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10 लाख के दांव से पाई 40 करोड़ की जमीन, सीट नंबर 4 में चल रहा बड़ा खेल

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बिलासपुर, 7 मई 2025।
नजूल सीट नंबर 4, प्लॉट नंबर 85/1,85/3 । 129672 स्क्वायर फीट जमीन का विवाद इन दोनों दैनिक अखबार में प्रकाशित हो रही आम सूचना से पता चलता है। पहली आम सूचना जो स्वयं को भू स्वामी कब्जा धारी बताते हुए कृष्ण कुमार अग्रवाल की ओर से प्रकाशित हुई और दूसरी आम सूचना जो इसके खंडन स्वरूप हरिभूमि में सुबोध मार्टिन की ओर से प्रकाशित हुई में वर्णित विभिन्न न्यायालीन प्रकरण के आदेशों को पढ़ने के बाद रोचक तथ्य ज्ञात होता है। 
इस प्रकरण में तिसरे किरदार आईसीसीडीसी की आम सूचना अभी तक नहीं आई है। जो कि इस पूरी पिक्चर में मुख्य भूमिका में है। बेशकीमती इस भूखंड के क्रय विक्रय की कहानी 1971 से शुरू होती है। लीज की जमीन का विक्रय लीज का उल्लंघन है। विशेष कर तब जब लीज किसी लोक कल्याणकारी संस्था को लोक कल्याण कार्य हेतु दी गई।
1971 में यूसीएससी नाम की संस्था से राय साहब बनवारी लाल अग्रवाल ने दो भूखंड क्रय किए। पहले नजूल सीट नंबर 14 जैक जेकमेन मेमोरियल अस्पताल और दूसरा नजूल सीट नंबर 4 जिसका विवाद अभी आम सूचना का विषय है। आम सूचना में वर्णित निर्णय वाद प्रकरण में दो प्रकरण की चर्चा जरूरी है। दो मामले उच्च न्यायालय के है पहले जस्टिस गौतम भादुड़ी के कोर्ट का है। इस निर्णय में उल्लेखित 10 लाख रुपए का डिमांड ड्राफ्ट जिसका नंबर 501192 आइसीआइसीआइ बैंक और इस डिमांड ड्राफ्ट को ड्रा किया गया मंगला चौक की एक ब्रांच में 27/9 को इस डिमांड ड्राफ्ट में जिन दो पार्टी का जिक्र है से भिन्न पार्टी का जिक्र प्रथम अपर जिला न्यायाधीश की डिकरी में है। उच्च न्यालय की आदेश को आधार बनाकर राजीनाम डिकरी में जो छल हो रहा था। उसे आधार बनाकर एक पक्षकार दोबारा उच्च न्यायालय पहुंचा और जस्टिस ने अपने ही निर्णय पर रिकॉल कर लिया इस बार एक और निर्णय देते हुए माननीय न्यायमूर्ति ने पक्षकारों के बीच चल रहे फ्रॉड और संभावित फ्रॉड को रोकने के लिए अधिक स्पष्ट आदेश जारी किया। न्यायालय में राजीनामा में लगभग 34000 स्क्वायर फीट की भूमि क्रेता को मिली। शेष भूमि यथावत संस्था तक की यूसीएमएस और वर्तमान की आईसीसीडीसी के पास गई। आईसीसी डीसी के उसे समय के जब समझौता हुआ के सचिव ने ₹10 लाख प्राप्त किये पर प्राप्तकर्ता का हस्ताक्षर अन्य के नाम से है। इस राशि को पूरा निकल गया है और संबंधित बैंक का खाता बंद है। इस राशि का अकाउंट पंजीयकसं संस्थाएं को प्रस्तुत आय व्यय के पत्रक में नहीं है। क्या जिस राशि का जिक्र उच्च न्यायालय के आदेश में आया है वह अकाउंट में संस्था ने नहीं दिखाई मात्र 10 लाख रुपए की रकम लेकर 40 करोड रूपए मूल्य की संपत्ति से कोई कैसे हट गया। या कच्चे में और किसी बड़ी रकम की डील पक्षकारों के बीच हुई....? यदि संस्था ने 34000 स्क्वायर फीट भूमि पर ही समझौता किया था तो क्रेता उससे तीन गुना भूमि पर काबीज कैसे हो गया। और जब का बीज हो गया था तो आईसीसीडीसी के पदाधिकारीयों ने आपत्ति क्यों नहीं की.....
वर्तमान में यह विवाद एक बार फिर से उच्च न्यालय में है और इस बार भू स्वामी निगम द्वारा अतिक्रमण हटाने के विवाद को लेकर न्यायालय में पहुंचे हैं।
कलेक्टर बिलासपुर सीट नंबर 4 के भूखंड की खरीदी बिक्री की जांच करा लें तो करोड़ों का स्टांप ड्यूटी घोटाला बाहर आएगा। आदिवासी ने स्वयं को सामान्य बताकर इसी सीट की एक जमीन 1 करोड़ 36 लाख रुपए में बेचीं। क्रेता पक्ष वर्मा स्मृति कॉलेज के घोटाले प्रकरण से जुड़े हुए लोग हैं।