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शशांक दुबे

संवैधानिक पद पर बैठे महानुभव संविधान की भावनाओं को फिर से याद करें।

देश के संविधान में मूल तत्व कुछ इस तरह है कि सरकार सभी धर्मों के साथ एक सा व्यवहार करेगी सरकार का अपना कोई धर्म नहीं होगा । इसे संवैधानिक भाषा में व्यक्त करें तो सरकार धर्मनिरपेक्ष पंथनिरपेक्ष की नीति पर चलेगी । अभी हाल ही में दो बार ऐसा मौका आया है जब स्पष्ट रूप से संविधान की मर्यादा को संवैधानिक पद पर बैठे कुछ लोगों ने गड़बड़ा दिया। 

एक मामला महाराष्ट्र के राज्यपाल की वह चिट्ठी है जो उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को लिखी और कहा कि मुख्यमंत्री धार्मिक स्थलों को ना खोल कर फेक्चुअल बन रहे हैं और दूसरी बात उससे बड़ा कदम दिल्ली के मुख्यमंत्री ने उठाया जब उन्होंने एक त्यौहार विशेष पर बाकायदा विज्ञापनों का सहारा लेते हुए यह कहा कि वह और उनका पूरा मंत्रिमंडल एक विशेष पर पूजा करेगा और राज्य के दो करोड़ लोग भी ऐसा करें इससे एक विशेष किस्म की उर्जा उत्पन्न होगी जिससे कोविड-19 से लड़ने में मदद मिलेगी। देश में इन दिनों निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को इस तरह की अपील करने की आदत सी हो गई है कोई समय विशेष पर थाली पितवाता है ।कोई 2 मिनट के लिए अंधेरा करवाता है और ऐसा सब कोविड 19 से लड़ने में मददगार होगा का दावा करता है। हमारे देश का संविधान सरकार से यह भी उम्मीद करता है कि वह नागरिकों में वैज्ञानिक सोच बढ़ाने के लिए काम करेगी किंतु इन दिनों ऐसा होता दिखाई नहीं देता उलट कुछ संवैधानिक पद पर बैठे हुए कुछ लोग वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के स्थान पर धर्म विशेष की क्रियाओं को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं इतना ही नहीं कुछ समय तो ऐसा भी आ जाता है जब किसी अन्य धर्म को मानने वालों को बीमारी फैलाने वाला बताया जाता है। और यह प्रूफ गैंडा हद तक जुनूनी हो जाता है यदि समय रहते संवैधानिक पद पर बैठे हुए लोगों की सोच को चेतावनी नहीं मिली तो यह बीमारी बढ़ेगी और सब घातक रूप लेगी जब क्रिया के प्रतिक्रिया स्वरूप अन्य धर्म के निर्वाचित जनप्रतिनिधि भी किसी त्योहार विशेष पर दिल्ली के मुख्यमंत्री के समान जनता से आवाहन करने लगेंगे। और ऐसा दोनों देश के संविधान के मूल भावनाओं को चोट पहुंचाने जैसा होगा क्योंकि हमारे देश में तो सरकार को दो ही पर्व मनाने की इजाजत है एक गणतंत्र दिवस और दूसरा स्वतंत्रता दिवस।