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आर्टिकल को समझे बिना उपयोग करना, याचिकाकर्ता को पड़ा भारी

हम तो डुबे सब को साथ ले डुबे

बिलासपुर , 18 जुलाई 2024।
18 जुलाई 2024 को बिलासपुर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने सीएनआईटीए को एक झटके में समाप्त कर दिया। फैसले के अंतिम पाँच पन्ने बार-बार इस सवाल को उठाते दिखे कि आखिर क्यों सीएनआई चर्च जैसी ऐतिहासिक संस्था की बागडोर एक अनुभवहीन और अनपढ़ युवा को थमा दी गई, जिसने संस्थापकों की वर्षों पुरानी विरासत को मिट्टी में मिला दिया।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दिल्ली में सीएनआई सिनोड के अधिकारियों को गुमराह कर ऐसी पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करवाई गई, जो सीएनआईटीए के बायलॉ में दर्ज ही नहीं थी। ऐसी पावर ऑफ अटॉर्नी बनवाई गई, जिसका चर्च के संविधान से कोई तालमेल नहीं?
इतना ही नहीं, इस व्यक्ति ने कभी खुद को सचिव, कभी डायरेक्टर और कभी एक्टिंग डायरेक्टर बताकर पद की गरिमा का मज़ाक बनाया। उसने कभी भी बुजुर्गों या मिशन की जमीनों के जानकारों से सलाह नहीं ली और बार-बार कमजोर याचिकाएं दायर कर मामले को बिगाड़ता गया।
बिलासपुर, तखतपुर, मुंगेली, पेंड्रा रोड से लेकर जबलपुर, दमोह, रतलाम, इंदौर और भोपाल तक सीएनआईटीए की संपत्तियाँ एक झटके में हाथ से निकल गईं।
दरअसल, रायपुर में बैठकर बिलासपुर की संपत्तियों पर बिना जानकारी के लड़ाई लड़ने का परिणाम यह हुआ कि पहले ही तीन न्यायालयों में हार चुके केस को और भी उलझाकर अंततः सब कुछ दांव पर लगा दिया गया।
पहले ही तीन अदालतों में हारने के बावजूद आत्मचिंतन नहीं, उल्टे और कमजोर याचिकाएं डालकर खुद ही हार को पक्की मोहर दे दी गई।
हैरानी की बात यह रही कि इस पूरी प्रक्रिया में न तो सीएनआई सिनोड और न ही डायोसेज़ ऑफ़ छत्तीसगढ़ को मामले की गंभीरता से अवगत कराया गया।