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1984 में आज ही की रात हुई थी गैस त्रासदी याद आये तो लगता है डर

 

 

 

 Bhopal Gas Tragedy। प्रकृति ने मानव जीवन भले पूरी दुनिया में एक समान बनाया लेकिन मानव ने ही अपने जीवन की कीमत अलग-अलग तय कर दी। मसलन अमेरिका एक हादसे में अपने नागरिकों की मौत के लिए ब्रिटिश कंपनी से एक मृतक पर 58 करोड़ रुपये मुआवजा लेता है। वहीं भोपाल गैस कांड के मृतकों के लिए उसी अमेरिका की कंपनी महज 10 लाख रुपये प्रति मृतक मुआवजा देती है। अतिरिक्त मुआवजा मांगा जाता है तो कंपनी तैयार नहीं होती। 36 साल से मुआवजे के लिए गैस पीड़ित लड़ाई लड़ रहे हैं। हजारों मृतकों के परिवारों को अब तक एक रुपये भी नहीं मिला है।वर्ष 1984 में 2 व 3 दिसंबर की दरमियानी रात भोपाल स्थित अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड के प्लांट (अब डाउ केमिकल) के टैंक नंबर 610 से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव से होता है। यह दुनिया के औद्योगिक इतिहास में सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में दर्ज होती है। जिसमें पांच हजार से ज्यादा लोगों की मौत होती है। 48 हजार अति प्रभावित और साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोग प्रभावितों की सूची में नामजद हुए। जबकि राज्य सरकार के दस्तावेजों में मृतकों की संख्या 12 हजार और पीड़ित संगठनों के अनुसार 22 हजार से ज्यादा है। इनके लिए कंपनी ने महज 715 करोड़ रुपये का मुआवजा 1989 में केंद्र सरकार से हुए समझौते के बाद दिया। वहीं वर्ष में 2010 में अमेरिका के गल्फ ऑफ मैक्सिको में ब्रिटिश की कंपनी में तेल रिसाव की बड़ी घटना होती है। हादसे में मृत 11 लोगों के लिए अमेरिका ब्रिटिश कंपनी से 58 करोड़ रुपये प्रति मौत मुआवजा लेता है।फरवरी 1989 में यूका व केंद्र सरकार के बीच हुए मुआवजा समझौते का विरोध हुआ। भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक रहे स्व. अब्दुल जब्बार व भोपाल गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति के संघर्ष के बाद 3 दिसंबर 2010 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने सुधार याचिका लगाकर अतिरिक्त मुआवजा 7,844 करोड़ रुपये की मांग की। सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपी गई। जिस पर जनवरी 2020 के बाद सुनवाई नहीं हुई।