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किसान आंदोलन का समर्थन हर नागरिक का कर्तव्य क्यों...?

बिलासपुर ( 24 एचएनबीसी )। देश के किसान दिल्ली की तीन बॉर्डर पर लंबे समय से आंदोलनरत हैं। ये आंदोलन केवल किसानों का नहीं है, बल्कि देश के हर उस नागरिक का है जो देश में नए तरह की ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा नहीं चाहता। ईस्ट इंडिया कंपनी का कैप्टन 1608 में सूरत बंदरगाह पहुंचा था। और 1764 में पलासी का युद्ध हुआ, उसके बाद कंपनी ने बंगाल में सिलसिलेवार तरीके से किसानों की फसल पर अपनी मर्जी थोपना शुरू की देश की जनता को ईस्ट इंडिया कंपनी और नील की खेती बिहार, चंपारण के तथ्यों को फिर से पढ़ना चाहिए। और समझना चाहिए कि कैसे एक सनकी की सनक का पहला एपिसोड नोटबंदी, दूसरा श्रम कानूनों में सुधार और तीसरा नए कृषि कानून है। कैसे आनन-फानन अध्यादेश आया संसद का सत्र आया विपक्ष को अनसुना करके तीन बिल पास करा लिए गए। देश की 60% खेती और आबादी अपने तरीके से फसल लेती है खाती पीती है इस पर अब डबल ए अदानी, अंबानी की नजर है एक तरफ प्रधानमंत्री कहते हैं कि उन्होंने तो कांग्रेस के घोषणा पत्र को फॉलो किया है। शरद पवार की बात को आगे बढ़ाया है किंतु दोनों ही घोषणा पत्रों में खेती आधुनिक जमीदार के पास बंधक बनेगी ऐसा प्रावधान नहीं है। जैसा प्रावधान तीन कृषि बिलों में है देश में चुनिंदा गुजरातियों ने 17 - 18 वीं सदी की असमानता से ज्यादा भयावह असमानता की तैयारी कर ली है। उस वक्त देश की जनसंख्या 20 करोड़ थी। जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने लूटा आज देश की जनसंख्या 138 करोड़ है। जिसमें से 80 करोड़ को पीडीएस का लाभ मिलता है, अनुमान करें कि देश की 21% कमाई एक परसेंट लोगों के जेब में है, और डबल ए की कुल संपत्ति 150 अरब डॉलर से ज्यादा है और समानता डेटाबेस बताता है कि 1% के पास 138 करोड़ आबादी की कुल संपदा का 39% है । 138 करोड़ लोगों को गुलाम बनाने के लिए पिछले 6 साल से कानून बदले जा रहे हैं । नजर डालने पर पता चलता है कि पहले 35 श्रमिक कानूनों को खत्म किया गया। कपड़ा, बिजली, टेलीकॉम, किराना, हवाई जहाज, रेलवे, बंदरगाह और सड़क किस तरह कारपोरेट के हवाले किए गए और अब अंत में खेती सौंपी जा रही है। यदि अब भी देश के नागरिक अपने अधिकारों के लिए खड़े नहीं हुए तो बहुत देर हो चुकी है सिर्फ 5 साल में एक बार बटन दबाकर सत्ता बदलने से काम नहीं चलेगा। अब तो बटन दबाने से बड़ा रास्ता खोजना होगा। और वह रास्ता राजधानी दिल्ली जाने वाली सड़कों पर है इस सड़क पर चलना हर नागरिक का कर्तव्य है और जो लोग इस कर्तव्य की पूर्ति नहीं करेंगे इतिहास उन्हें मीर जाफर, जयचंद के रूप में जानेगा।