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राखड़ का नया खेल यहां 25 नहीं 50 का टन
- By 24hnbc --
- Thursday, 15 Dec, 2022
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समाचार -
बिलासपुर, 16 दिसंबर 2022। पावर प्लांट से निकली राखड़ का इस्तेमाल कैसे हो को लेकर राज्य सरकार के 2 विभागों में ठन गई है अभी तक जिले के एसडीएम हुई। राखड़ के डंपिंग के बारे में अनुमति दे देते थे हालांकि व्यापक स्तर पर इस अनुमति देते थे और देखा जा रहा था कि इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। हाल ही में पर्यावरण विभाग ने एक आदेश जारी किया है और कहा है कि राखड़ का उपयोग के कहीं भी हो कोई भी करें अनुमति उनसे ही लेनी होगी। हाल ही में माननीय उच्च न्यायालय में राखड़ के उपयोग पर एक रिट पिटिशन दाखिल हुई है जिस पर संबंधित विभागों को अपना जवाब दाखिल करना है बिलासपुर से लगे हुए क्षेत्रों में जहां पर पत्थर खदाने अधिक है अनुपयोगी खदानों को राखड़ डाल कर दोबारा बंद किया जा रहा है और अंत में केवल 1-2 फीट मिट्टी डालकर समतल करके अवैध प्लाटिंग कर कर बेच दिया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा नुकसान क्रेता को ही है सबसे पहली बात पत्थर खदान के क्षेत्र में आवासीय निर्माण और डायवर्सन की अनुमति कैसे दी जा सकती है। दूसरा जिस पत्थर खदान की गहराई 40 फीट से ज्यादा थी उसे जाखड़ से बंद करके जब बेच दिया जाएगा तब पानी का रिचार्ज कैसे होगा क्रेता सत्ता समझकर प्लॉट खरीदने तब उस प्लॉट पर बोरिंग कैसे कराई जाएगी क्योंकि बारिश में जब कभी भी पानी गिरेगा और पानी जमीन की ओर नीचे जाएगा राखड़ गिला होगा सूखे का और पत्थर में तब्दील हो जाएगा। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का ऐसे डंप कर के समतलीकरण किए गए भूमि के टुकड़े के संबंध में स्पष्ट निर्देश है कि इस पर 7 साल तक भवन निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी 7 साल के बाद मृदा और भूमिगत तब्दीली की प्रयोगशाला रिपोर्ट प्रस्तुत करने के उपरांत ही खरीदी बिक्री की जा सकेगी यह निर्देश कचरे से डंप किए गए प्लाट एवं खदान जिन्हें दोबारा समतलीकरण किया गया है के ऊपर लागू होता है। पर ऐसे दिशानिर्देशों का पालन बिलासपुर जैसे छोटे शहरों में होने से रहा।
इसी से जुड़ी हुई एक खबर यह भी है कि जो पत्थर खदानें 2015 के बाद आवंटित हुई है उन पर तो यह नियम लागू है पर पूर्व की खुली हुई खदानों के संदर्भ में ऐसा कोई नियम नहीं है जिसका लाभ भूमाफिया उठा रहा है। पर्यावरण विभाग के सूत्र बताते हैं कि भ्रष्टाचार का जो रोग राजस्व अधिकारियों को लगा है वैसा ही कुछ पर्यावरण में भी लगा है और 1 टन राखड़ अनुमति की कीमत ₹50 हो गई है जो कोयला स्कैंप से दोगुनी हैं । इसी संदर्भ में जीएसटी चोरी का भी बड़ा खेल चल रहा है और यह ऐसबिक्स निर्माताओं का है । इन्होंने अपने प्लांट के उत्पादन क्षमता को इतना कम बताया है कि जीएसटी लागू ना हो पर पावर प्लांट से बड़ी मात्रा में इनके नाम से एस ब्रिक्स लिया जाता है यदि उचित बनाई जाती है तो यह छूट के दायरे में नहीं आते और यदि नहीं बनाई जाती है तो यह राखड़ अन्य कहां उपयोग होती है यह जांच का विषय है।