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माइनॉरिटी सर्टिफिकेट है नहीं, फिर भी ईसाई संस्थाएं उठा रही हैं व्यवसायीकरण का लाभ
- By 24hnbc --
- Sunday, 06 Jul, 2025
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रायपुर/बिलासपुर, 7 जुलाई 2025।
राजधानी रायपुर स्थित सालेम स्कूल को लेकर एक अहम खुलासा हुआ है। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा प्रस्तुत एक जांच प्रतिवेदन में यह उल्लेख किया गया है कि यह स्कूल एक अल्पसंख्यक संस्था है और इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30(1) के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।
लेकिन जांच की गंभीरता पर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि शिक्षा अधिकारी ने केवल मौखिक आश्वासन के आधार पर यह टिप्पणी कर दी, जबकि उन्होंने न तो संस्था से माइनॉरिटी सर्टिफिकेट मांगा और न ही यह जांचने की कोशिश की कि ऐसे प्रमाण के अभाव में संस्था को वास्तव में किन-किन सुविधाओं का हक़ है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30(1) यह अधिकार केवल उन्हीं संस्थाओं को देता है जो अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित होने का वैध प्रमाणपत्र, यानी सरकारी माइनॉरिटी सर्टिफिकेट, प्रस्तुत करती हैं। इस सर्टिफिकेट के आधार पर ही उन्हें बिजली, पानी, टैक्स में छूट, शैक्षणिक अनुदान, स्कॉलरशिप, प्रबंधन में स्वतंत्रता जैसी सुविधाएं मिलती हैं।
लेकिन यदि किसी संस्था के पास यह प्रमाणपत्र नहीं है, तो वह एक सामान्य संस्था मानी जाती है और उस पर सामान्य नियम व कराधान की प्रक्रिया लागू होती है।
उपलब्ध दस्तावेज़ों के अनुसार, सालेम स्कूल के पास न तो कोई वैध माइनॉरिटी सर्टिफिकेट है और ना ही उन्होंने इसे प्रस्तुत किया है। इसके बावजूद, पुरानी परंपरा और “मिशनरी” शब्द की आड़ में शिक्षा अधिकारी को भ्रमित कर दिया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रकरण एक बड़े प्रशासनिक ढीलेपन और नीति उल्लंघन को उजागर करता है, जहाँ केवल मान्यता की परंपरा के बल पर संविधान की धाराओं का दोहन हो रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि सालेम स्कूल एक पूर्णतः व्यावसायिक संस्था की तरह संचालित हो रही है। लेकिन, माइनॉरिटी का दावा कर यह संस्था न तो व्यवसायिक टैक्स भर रही है और न ही शासन को उसकी निर्धारित हिस्सेदारी दे रही है। अनुमान है कि सरकार को इससे लाखों रुपये की राजस्व हानि हो रही है।
मांग उठ रही है कि –
• जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा की गई जांच की पुनः समीक्षा हो।
• माइनॉरिटी सर्टिफिकेट की अनिवार्यता सुनिश्चित की जाए।
• बिना प्रमाण के लाभ उठाने वाली संस्थाओं के विरुद्ध वित्तीय व कानूनी कार्यवाही की जाए।
• राज्य शासन मिशनरी संस्थानों की सभी छूटों की पुनर्समीक्षा करे।
यह कोई अकेला मामला नहीं है। अगर शासन और प्रशासन ने समय रहते कार्यवाही की, तो ऐसी संस्थाएं संविधान के नाम पर छूटों का दोहन करती रहेंगी और सरकार को करोड़ों की चपत लगती रहेगी। अब वक्त है, आंखें खोलने का।