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राज्य सरकार ने पूर्व की जनहित याचिका पर कोर्ट के आदेश को कितना मना ....?

न्यायालय घरौंदा परियोजना को व्यापक परिपेक्ष में कब देखेगा

24hnbc.com 
बिलासपुर, 17 मई 2024।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाओं का अपना एक इतिहास है। कुछ जनहित याचिकाओं पर अच्छे निर्देशों का भी पालन नहीं हुआ। दो जनहित याचिकाएं इस मामले में हमेशा याद की जाती है। पहले गौरव पथ निर्माण कार्य का भ्रष्टाचार जो भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में हुआ। उच्च न्यायालय ने 3 आईएएस अधिकारी सहित 17 निगम कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर के आदेश दिए पर आज तक एक पर भी एफआईआर नहीं हुई, इसी तरह स्वास्थ्य विभाग संयुक्त संचालक बिलासपुर मधुलिका ठाकुर के खिलाफ वित्तीय अनियमित के मामले में हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को एफआईआर दर्ज करने की छूट दी पर संबंधित थाना सरकंडा ने एफआईआर दर्ज नहीं की और आज तक यह मामला पेंडिंग है। जिससे जनहित याचिकाकर्ता के याचिका लगाने के उद्देश्य पर संदेह होता है। 
अब बात रायपुर की एनजीओ कोपल वाणी द्वारा मंदबुद्धि परियोजना घरौंदा के मामले में लगाई गई जनहित याचिका जो इन दिनों अखबारों की सुर्खी हैं। केंद्र प्रायोजित इस योजना का संचालन राज्य सरकार का समाज कल्याण विभाग करता है। पर इस योजना के अंतर्गत रायपुर, बिलासपुर, महेंद्रगढ़ सहित 11 स्थान पर यह योजना संचालित है। रायपुर में घरौंदा कि उन इस कोपल वाणी नाम की संस्था के पास थी। रायपुर में ही अखबारों की सुर्खी बनी की संस्था में काम करने वाले फिजियोथैरेपिस्ट ने एक मंदबुद्धि युवती का यौन शोषण किया। कलेक्टर के निर्देश पर जांच हुई आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और संस्था का अनुदान बंद हो गया। कोपल वाणी समाज कल्याण विभाग की सूची में ब्लैक लिस्टेड हो गई और घरौंदा रायपुर का संचालन संवेदना नाम के एनजीओ को मिल गया। इसी बीच कोपल वाणी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की और घरौंदा परियोजना के संचालन में हो रही अनियमिताओं पर प्रश्न चिन्ह लगाए। 
जब घरौंदा परियोजना प्रारंभ हुई तब बिलासपुर घरौंदा परियोजना पीतांबरा पीठ को संचालन के लिए दी गई संचालक ने जमकर भ्रष्टाचार किया। लाभार्थियों को उनके हाल पर छोड़ दिया अखबारों में जब खबरें छपी कलेक्टर ने एसडीएम को जांच अधिकारी बनाया और घरौंदा के अंतर्गत रहने वाले लाभार्थियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की और परियोजना संचालक का काम विकास सेवा संस्थान को दे दिया गया। पीतांबरा एनजीओ समाज कल्याण विभाग की सूची में ब्लैक लिस्टेड है। हाई कोर्ट ने जब घरौंदा परियोजना के जांच के लिए जब न्याय मित्रों की नियुक्ति की उसके बाद से न्याय मित्रों ने दी हुई जिम्मेदारी को निभाया। एक जिले में तो घरौंदा परियोजना के पास आबकारी दुकान संचालित है जो अभी तक चल रही है। कौन हटेगा स्थान परिवर्तन करेगा नहीं पता जब से जनहित याचिका पर सुनवाई है रायपुर के घरौंदा परियोजना में कई अनियमित उजागर हुई है पर अखबार की सुर्खी नहीं बनती। न्याय ढाणी में जो घरौंदा परियोजना संचालित है उसकी साधारण दवाई खरीदी को भी न्याय मित्र बड़ा भ्रष्टाचार बताते हैं जबकि परियोजना में दवा का बजट पूर्व निर्धारित होता है। यहां तक की परियोजना संचालक संस्था के लाभार्थी को एम्स में भर्ती करने उप मुख्यमंत्री के कार्यालय तक में आपातकालीन आवेदन करते लिखित में देखे जा सकते हैं। 
घरौंदा परियोजना के प्रारंभ में जो वित्तीय अनियमितताएं मिली उन एनजीओ पर कोई कार्यवाही नहीं हुई और जिन पर कार्यवाही होनी थी उन्हीं में से एक आज रॉबिन हुड बनकर अलख जगाने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में यह बात विशेष गौरतलब है की छत्तीसगढ़ राज्य का मानसिक रूगुण चिकित्सालय बिलासपुर जिला ग्राम सेन्दरी में स्थित है। जो मरीज इस केंद्र से ठीक हो जाते हैं और उनके परिवार उन्हें नहीं ले जाते ऐसे मरीजों को भी घरौंदा यूनिट में दिया जाता है जबकि ऐसे मरीज के लिए एक अन्य परियोजना हॉफवे होम संचालित है। हॉफवे होम का बजट घरौंदा के कुल बजट से ज्यादा है और उसकी विशेषता भी मानसिक रुगुणता क्षेत्र के लिए है।
फिलहाल बिलासपुर घरौंदा यूनिट पर लगातार मॉनिटरिंग है संयुक्त संचालक समाज कल्याण, कलेक्टर बिलासपुर, संचालक सामाज कल्याण, सचिन समाज कल्याण, डिप्टी एडवोकेट जनरल से लेकर महाअधिवक्ता तक बिलासपुर यूनिट का निरीक्षण कर रहे हैं। यही मॉनिटरिंग की प्रक्रिया रायपुर घरौंदा सहित अन्य परियोजना पर कब होगी।