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विधि व्यवसाय में लैंगिक भेदभाव एक चुनौती - गीता मित्तल

 

 

नई दिल्ली: संविधान दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने कानूनी क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका एवं उनके सामने खड़ी चुनौतियों के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कीं.लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा, ‘वैसे तो लॉ स्कूलों में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और लीगल प्रोफेशन में जूनियर लेवल पर उनकी संख्या पुरुषों के समान है, लेकिन उच्च स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व ऐसा नहीं है. संस्थागत या नियमित भेदभाव के कारण उनके विकास में बाधा आती है.’जस्टिस मित्तल ने आगे कहा, ‘लैंगिक विविधता का विशेष रूप से लीगल प्रोफेशन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका है, जहां महिलाओं की मौजूदगी कानूनी व्यवस्था में समानता, बराबरी और निष्पक्षता के आदर्शों को बरकरार रखने में प्रमुख भूमिका निभाती है.’उन्होंने कहा, ‘महिलाओं के सामने एक बैरियर है, जो हमेशा उन्हें आगे बढ़ने से रोकता है. इस बैरियर के नीचे तो वे प्रमोशन पा जाती हैं, लेकिन इसके उस पार प्रमोशन नहीं पाती है. यह सर्वव्यापी बैरियर महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में बाधा डालती है, जिसके कारण दुनियाभर में उनके साथ असमान व्यवहार होता है.’जस्टिस गीता मित्तल ने अतीत का हवाला देते हुए कहा कि लीगल प्रोफेशन का इतिहास दर्शाता है कि यह क्षेत्र ‘प्रतिग्रामी लैंगित दृष्टिकोणों’ से भरा हुआ है. हाल के दौर में भारत के सबसे बड़े लॉ फर्म में कथित रूप से सिर्फ 30 फीसदी महिलाएं हैं. इस तरह की एक तिहाई फर्म्स में लैंगिक अनुपात 20 फीसदी से नीचे है.‘लॉ फर्म्स की 81 महिलाओं को लेकर  किए गए एक सर्वे में खुलासा हुआ था कि महिलाओं को गैर-चुनौतीपूर्ण काम दिए जा रहे थे और उन्हें निचले पदों तक ही सीमित रखा जाता है. उन्हें कई लाभ और प्रमोशन से भी वंचित किया गया था. इसमें से 74 फीसदी महिलाओं ने बताया था कि उनके नियोक्ता ने संस्थान में महिलाओं को प्रमोट करने और मेंटर करने में खास कोशिश नहीं की.’