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ईडी का बढ़ा दायरा

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समाचार -
बिलासपुर, 12 मार्च 2023। एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट जिसका शॉर्ट फॉर्म ईडी है। देश के बच्चों के जवान पर भी यह नाम अब आम है। इस जांच एजेंसी के पास 3 कानून है। पहला फेमा, दूसरा ईपीओए और तीसरा जिसके तहत सर्वाधिक काम ईडी कर रही है उस कानून का नाम है पीएमएलए इसके तहत 6000 के ईडी के पास पंजीकृत हो गए हैं। और केवल एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच हुई है। जबकि ईपीओए के तहत केवल 14 प्रकरण दर्ज हैं और जो संपत्ति तलाश की जानी है वह सुनकर आपको अचरज लगेगा। 850 लाख करोड़ जबकि 900 करोड़ रुपए हैं कवर कर पाई है। ऐसे मे ईडी की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह क्यों नहीं लगेंगे। आम जनता इसे पीएम का थाना क्यों ना बोले, हाल ही में पीएमएलए कानून में जो परिवर्तन हुआ है उसे अब न्यायपालिका के जस्टिस और सेना के बड़े अधिकारी भी ईडी के दायरे में आ गए। जबकि न्यायपालिका और सेना के भीतर भ्रष्टाचार से निपटने के अपने अलग-अलग प्रणाली तय है। ऐसे में न्यायपालिका और सेना को भी पीएमएलए के दायरे में लाकर सरकार क्या दिखाना चाहती है। कानून अब आया गुनाह तो हम कर चुके हैं। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि जिस देश में 140 करोड़ की जनसंख्या में से केवल 5.83 करोड़ लोग इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हो समझ ले वह टैक्स चोरी कितनी बड़ी मात्रा में हो रही है। अभी तक बैंक अपनी जानकारी इनकम टैक्स विभाग से साझा करता था अब पूरी जानकारी ईडी से भी साझा करेगा तब हर खातेदार ईडी के रडार पर है। जब जिसे चाहा जहां चाहा वहां दबोच दिया जाएगा। जब हर खाते का एक सॉफ्टवेयर है तब ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने में कितनी देर लगती है जिस पर ऐसी कमांड दे दी जाए कि एक निश्चित रकम से ज्यादा का जैसे ही जमा या निकासी हो सॉफ्टवेयर अपने आप ईडी को मेल कर दें। और ईडी जब चाहे आपके घर पहुंच जाएं। लोगों को यह तथ्य जानना चाहिए कि देश के भाजपा को छोड़ जितना धन राजनीतिक दलों को मिला है उत्सव के टोटल का 18 गुना ज्यादा दल भाजपा के खाते में गया है पर भाजपा में तो सब दूध के धुले हैं क्योंकि दूध इनका धोबी है। न्यायपालिका को ईडी के दायरे में लाने का समय साफ इशारा करता है की सरकार न्यायपालिका के कुछ निर्णय से डरी हुई है, और उसे गोदी मीडिया के समान व्यवस्था चाहिए जो 8 करोड जब्ती के मामले में भी 90 घंटे के भीतर अग्रिम जमानत दे दे। ईडी के दांतो को जस्टिस खानवलकर ने जितना जहरीला बना दिया है वह अब पता चलेगा। जब स्पष्ट होगा कि ईडी की गई कार्यवाही संविधान के मौलिक अधिकार और आर्टिकल 23 का उल्लंघन है। साधारण पुलिस के हर थाने के बाहर डी के वशु की गाइड लाइन लिखी हुई है जिसमें लिखा है कि किसी भी व्यक्ति को उसके खिलाफ जाने वाले बयान के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता इससे उलट ईडी के नियम 24, 45 और 27 यह कहते हैं कि आपको अपने ही विरुद्ध जाने वाले बयान पर स्वीकारोक्ति देनी है पर अभी तो ईडी का बोलबाला है सरकार कहती है कि हमने तो यूएन के रिजुलेशन पर ही कानून बनाया है। यूएन की यह घोषणा 1989 की है हमारे यहां 9/11 और संसद पर हमला हो जाने के बाद 2002 में ईडी को ऊपर के 3 कानून 2002 में बना कर दिए गए। तब की सरकारों ने इन कानूनों का ऐसा उपयोग नहीं किया जैसा अभी किया जा रहा है और ईडी के कुछ छापों में 95% छापा विपक्षी नेताओं को के यहां पड़ा 5% छापे उन उद्योगपतियों के यहां पड़े जो किसी ना किसी रूप में गैर भाजपा को फाइनेंस की व्यवस्था देखते हैं। बाकी मुंद्रा पोर्ट में करोड़ों के ड्रग मिल जाएं वहां झांकने नहीं जाते।