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दुकान किराए पर देना ही उद्यमिता है निगम का फेल फार्मूला
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समाचार -
बिलासपुर, 29 दिसंबर 2022। महिला समृद्धि बाजार के मूल आवंटीयों के लिए उद्यमिता का एक ही अर्थ है सामान्य दर पर प्राप्त दुकान को बाजार दर पर किराए पर चढ़ा दो। इसी उद्यमिता के चक्कर में समृद्धि नहीं आई न आएगी। निगम के संपदा विभाग के अधिकारी और बाजार विभाग के अधिकारियों ने मिलकर खूब माल कमाया और कमा रहे हैं। बाजार की प्रथम मंजिल पर रोज शाम को ओपन बाद खुद जाता है यहां पर गंजेड़ी, नशेलची और मदिरा प्रेमी एकत्र होते हैं। जब सरकार स्वयं शराब बेच रही है तो उचित होता नगर निगम महिला समृद्धि बाजार की प्रथम मंजिल पर स्वयं महिला स्व सहायता समूह के नाम से एक बार खोल लेता तो कम से कम उसे शराब बेच कर, पिला कर, चकना बेचकर और खिलाकर अच्छी खासी कमाई हो जाती। प्रथम मंजिल के प्रसाधन की दुर्दशा बताती है कि इस मंजिल की दुकानों को कभी किसी ने खोला ही नहीं. .... प्रश्न उठता है कि जिस मेयर के कार्यकाल में बाजार बना और जिस मेयर के कार्यकाल में आवंटन हुआ उस समय के आयुक्त और एमआईसी सदस्यों ने किस आधार पर दुकानों का आवंटन किया। शहर की वे कौन महिला उद्यमी थी जिन्होंने इस बाजार में दुकान लेने की कोशिश की और उनमें से कुछ सफल रहे होंगे, कुछ असफल रहे होंगे। निगम का बाजार है तो आरक्षण नियमों का पालन भी हुआ होगा अब निगम को जनहित में यह बताना चाहिए कि कितनी दुकानें एससी, एसटी, विकलांग, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को आवंटित हुई कितने आवेदन पत्र आए चैयन का क्या आधार था। सबसे बड़ी बात इस आशय का घोषणा पत्र लिया गया कि नहीं कि जिसे दुकान आवंटन हो रही है उसका कोई भी रिश्तेदार नगर पालिक निगम में कार्यरत तो नहीं है, क्योंकि इस शहर की तो परंपरा है कि निगम ने बाजार बनाया है तो निगम कर्मचारी के रिश्तेदार पिछले दरवाजे से आवंटन पा ही जाते हैं। नेता का अपना कोटा है और लाभ की कुछ बूंदे लोकतंत्र के चौथे खंबे को भी दी जाती है अब जब लाखों रुपया किराया वसूल नहीं हुआ तो बाजार विभाग के कर्मचारी आज गिनती के डेढ़ दर्जन ताले लेकर समृद्धि बाजार पहुंचे थे। बड़े किरायेदारों पर तालाबंदी कर दी गई कुछ से नकद रकम प्राप्त की गई यहां भी एक बड़ा लोचा दिखाई दिया। नकद देने वाले व्यक्ति को दुकान आवंटित नहीं है पर रसीद तो आवंटन धारक के नाम से ही कटेगी और उसको पाने वाला कोई दूसरा रहेगा ऐसे में पता ही नहीं चलेगा की दुकान किसके नाम से है वह जिंदा भी है या नहीं आखिर मूल आवंटन धारक को निगम कर्मचारी छुपाना क्यों चाहते हैं. ...।( क्रमशः)