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शारदीय नवरात्र भगवान श्री राम की चर्चा के बिना अधूरा है

 

बिलासपुर :- शारदीय नवरात्र  का समापन एक संस्कृति के उत्थान और दूसरी संस्कृति की नीति, रीति बदलने के रूप में देखा जा सकता है. नवरात्रि में संध्या साधना का महत्व सनातन संस्कृति के समकक्ष को बताता है सनातन संस्कृति में जितना महत्व सूर्य आराधना का है उतना ही रात्रिसाधना का भी है. नवरात्रि की चर्चा हो और भगवान राम, रामचरित्र मानस की चर्चा ना हो तो शारदीय नवरात्रि को पूरा  नहीं कहा जा सकता

 

भारतीय मन की श्रेष्ठ प्रति राम को कहा जा सकता है वाल्मीकि ने जब भी रामायण को रचा और इसे साहित्य मात्र के रूप में लिया जाए तब भी इसमें जीवन का प्रत्येक पक्ष शामिल है रामायण वाल्मीकि की ऐसी कविता है जिसे व्यक्ति निष्ठ, सामाजिक प्रार्थना कहा जा सकता है. विजयादशमी के साथ ही धरती का वातावरण बदलता दिखता है इसलिए विजयादशमी शास्त्र नहीं लोक संस्कृति है एक तरफ इसमें  शौर्य, पराक्रम की आराधना है तो दूसरी ओर निडरता और तेज भी है जीवन अग्नि तत्व के बिना अधूरा है तो विजयादशमी में अग्नि तत्व की प्रधानता है अन्याय को सहना पराधीनता है तो रामायण का भरपूर प्रतिकार है असहमति समाज के उत्थान के लिए कितनी जरूरी है यह बात रावण कैप में दिखाई देती है  राम के पास दूरदर्शिता है साथ ही वे यह भी बताते हैं कि केवल विद्वत्ता जीवन का आधार नहीं हो सकती साथ में अंत: प्रज्ञा जरूरी है राम यह भी बताते हैं कि अधिकारिता का केंद्रीय करण समाज के विकास को रोकता है और समाज के विकास के लिए लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण जरूरी है आज विजयादशमी के पावन पर्व से हम गोधूलि के बेला में 24 एच एन बी सी का प्रसारण जनसामान्य के लिए कर रहे हैं और सब को पूरी टीम की ओर से पर्व की शुभकामनाएं इस विश्वास के साथ की चाइनीस वायरस (कोविड) काल के संघर्ष से हम माननीय मूल्यों को फिर से स्थापित करते हुए समाज में देश में नई गति देंगे....