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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय के निर्णय से महिला समाज को लगा गहरा धक्का
- By 24hnbc --
- Thursday, 13 Feb, 2025
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बिलासपुर, 13 फरवरी 2025।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का फैसला पत्नी से अप्राकृतिक सेक्स करने से हुई मौत का आरोपी पति अपराधी नहीं। वयस्क पत्नी से प्राकृतिक-अप्राकृतिक सेक्स के लिए सहमति की आवश्यकता नहीं। न्यायाधीश महोदय का निर्णय कानून की धारा के अंतर्गत है, पर इस निर्णय से न्यायाधीशों की यह मान्यता की हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार है, उसकी गरिमा है और उसे गरिमा की रक्षा होना चाहिए को जमकर धक्का मारता है।
हमारी पुरुषवादी सोच को और मजबूत करता है तब जब हम समझ में महिलाओं के अधिकारों के लिए अभी भी लड़ रहे हैं। काश सत्र न्यायालय का वह आदेश जिसमें 11 दिसंबर 2017 के दिन हुई इस घटना और उसे पर पति को आजन्म कारावास के निर्णय के विरुद्ध यह अपील उच्च न्यायालय में किसी महिला न्यायमूर्ति को सुनी मिली होती तब भी क्या निर्णय यही होता। शासकीय पक्ष आजकल जरा जरा सी बातों पर अपील में जा रहा है। क्या इस निर्णय के विरुद्ध भी जाएगा। डिजिटल जमाना है के बावजूद राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के इस निर्णय पर वैसी व्यापक चर्चा नहीं हुई जैसी होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ के अखबारों ने तो इस निर्णय पर और उससे उपजी सामाजिक कानूनी समस्या पर संपादकीय भी नहीं लिखें। इन दिनों सनातन धर्म का नाम लेकर आदर्शवादी बातें करना आम है। कोर्ट के इस निर्णय के बाद महिला अस्मिता, सनातन धर्म में उसकी पूजा, मातृशक्ति महिला को शिक्षा दो पूरा परिवार शिक्षित हो जाएगा आदि बातें कहां गई। क्या विवाहित पुरुष को इतना व्यापक अधिकार है की पत्नी उसकी संपत्ति और संपत्ति से बढ़कर गुलाम है, कोर्ट के निर्णय में कहां गया अप्राकृतिक सेक्स, गुदामैथुन के लिए सहमति आवश्यक नहीं तो मानव शरीर में विद्यमान अन्य छिद्रों में भी पुरुष अपना लिंग को इसी अधिकार के तहत अंदर कर सकता है तो क्या इन आधारों पर महिला तलाक की मांग कर सकती है और कोर्ट उसे तलाक के लिए पर्याप्त आधार मानेगा। यदि मानेगा तो शारीरिक मानसिक कष्ट के आधार पर तलाक मिलेगा पर इस कारण से महिला साथी की जान चली जाए तो पति अपराधी नहीं होगा। उच्च न्यायालय बिलासपुर के इस निर्णय के बाद वैवाहिक संबंधों की व्याख्या, धारा 377 का समाप्त होना आदि पर लंबित याचिकाओं कि शीघ्र सुनवाई और आवश्यक हो गई है।
सनातन धर्म की वैवाहिक संबंधों को लेकर आदर्शवादी व्याख्या से काम नहीं चलेगा। समाज में आदर्श और वास्तविकता के बीच संतुलन बनाना ही होगा केवल इस विवाह को पवित्र मानते हैं उसे पर कानून की जरूरत नहीं है। लाइव इन रिलेशन गलत है मोर आंसू पीकर गर्भवती होती है जैसी बातें कह कर काम नहीं चलेगा।