ना वैसी पत्रकारिता समाज के हर वर्ग को जो घून लगी वह श्रमिक जगत को भी लगी और पत्रकारिता को भी लगी। अन्यथा वे क्या कारण है कि हमें साल में एक बार भी शंकर गुहा नियोगी की याद नहीं आती इसी तरह बिलासपुर का सफाई कर्मचारी का वह आंदोलन जिसमें नगरी निकाय के नेतृत्व की जिद ने उड़ीसा से सफाई कर्मचारी बुलाए पर स्थानीय कर्मचारियों की एकता को नहीं तोड़ पाए और सुख शौचालय सप्लाई वाले उसे दौर में प्रशासन को घूमने पड़ा और₹21 रोजी की रोजनदारी को एक ही बार में दो गुनी करनी पड़ी। 
पत्रकारिता भी श्रमजीवी है उसे धीरे-धीरे संविदा जीबी बनाया गया काम की शर्तें श्रमिक कानून में हाल ही के वर्षों से जो तब डाली हुई है। उसने श्रमजीवी के कवच को पूरी तरह तोड़ दिया आंदोलन से सत्ता खाक नहीं डरती तभी तो एक लाख रोजगार का दावा करके सत्ता में आई। छत्तीसगढ़ भाजपा 3000 शिक्षकों को एकमोटेट नहीं कर पा रही और मातृशक्ति सड़क दंडवत पड़ी रही है। विष्णु के सामने सब के विदेश यात्रा पर चर्चा होती है पर पत्रकारों की विदेश यात्रा खबर क्यों नहीं बनती जांच होनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ के कौन-कौन पत्रकार कब-कब विदेश गए और उनकी यात्राओं के खर्च किसने उठाई। खासकर राजधानी, न्यायधानी और बस्तर के पत्रकारों की विदेश यात्रा के प्रायोजक को उजागर होना चाहिए। संयोग देखिए एक दिन में छत्तीसगढ़ के भीतर चार स्थानों पर श्रमिक दुर्घटना हुई उसी दिन उच्च न्यायालय ने स्पंज आयरन उद्योग पर उच्च न्यायालय के 10 वर्ष पूर्व जारी किए गए निर्देशों का पालन न होने पर जनहित याचिका पर सुनवाई भी हुई। अभी तक यह सरकारी घोषणा नहीं हुई की विभिन्न उद्योगों में सुरक्षा जांच निश्चित समय सीमा पर कराई जाए जिससे श्रमिकों को जान का खतरा न्यूनतम हो, काम के घंटे कितने हो की सलाह सरगना देगा काम का वातावरण कैसा हो नहीं मिलता उपदेश रोज मिलते हैं।