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आखिर कैसे रुकेगा सरकारी भ्रष्टाचार
- By 24hnbc --
- Tuesday, 24 Aug, 2021
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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर । सरकारी दफ्तरों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के दो तरीके आम नागरिकों को समझ आते हैं । पहला तरीका सरकार में खुद बना कर दिया है वह यह है कि कोई काम करने के बदले में यदि सरकारी कर्मचारी आवेदक से किसी भी तरीके की धनराशि की मांग करता है तो साधारण नागरिक एसीबी में इस कदाचरण कर सकता है । दूसरा किसी सरकारी कार्यालय में सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा कर यदि राष्ट्र का अहित किया जा रहा है तो इस मामले में तथ्यों को एकत्र कर कोई भी नागरिक सीधे उच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है और संविधान प्रदत अधिकारों के तहत वह जनहित का मामला लगा सकता है। न्यायालय तय मापदंडों पर याचिका को जांचता परखता है और सही पाए जाने पर निराकरण करता है देखने में तो ऐसा लगता है कि न्याय मिल जाता होगा किंतु असल में ऐसा होता नहीं है अधिकतर देखा जाता है कि अखबार की सुर्खियां जिस आदमी को अभियुक्त बताती है उसके खिलाफ तो थाने में प्रथम सूचना पत्र तक दायर नहीं हो पाता बिलासपुर जिले में ही ऐसे 2 मामले हैं जिनमें उच्च न्यायालय की आदेश के बावजूद दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई भी शिकायत दर्ज नहीं हुई है। पहला मामला बिलासपुर नगर पालिक निगम के द्वारा बनाए गए गौरव पथ का है जिसमें उच्च न्यायालय की डिवी ने नगर पालिक निगम बिलासपुर के 2 दर्जन से अधिक अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ एफ आई आर का आदेश दिया था आदेश उपरांत संबंधित मंत्रालय में पीडब्ल्यूडी के एक उच्च अधिकारी को जांच का काम सौंपा और यह निर्देश दिया था कि गौरव पथ के निर्माण में किस किस स्तर पर क्या क्या गलती हुई है और उसके लिए कौन-कौन दोषी हैं उन्हे चिन्हाकीत करते हुए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाए जिससे न्यायालय के निर्देश अनुसार कार्यवाही की जा सके इस निर्देश के तहत पीडब्लूडी के जिस भी अधिकारी को उत्तरदायित्व मिला एक के बाद एक तीन अधिकारी बदले और नगर निगम बिलासपुर के अभियंताओं को अभय दान प्राप्त होता चला गया अंत में प्रतिवेदन में बताया गया कि कोई भी अभियंता निगम आयुक्त ठेकेदार गौरव पथ के पूरे कार्यान्वयन में दोषी नहीं है मामला समाप्त हो गया अब इसे न्यायालय की अवमानना माना जाए या यह माना जाए कि जिस विद्वान न्यायमूर्ति ने पूरा मामला सुना था और तमाम शपथपत्रों के आधार पर छानबीन के बाद उभय पक्षों की बहस सुनने के बाद एफ आई आर का आदेश दिया था वह आदेश त्रुटिपूर्ण है या यह माना जाए कि राज्य सरकार ने पीडब्ल्यूडी के जिस विशेषज्ञ अधिकारी को नगर पालिक निगम बिलासपुर के 17 अभियंताओं की भूमिका की जांच का आदेश दिया था वह जांच को पूरी ईमानदारी के साथ नहीं कर सका । दूसरा मामला स्वास्थ्य विभाग का है बिलासपुर स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त संचालक दफ्तर में बड़े पैमाने पर वर्ष 2015 से वित्तीय अनियमितता प्रारंभ हुई दो पत्रकारों ने तत्त संबंध में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दस्तावेज एकत्र किए और उन दस्तावेजों के आधार पर करोड़ों की वित्तीय अनियमितता खरीदी, नियुक्ति आदि में सरकारी दिशा निर्देशों की अवहेलना पाई तब पूरे मामले को जनहित याचिका के रूप में उच्च न्यायालय में दाखिल किया वर्ष 2019 में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने मामले का निराकरण दो तरह से किया पहला कहा गया कि विभाग विभागीय जांच करें और दूसरा याचिकाकर्ताओं को यह छूट दी गई कि वह चाहे तो उस वक्त के संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवा के विरुद्ध संबंधित थाने में एफ आई आर दर्ज करवा ले इस जनहित याचिका में संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवा पक्षकार भी था आवेदक संबंधित थाने में प्रथम सूचना पत्र दाखिल कराने गए भी जांच एजेंसी ने स्वास्थ्य विभाग से संबंधित दस्तावेज मांगे जबकि न्यायालय के पटल पर जनहित याचिका के रूप में और उभय पक्षकारों के द्वारा संबंधित दस्तावेज जमा कराए गए थे अर्थात जिन दस्तावेजों की मांग जांच एजेंसी स्वास्थ्य विभाग से कर रही थी वे पूर्व में भी याचिका के अंग रहे स्वास्थ्य विभाग ने जांच एजेंसी द्वारा मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए और एफ आई आर नहीं हो पाई अब मूल प्रश्न यह उठता है कि न्यायालय के आदेश का पालन किस हाल में हो पहला जब न्यायालय के आदेश पर सरकारी अधिकारी ने गौरव पथ का पूरा मामला जांचा तब भी एफ आई आर नहीं हुई और जब न्यायालय ने एक याचिकाकर्ता को एफ आई आर करने का छूट प्रदान किया तब भी जांच एजेंसी ने एफ आई आर दर्ज नहीं की निष्कर्ष यही निकलता है कि सरकारी धन का सरकारी कर्मचारी अधिकारी एकमत होकर दुरुपयोग करेंगे और अंत तक किसी ना किसी तकनीकी आधार पर बचते रहेंगे।