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बिशप सुषमा कुमार की कार्यवाही की मसीही समाज कर रहा घोर भर्त्सना, चर्च से निकलना अवैध
- By 24hnbc --
- Monday, 21 Jul, 2025
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बिलासपुर, 22 जुलाई 2025।
छत्तीसगढ़ डायोसिस की बिशप सुषमा कुमार द्वारा विभिन्न चर्च के सदस्यों की सदस्यता से बाहर करने का फतवा जारी किया गया है, वह अत्यंत हास्यास्पद एवं असंवैधानिक है, पूरे देश मे लोग इसकी घोर भर्त्सना कर रहे है। इसके संदर्भ में छत्तीसगढ़ डायोसिस के पूर्व सचिव रेव्ह. अतुल आर्थर व पूर्व कोषाध्यक्ष अजय जॉन ने बताया कि छत्तीसगढ़ डायोसिस चर्च ऑफ़ नॉर्थ इंडिया के द्वारा अराजकता पैदा कर लगातार हो रहे भ्रष्टाचार, तानाशाही, आर्थिक अपराध के खिलाफ कुछ सदस्यों ने एक मुहिम चालू किया है जिसकी शिकायत पर पुलिस प्रसाशन ने डायोसिस के पदाधिकारियों के विरुद्ध 19 जून को गंभीर गैर जमानती धाराओं 420, 467, 468, 471, 34 में एफआईआर दर्ज किया है। इसी तरह के 5 एफआईआर इनके विरुद्ध विभिन्न थानों में दर्ज किया गया है।
इसके सारे पदाधिकारी फरार है, इन सब कार्यवाही से क्षुब्ध होकर डायोसिस के पदाधिकारी व बिशप सुषमा कुमार द्वारा उन सदस्यों को चर्च की सदस्यता से बाहर कर दिया है ताकि लोगो की आवाज़ दबाई जा सके, यहा यह बताना जरूरी है कि डायोसिस के किसी भी बिशप को अनुशासनात्मक कार्यवाही के नाम पर सीधे चर्च की सदस्यता से हटाने का कोई संवैधानिक अधिकार है ही नही। यह अधिकार सिर्फ चर्च की पास्ट्रेट कमेटी को होता और वह भी किसी की शिकायत पर आरोपी व्यक्ति को स्पष्टीकरण (आरोप पत्र ) दिया जाता है ताकि भारतीय संविधान के अनुसार व्यक्ति को प्राकृतिक न्याय मिल सके, फिर जांच कमेटी जांच करती है, जिसकी रिपोर्ट डायोसिस को भेजी जाती है एक लंबे प्रक्रिया का पालन किया जाता है, शिकायत सही पाए जाने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है परन्तु उसके बाद भी चर्च की सदस्यता से सीधे हटाने का अधिकार बिशप को नही होता। परन्तु चर्च ऑफ नार्थ इंडिया छत्तीसगढ़ डायोसिस अपने अपंजीकृत संविधान जिसे ग्रीन बुक कहते है का दुरुपयोग कर भारतीय संविधान से भी बड़े बन गए है व उलंघन कर रहे है।
इस तरह के फतवा से पूरे देश के मसीही समाज के लोग हस्तप्रद व बहुत ही आक्रोशित हैं, व घोर भर्त्सना करते हुवे कहा कि डायोसिस के पदाधिकारी जो अन्याय और अत्याचार, भ्रष्टाचार और करोड़ों रुपए का हेरा फेरी करने वाले है उनके खिलाफ कार्यवाही रने की बजाय सुषमा कुमार ने उन सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही की है जिन्होंने शिकायत किया या जो निर्दोष थे, यहां तक कि परिवार के बच्चों और बुजुर्गों को भी नही छोड़ा है और चर्च की सदस्यता से बाहर किया है। डायोसिस की बिशप का आरोपियों का साथ देना उन आरोपियों को बचाने की कोशिश है, इसे ही कहते है उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
*आइए जाने सीएनआई का इतिहास*
जब संस्था बेलगाम और भ्र्ष्टाचार से भर जाए तो उसका ऐतिहासिक अस्तित्व जानना जरूरी है। सीएनआई के लोगों को यह जानना बहुत जरूरी है की चर्च ऑफ नार्थ इंडिया का निर्माण 1970 में किया गया जबकि भारत देश मे चर्च एवं संस्थाएं सैकड़ो साल से संचालित है, इसका अर्थ यह है कि डायोसिस का किसी भी स्तर पर ना तो जमीनों, न ही संस्थाओं और न ही चर्चो पर मूल स्वामित्व का अधिकार रखता है। 1970 में लोगो ने सीएनआई को इसलिए जॉइन किया ताकि चर्चो और संस्थाओ का विकास किया जाए परन्तु वर्षो पुराने चर्चो व संस्थाओं से पैसा कमाने के लिए सदस्यों के खून पसीने का दान जो चर्च में चढ़ाया जाता है उसे सीएनआई व डायोसिस ने गिरोह बना कर लूटने लगे। विगत कुछ समय से डायोसिस में बैठने वाले पदाधिकारी और बिशप अपने आप को राजा समझने लगे और इनके गलत कामो के विरुद्ध जिसने भी आवाज़ उठाई उन पर झूठी कार्रवाई कर चर्च व समाज से निकालने लगे। *इन्ही सब असंवैधानिक कार्यो के कारण 2013 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पुराने चर्चो व संस्थाओ का सीएनआई में विलय (मर्जर) को अवैध घोषित किया है।* अब सीएनआई व इनकी डायोसिस का कोई अधिकार चर्चो व संस्थाओं में नही है परन्तु दादागिरी व तानाशाही से चर्चो का संचालन कर रहे है।
*जबकि मूल रूप से चर्च सैकड़ो साल पुराने हैं सीएनआई व डायोसिस किसी भी सदस्य को किसी भी चर्च से नही निकाल सकते यहाँ तक कि सीएनआई के ही अपंजीकृत संविधान में भी बिशप को कोई अधिकार नही दिया गया है कि वो किसी सदस्य को चर्च से निकाले। अगर डायोसिस ऐसा करते है तो भारतीय संविधान में प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारो का हनन है।*