रिब्ड जींस का इतिहास 1870 से
24HNBC उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने एक महिला की फटी यानि रिब्ड जींस पर टिप्पणी क्या कर दी, इस पर नया विवाद शुरू हुआ. रिब्ड जींस के पक्ष और विपक्ष में बहस छिड़ गई. दरअसल रिब्ड जींस पिछले कुछ सालों सेजबरदस्त फैशन में है. बॉलीवुड स्टार से लेकर तमाम युवा और अन्य लोग फटी जींस को पहनना फख्र की बात मानते हैं.
हमसे पुरानी पीढ़ियों के लिए तो ये वाकई बहुत आश्चर्य की बात होती है कि इतने बड़े सेलेब्रिटीज से लेकर आज की जनरेशन के लड़के-लड़कियां फटी जींस क्यों पहनते हैं और इससे अपने घुटने और जांघें नजर आती हैं. हालांकि अच्छे कपड़ों के पहनने के रिवाज के बारे में सोचें तो वाकई रिब्ड जींस का फैशन अजीबोगरीब ही है.
अच्छी-भली जींस छोड़कर ये फटी जींस पहनने का ट्रेंड कैसे आया? ये इतना मशहूर कैसे हो गया? वैसे यह भी दिलचस्प है कि ये फटी जींस नॉर्मल जींस से ज्यादा महंगी मिलती हैं? लोग फटे हुए इस कपड़े के लिए एक व्यवस्थित कपड़े से ज्यादा पैसे देने को तैयार रहते हैं?दुनिया की पहली जींस साल 1870 में लोब स्ट्रॉस ने डिजाइन की थी. मोटे कपड़े की मजबूत और टिकाऊ यह पैंट फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों के लिए बनाई गई थीं. यह नीले रंग में डाई की जाती थीं ताकि उन्हें पहनने वालों को मजदूरों के रूप में पहचाना जा सके. यही पहली जींस बाद में लेवाइस कंपनी के रूप में पूरी दुनिया में छा गई.डेनिम के कपड़े की खासियत यह मानी जाती थी कि यह गर्मियों में पैरों को ठंडा रखता है और तीखी सर्दी में गर्माहट देता है. फटी हुई जींस का फैशन इस पहली जींस के करीब 100 सालों बाद आया. 1970 से पहले तक वही लोग फटी जींस पहनते थे जो नई जींस नहीं खरीद पाते थे. उस जमाने में फटी जींस पहनने गरीब होने की निशानी थी.
70 के दशक में विरोध का प्रतीक बनी फटी जींस
लेकिन 70 के दशक में जब पंकपहना बैंड्स का कल्चर अपने चरम पर था, फटी जींस पहनना पारंपरिक तरीकों का विरोध करने का जरिया बन गया. पॉप कल्चर के चलते बहुत से रॉकस्टार जैसे बीटल्स, रैमोन्स, सेक्स पिस्टल वगैरह ने इसे पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया.अपने गानों के जरिए समाज के प्रति अपनी नाराजगी दिखाने में फटी हुई जींस में उनका ख़ूब साथ देती थी. धीरे-धीरे ये लुक फैन्स को भी भा गया और जींस बनाने वाली कंपनियों ने फटी हुई जींस ही बनानी शुरू कर दीं.जैसा कि हर पुरानी चीज के साथ होता है, 2010 में फटी हुई जींस का ट्रेंड वापस आ गया. उस दौरान 80 के दशक की बहुत सी चीजें वापस आई थीं, जैसे हाई-वेस्ट जींस, बेलबॉटम वगैरह. कुछ विश्वस्तरीय फैशन शोज में सुपर-मॉडल्स भी रिप्ड जींस पहनी नजर आईं. उसके बाद तो जैसे बहार ही आ गई.
अब तक जींस के भी बहुत से नए और आकर्षक ब्रांड आ गए थे. उन्होंने इस ट्रेंड का फायदा उठाया और एकाएक फटी हुई जींस इस नई पीढ़ी की अलमारी का भी एक जरूरी हिस्सा बन गई. फटी जींस का मार्केट इतना बड़ा इसलिए भी बन गया क्योंकि आजकल जिस डेनिम का प्रयोग किया जाता है उसमें छेद कर उसे लुभावना रूप मार्केट में मिलने वाली जींस में ही उपलब्ध है.जींस में छेद दो तरह से बनाए जाते हैं- लेजर से और हाथों से. जो जींस सस्ती होती हैं और जहां सबसे सस्ती किस्म के डेनिम का प्रयोग किया गया है, उसमें छेद बनाने के लिए लेजर का प्रयोग किया जाता है. इसके लिए जींस को एक स्टैंड पर सीधे फंसा दिया जाता है और उसपर लेजर लाइट डालकर छेद किया जाता है.
लेकिन जो महंगे ब्रांड होते हैं, उनके लिए वर्कर अपने हाथों से कट का डिजाइन और छेद तय करते हैं. सबसे पहले डिजाइन को जींस पर पेन या चॉक से बनाया जाता है. फिर से काटा जाता है और आखिर में एक ट्वीजर जैसे यंत्र से इसे फिनिशिंग दी जाती है.अगर आप भी फटी जींस पहनने के शौकीन हैं तो ये भेद आपको भी पता होंगे. हर फटी जींस एक सी नहीं होती. अलग-अलग किस्म के छेद इसे एक-दूसरे से अलग करते हैं.स्क्रेप: यह एक छोटा सा कपड़े का उधड़ा हिस्सा होता है. यहां कपड़ा सिर्फ ऊपरी सतह से उखाड़ा जाता है और भीतर कपड़ा लगा होता है.श्रेड: यहां पर जींस में कुछ जगहों के धागे निकले हुए होते हैं. यहां जालीदार धागों के जाल जैसा होता है.
होल (छेद): यह एक प्रॉपर छेद होता है जो घुटनों या जांघ वाले हिस्से पर होता है.