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स्वास्थ्य विभाग के आदेश को ठेंगा दिखाता अपोलो

24 HNBC. बिलासपुर

बिलासपुर। कोविड वायरस से उपजी आपातकाल या आफत काल में दोस्त और ना दोस्त की पहचान खूब हो रही है स्वास्थ्य विभाग ने एक आदेश जारी कर उन सभी अस्पतालों को कहा कि जो अस्पताल खूबचंद योजना में एनरोल्ड नहीं है में 20% बिस्तर कोविड-19 पेशेंट के लिए आरक्षित होगी । अपोलो ने अब तक मात्र 25 बिस्तर ही कोविड-19 पेशेंट को दिए हैं इस अस्पताल के क्षमता का रिकॉर्ड देखा जाए तो 300 बिस्तरों का अस्पताल है इस आधार पर लगभग 60 बिस्तर कोविड-19 पेशेंट के लिए आरक्षित होना चाहिए। अपोलो अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सक पैरामेडिकल स्टाफ की कोई कमी नहीं है ऐसे में सबसे पहले इसी अस्पताल पर नजर जाती है लेकिन अपोलो तो अपोलो है वह जिला प्रशासन की जल्दी नहीं सुनने वाला अपोलो का इतिहास है। एसईसीएल ने इस अस्पताल के स्थापना के लिए बेशकीमती जमीन को मात्र कुछ पैसे प्रति स्क्वायर फीट की दर पर इन्हें दे दिया था उस वक्त के कोयला मंत्री रामविलास पासवान ने यह भरोसा व्यक्त किया था कि इतनी बड़ी चिकित्सा संस्थान किसका नाम राष्ट्रीय नक्शे पर सम्मान से लिया जाता है प्रदेश और साथ ही साथ मध्य प्रदेश के नागरिकों के लिए एसईसीएल के कर्मचारियों के लिए उपयोगी होगी किंतु कोल इंडिया के साथ अपोलो का एमओयू कभी भी ठीक से लागू नहीं हुआ। अपोलो कि रोज की नकचढ़ी आदतों के कारण एसईसीएल ने अपोलो को अपनी सूची से हटा लिया । एमओयू का फिर से अध्ययन होना चाहिए देखा जाना चाहिए कि नाम मात्र के कीमत पर दी गई जमीन को दुबारा नए सिरे से व्यावसायिक दर में परिवर्तित कैसे किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हो सकता तो अपोलो को इसकी हद में रखने का तरीका एसईसीएल और जिला प्रशासन बिलासपुर को खोजना चाहिए। अपोलो अस्पताल की एक नहीं कई कहानियां हैं। बिलासपुर के लोकप्रिय मिलनसार महापौर अशोक पिंगले कि मृत्यु और भाजपाई कार्यकर्ताओं का गुस्सा कौन नहीं याद रखता ऐसे और भी मामले हैं बिल भुगतान ना होने पर मृत शरीर को रोकने जैसी घटना भी है। अस्पताल के अंदर यौन शोषण की शिकायत और सुर्खियां भी पाठकों को याद होंगी कम से कम इस आपदाकाल में अपोलो को यह समझना चाहिए कि जिस शहर के धरती का पानी बिजली और मानव संसाधन उपयोग कर रहा है उसके साथ इंसानियत रखें।