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हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी से उपजे प्रश्न...... संवैधानिक राष्ट्रवाद ही प्रगति का है पथ

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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। बिलासपुर में हिंदू राष्ट्र दो दिवसीय संगोष्ठी समाप्त हो गई शंकराचार्य ने यह कहा कि उन्होंने भविष्यवाणी की है साडे 3 वर्ष में भारत हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। 6 महीने तो बीत ही गए, इस लिहाज से 36 महीनों के अंदर भारत हिंदू राष्ट्र बन जाएगा। संगोष्ठी में वर्ण, आश्रम, उपनिषद, वेद, वेदांत जैसे विषयों पर शंकराचार्य ने काफी कुछ कहा सवाल यह उठता है संगोष्ठी के दिन स्थानीय अखबारों में जो विज्ञापन प्रकाशित हुआ उसकी लाइन यह है। धर्म नियंत्रित, पक्षपात विहीन, शोषण विनिर्मुक्त, सनातन शासन तंत्र हमारा लक्ष्य है। हम अपनी पूरी बात इसी लाइन पर करेंगे। 1947 में जब हम स्वतंत्र हुए और 51 में जब हमने एक संविधान को अंगीकार किया तब यह तय हो गया कि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यह देश कानून और संविधान के मुताबिक ही चलेगा सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार इसमें सुरक्षित हैं इस बात की गारंटी है कि किसी के साथ भी जाति, वर्ग, लिंग के आधार पर पक्षपात नहीं होगा। दूसरी ओर इस लाइन के पहले शब्द को देखें धर्म नियंत्रित स्पष्ट हैं देश हिंदू राष्ट्र बन जाए तो किस धर्म से नियंत्रित हो देश में दर्जनों धर्म को मानने वाले रहते हैं हर व्यक्ति अपने धर्म से शासित होना चाहेगा। देश के राज्यों में भिन्न-भिन्न जाति, धर्म के मुख्यमंत्री आते जाते रहते हैं यही हाल प्रधानमंत्री का भी होता है ऐसे में क्या जो व्यक्ति मुख्यमंत्री बन जाएगा या प्रधानमंत्री बन जाएगा तो वह किस धर्म से नियंत्रित होगा जिस धर्म का वह है उस धर्म से या भारत जो हिंदू राष्ट्र हो जाएगा उस धर्म से सनातन धर्म की पुस्तक में एक कहानी आती है जिसे पाठ्य पुस्तकों में भी पढ़ाया जाता है । गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत महाभारत काल की यह कथा है जिसमें धनुर्धर एकलव्य को धनुर्विद्या से इसलिए वंचित किया गया कि वह राजवंश का नहीं था। सीखने वाले की निष्ठा शिक्षा के प्रति कि उसने अपना गुरु स्वयं निर्धारित किया और धनुर्विद्या प्राप्त कर ली, बदले में गुरु ने अंगूठा मांग लिया। यह कहानी सनातन धर्म के व्यवहार को बताती है इस कहानी को जानने वाले कैसे इस बात को माने की पक्षपात विहीन देश बनेगा शोषण विनिर्मुक्त के संदर्भ में इतिहास पलटने वाले इस बात से वाकिफ है कि इसी भौगोलिक सीमाओं के भीतर कितने साल तक एक वर्ग विशेष की महिलाओं को अपने शरीर के कमर के ऊपर के हिस्से को ढाकना प्रतिबंधित था। कहने में धर्म नियंत्रित समाज बड़ा अच्छा लगता है लेकिन सोचते ही डर लगता है कि धर्म नियंत्रित समाज की किताब कौन सी होगी जिस भी धार्मिक किताब को उठा कर पढ़ें सामाजिक विभेद नजर आता है किसके कहने से कौन अपने घर से किसे त्याग देगा आगे कहने से धार्मिक भावनाएं आहत हो जाती है। 1947 में स्वतंत्रता के बाद विभिन्न कानूनों के माध्यम से देश के नागरिकों को समानता के साथ जीने का अवसर मिला है हम सबका आज यह प्रथम कर्तव्य है कि देश के भीतर संवैधानिक राष्ट्रवाद का प्रण ले और हर उस मुहिम को देखते हुए संविधान को मजबूत करने के लिए प्रयास करें।