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पटवारी के सिर पर किसका हाथ.....?
24 HNBC. बिलासपुर
बिलासपुर। बिलासपुर के सांसद अरुण साहू का कहना है कि पूरे प्रदेश में प्रशासनिक अराजकता का वातावरण है। किसानों का शोषण हो रहा है । राजस्व न्यायालय में सिर्फ भू माफियाओं का काम हो रहा है। आम किसान भटक रहा है, इसके बाद परेशान होकर जान दे रहा है। सांसद ने ये सब बातें इस संदर्भ में कही की तखतपुर विधानसभा क्षेत्र के राजाकापा गांव का एक किसान छोटू केवर्ट ने संबंधित हल्का पटवारी को ऋण पर्ची बनाने को पैसा दिया था पर्ची मिल नहीं रही थी और इसी कारण किसान ने आत्महत्या कर ली। घटना के बाद से समूचा विपक्ष पटवारियों के तौर-तरीकों पर सवाल उठा रहा है और कह रहा है कि केवल जिले में नहीं पूरे प्रदेश में भू माफियाओं का राज है। असल में प्रशासनिक आतंकवाद छत्तीसगढ़ राज्य में 2003 के बाद से ही प्रारंभ हो गया था । जब कभी भी कोई भी ऐसा मुख्यमंत्री नेतृत्व पाता है जो प्रशासनिक अधिकारियों पर निर्भर हो जाता है उसका परिणाम प्रशासनिक आतंकवाद होता है । अपने जन्म से लेकर आज तारीख तक छत्तीसगढ़ ने केवल तीन मुख्यमंत्री देखे हैं, जिनमें से एक ही मुख्यमंत्री अजीत जोगी प्रशासनिक क्षमताओं से भरपूर थे। वे जानते थे कि किस अधिकारी की ड्यूटी कहां लगानी है किसे गेट पर खड़ा कर देना है और किसे मंच के नीचे । अधिकारियों को मंच पर लाकर गुलदस्ता लेने देने और फीता कटवाने की शुरुआत तो 2003 से हुई जो सतत जारी है। सवाल यह है कि हल्का पटवारी अपने को इतना स्वतंत्र किसके संरक्षण में पा रहे हैं पटवारी से किसान परेशान हो ऐसा नहीं है आम आदमी के काम वर्ष 2018 के पहले भी नहीं होते थे और आज भी नहीं होते हैं ।
बिलासपुर विधायक ने एक बार थाने में काम के रेट लिस्ट की बात कही थी और यह बात थाने से ज्यादा तहसील और पटवारी कार्यालयों पर लागू होती है । किसी भी काम से तहसील या पटवारी कार्यालय जाना पड़े तो काम कराने वाला यदि वह काम कराने का आदतन है तो विभिन्न श्रेणी के नोट शर्ट की ऊपरी जेब में रखता है और उसका काम टेबल दर टेबल होता जाता है। यहां तक की 1 दिन में जाति प्रमाण पत्र जारी हो सकता है बस शर्त है की आवेदक अथवा उसका प्रतिनिधि अपने साथ कम से कम 20 हजार रूपए लेकर तहसील जाएं और इस बात की भी संभावना है कि रकम इससे ज्यादा भी लग सकती है। पटवारियों का आतंक उनके अपने दम पर नहीं है बिलासपुर में ऐसा माना जाता है कि 3 पटवारी मिलकर छत्तीसगढ़ भवन का संचालन करते हैं अब समझा जा सकता है की पटवारी बेखौफ क्यों होता है। बिलासपुर के नागरिकों को वह घटना याद होगी जब लाल बहादुर शास्त्री स्कूल के प्रांगण में तत्कालीन कमिश्नर सोनमनी बोरा ने जन सुनवाई रखी थी और एक पूर्व सैनिक को उन्होंने बुला कर रखा था वहीं पर वह पटवारी भी उपस्थित था जो पूर्व सैनिक को उसकी ऋण पर्ची नहीं देता था मंच से ही उन्होंने पटवारी को तीखी डांट लगाई और सैकड़ों लोगों के सामने पटवारी ने पूर्व सैनिक से क्षमा मांगी और कार्यालय आकर ऋण पर्ची ले जाने की बात कही। इतने सबके बावजूद पूर्व सैनिक को तत्काल ऋण पर्ची नहीं मिली दूसरे दिन भी नहीं मिली और पटवारी ने कमिश्नर के स्पष्ट निर्देश के बावजूद 7 दिन तो झेला ही दिया। सवाल फिर यही है की पटवारी बेखौफ क्यों है उनके सिर पर किस का आशीर्वाद है पटवारी को यह अच्छे से पता है कि सीढ़ी दर सीढ़ी रिश्वत की रकम कहां तक जाती है और प्रशासनिक अधिकारी का दस्तूर शुल्क, सुविधा शुल्क तथा राजनीतिक आका कैसे संचालित होता है यही कारण है की राजस्व विभाग में केवल किसान नहीं प्रत्येक व्यक्ति परेशान हैं जो काम लेकर जाते हैं।