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मजदूर दिवस की शुभकामना न ले, अपने हित के लिए लड़ने खड़े हो जाए

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बिलासपुर, 1 मई 2024।
पूरे विश्व में 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। समाज के अतिसमृद्धिशाली पूंजीपति वर्ग के लिए कोई दिवस नहीं है। जिसकी जेब में पैसा है उसकी तो रोज दिवाली है। कुछ समाजशास्त्री मानते हैं कि अब वर्ग संघर्ष नहीं हो सकता जबकि असल बात है कि भारत के संदर्भ में तो वर्ग संघर्ष की स्थिति और उसका मैदान तैयार हो गया है। पिछले 10 साल में संपत्ति का, संसाधनों का बंटवारा जिस असमानता के साथ बढ़ा, उसने वर्ग संघर्ष की नींव रख दी। और सरकारें इससे बचने के लिए आम जनता को जाति भेद, नस्ल भेद में बाटकर अन्य किसी का वर्ग संघर्ष पनपा रही है। इसका हालिया उदाहरण मणिपुर है। मई 2023 के प्रथम सप्ताह में ही इस प्रदेश में हिंसा का दौर शुरू हुआ जिसे कहीं ना कहीं सट्टा का संरक्षण प्राप्त है। आज ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जांच करने वाले सीबीआई के चालान वाली खबर है चालन कहता है पुलिस में महिलाओं को भीड़ के हवाले किया। दूसरा उदाहरण जम्मू कश्मीर का है लोकतांत्रिक अधिकार कई सालों से स्थगित है। और आम जनता को ऐसा समझाया गया जैसे भारत का हर नागरिक जम्मू कश्मीर में भूमि क्रय करने को लेकर अति उत्साहित है और खरीद रहा है। 
भारत में जहां 80 करोड़ नागरिक सरकारी अनाज पर जयकारा लगाते हैं क्या वे इतना पैसा जुटा चुके हैं की घाटी में जमीन खरीद लें.....? बिलासपुर छत्तीसगढ़ से कितना मजदूर साप्ताहिक ट्रेन से जम्मू कश्मीर जाता है और जमीन खरीद कर आता है। जिन्हें यह पता करना हो उसलापुर स्टेशन चल जाए, जब यह साप्ताहिक ट्रेन वापस आती है तो उसे उतारने वाले मजदूर से पूछ ले की किसने कितनी जमीन का टुकड़ा घाटी में खरीदा, या घाटी में काम करने के बाद अपने ही छत्तीसगढ़ में कितनी जमीन खरीदी।
एक नारा तुम्हारे पास खोने के लिए अब कुछ नहीं है लिहाजा डरना बंद करो चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री आम आदमी को डरा रहे हैं, मंगलसूत्र छिन जाएगा, घर छिन जाएगा। वे जानते हैं कि 80 करोड़ की आबादी जो सरकारी चावल पर निर्भर है, उनमें से कितनों के पास दो छोड़ो एक घर होगा। स्पष्ट है उन्हें चिंता किसकी है क्रॉनिक पूंजीवाद ने समाज में अपने नीचे कचरा का ढेर लगा लिया है और यही नीचे का वर्ग ऊपर वालों की संपत्ति को और बड़ा और बड़ा करने के लिए काम करता है। 
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पिछली सरकार ने कम से कम एक दिन प्रशासनिक अधिकारी मजदूर के साथ बोरेबासी खा लेता है, आज भी बिलासपुर लोकसभा प्रत्याशी देवेंद्र यादव ने महापौर के घर बोरेबासी में हिस्सा लिया। पर छत्तीसगढ़ के किसी भाजपा नेता के मुंह से मजदूर दिवस पर दो शब्द ना निकले जबकि एक विधायक के जन्मदिन पर अखबारों के कई पन्ने भरे हैं। पूंजीपति सोच वाली सरकारें मजदूर को केवल गोठ मानती है अब तो ऐसे ही पूंजीपति नेता आ रहे हैं जो आम मतदाता के पास वोट मांगने जाना ही नहीं चाहते सूरत और इंदौर इसका उदाहरण है। और इस बात की और इशारा कर रहा है कि सीख रही लोकतंत्र का यह उत्सव चुनाव गैर जरूरी हो जाएगा और ऐसा करने वाले ऐसा करते समय राष्ट्रीय हित, सरकारी खजाने की बचत, ध्वनि प्रदूषण में बचत, डीजल पेट्रोल की बचत जैसे कई कुतर्क देकर अपने कॄत को राष्ट्रीय हित बता देंगे।