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पीएससी घोटाला 2003, 2005

मानव विज्ञान का वह पर्चा जिसने छत्तीसगढ़ की नौकरशाही को भ्रष्टाचार के रंग में पोत दिया

24hnbc.com
बिलासपुर, 22 अक्टूबर 2024। 
छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ में नौकरशाही का एक बड़ा वर्ग इतना भ्रष्ट है कि लाल फीता शाही के मगरमच्छी जबड़ों से राज्य की जनता को कभी मुक्ति नहीं मिल सकती। लगभग 150 से ज्यादा अधिकारी जब रिटायर्ड हो जाएंगे तब तक वे अन्य को इतना दूषित कर चुके होंगे कि ये चक्र हमेशा चलता रहेगा। मैंने छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में हो रहे राज्य के तीसरे विधानसभा चुनाव के समय रतनपुर गेस्ट हाउस में हुई पत्रकार वार्ता में यह प्रश्न पूछा था ""आपको सत्ता में बैठे 10 वर्ष हो गए एक भी परीक्षा ऐसी बताएं जो निष्कलंक रही हो, परीक्षाओं के भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए क्या करेंगे"" प्रश्न दो लाइन का था पर उसे समय मुख्यमंत्री डॉ रमन के चेहरे पर परेशानी के भाव आए थे और उन्होंने लगभग 5 से 7 मिनट तक इसका जवाब दिया। वे भले व्यक्ति हैं आज भी प्रश्नों से भागते नहीं है। 
जिस दिन छत्तीसगढ़ राज्य नक्शे पर स्थापित हुआ तब से आज तक पीएससी की एक भी परीक्षा ऐसी नहीं है जिसके परिणाम पर दाग न लगे हो। अब तो दाग अच्छे हैं माना जाता है। हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ पीएससी 2003, 2005 के भ्रष्टाचार की जिसमें पीड़ितों को आज तक न्याय नहीं मिला जो अधिकारी कुर्सियों पर बैठे हैं उनकी पूरी कोशिश है कि यह मामला जब देश की सबसे बड़ी अदालत में 2016 को पहुंचा और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश पर स्थगन मिला तो अब रिटायर्ड होने तक यूं ही चला रहे, ऐसे याचिका कर्ता अधिकारियों की संख्या सैकड़े में है। जिनकी जिंदगी प्रभावित हुई वे दर्जनों में है और सबसे बड़ी बात कि वह नौकरशाही से बाहर है। वर्षा डोंगरे, चमन लाल रविंद्र सिंह ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की शरण 2006 में ली। अगस्त 2016 में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक गुप्ता ने 88 पेज का ऐतिहासिक फैसला दिया। तब सरकारी वकील एजी जुगल किशोर गिल्डा थे।
हाई कोर्ट के फैसले में पीएससी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर सख्त टिप्पणी की गई थी। आदेश में कहा गया था व्यकल्पित विषय की नए सिरे से स्कैनिंग के बाद नई लिस्ट जारी की जाए। इस फैसले का असर लगभग 56 डीएसपी और 3 दर्जन डिप्टी कलेक्टर पर पड़ता था। 56 का डिमोशन होता, 22 को नौकरी से बाहर किया जाता कोर्ट ने कहा था आदेश 31 अक्टूबर 2016 तक लागू कर दिया जाए। यह भी कहा कि जिन्हें नौकरी मिलेगी पदोन्नति का पूरा लाभ दिया जाए अर्थात 2006 से 2016 तक के तमाम पदोन्नति उन्हें मिलती इसी आदेश के खिलाफ प्रभावित अधिकारियों में से रणनीति के तहत 3 अधिकारी जिनकी अगुवाई संजय चंदन त्रिपाठी ने की सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर 2016 को हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में दम तोड़ रहा है। 
          (हमारा निवेदन है कि इस याचिका की अपडेट जिसके पास भी हो हमें बताएं छत्तीसगढ़ की पीएससी के इस घोटाले का कवरेज एक षड्यंत्र के तहत अभी नहीं किया जाता है और नए घोटाले को बार-बार बाद बताया जाता है) 
2003, 2005 पीएससी घोटाले से संबंधित समाचार की दो किस्त और प्रकाशित की जाएगी जिसमें ईओडब्ल्यू और एसईबी के संबंध में तथ्य होंगे।