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मंदी के बाद भी मार्केटिंग के फंडे के कारण रियल स्टेट में उपभोक्ता को नहीं मिल रहा लाभ

बिलासपुर। रियल स्टेट के धंधे में मंदी का आलम यह है कि शहर के स्थापित कॉलोनाइजर ने भी अपने प्रोजेक्ट बेचने की जिम्मेदारी मार्केटिंग करने वाली कंपनियों को दे दी है। इसका सबसे बड़ा नुकसान क्रेता को ही हो रहा है। क्योंकि मंदे का माल भी सस्ता नहीं मिल रहा है । कॉलोनाइजर का लाभ और मार्केटिंग एजेंसी का कमीशन दोनों के बोध क्रेता की जेब पर आ रहा है इतना ही नहीं जब कभी भी क्रेता से किए गए वायदे पूरे नहीं होते तब क्रेता के पास ना तो निर्माता का दरवाजा होता है और ना ही ब्रोकर का कॉलोनाइजिंग की साइट पर मकान कब बनेगा उसके पहले एक बड़ा सुंदर सा ऑफिस ब्रोकर एजेंसी का बन जाता है । ग्राहक को लुभाने के लिए प्रवेश द्वार पर ही लाल और हरे कालीन दरवाजे पर खुशबूदार फूल के गमले रखे मिलते हैं ऑफिस के अंदर इबादत की मूर्ति के साथ कुछ इस तरह का खाका खींचा रहता है कि मानो क्रेता को मकान 2 से 3 माह के अंदर ही मिल जाएगा। बिलासपुर जैसे मंझोले शहर में रियल स्टेट में ब्रोकर कंपनियां लगभग 10 वर्ष पहले आई तब रियल स्टेट बाजार में तेजी का दौर था और बिलासपुर से 15 से 20 किलोमीटर दूर भी 400 से 450 रुपए वर्ग फुट जमीन बेच देना आसान था। ब्रोकर कंपनियों ने इस तेजी का खूब लाभ उठाया और 8-10 जुमलो का गुलदस्ता क्रेताओ को थमा दिया जिस दाम पर 10 वर्ष पूर्व रिटर्न बैक पॉलिसी के नाम पर प्लाट बेचा था आज उसी प्लाट की कीमत क्रय किए गए दाम से नीचे हो गई। उपभोक्ता फोरम में रियल स्टेट का हर दूसरा प्रकरण मार्केटिंग कंपनियों के खिलाफ है। यह कहानी केवल प्लाट और मकान के संदर्भ में नहीं फ्लैट के संदर्भ में भी है एक मार्केटिंग कंपनी ने तो फ्लैट बुकिंग के वक्त मर्सिडीज़ कार तक का वादा किया था कार की दम पर फ्लैट बिकने का यह खेल सरकंडा थाने से कुछ ही दूरी पर हुआ किसी भी बुकिंग कर्ता को कंपनी ने कोई कार इनाम में नहीं दी ऐसे ही ठग कंपनियां अभी भी गीतांजलि सिटी क्षेत्र में काम कर रही है । यह बात और है कि बोर्ड पर से अब मार्केटिंग कंपनी का नाम गायब है। 

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