No icon

वरिष्ठ जनों के आशीर्वचन पर एक राय

भरोसा और साख कायम हो इसके लिए पारदर्शिता जरूरी है अन्यथा अदालत तो नियम पालन करने के लिए खुली ही है

24hnbc.com
बिलासपुर, 06 अक्टूबर 2023।
भारत देश की ऐसी कौन सी गौरवशाली विरासत है इसके मामले अदालत तक न पहुंचे हो जिस देश में मंदिर प्रवेश, जन्मभूमि विवाद, मंदिर की संपत्ति से लेकर बड़े ट्रस्ट और गांधी शांति प्रतिष्ठान तक के मामले में कोर्ट में जाकर ही हल हुए हो ऐसे में बिलासपुर प्रेस क्लब के विवाद या किसी भी पत्रकार संस्था के विवाद कोर्ट नहीं जाएंगे की उम्मीद कोई कैसे कर सकता है। कल बिलासपुर पत्रकार जगत के लिए खुशी के पल थे। हमें एक दिग्गज पत्रकार संपादन कला के माहिर मुक्तिबोध की मेहमान नवाजी करने का मौका मिला। उनके साथ मंचासीन श्री जायसवाल जी और आदरणीय अवस्थी जी ने भी आशीर्वचनों की भूमिका निभाई। इसी पर आज कुछ लिखने की जरूरत है। डॉ सतीश जायसवाल ने अपने भाषण में जैसा कि कार्यक्रम के ठीक बाद जारी व्हाट्सएप रिलीज में कहा गया बिलासपुर प्रेस क्लब का चुनाव रुकवाने और कार्यकाल को जबरिया बढ़ाने की बुरी कोशिशें पर टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रेस के साथियों के बीच अदालतें न आए तो श्रेयस्कर होगा। यहां यह कहना जरूरी है कि प्रेस के साथियों के बीच अदालत नहीं आई प्रेस के साथी अदालत गए। अदालत कोई कब जाता है यदि मसाला आमने-सामने बैठकर तय हो जाए संस्था का कोई बड़ा बुजुर्ग, मुखिया वहां उपस्थित हो और समस्या का समाधान करें। दोनों पक्ष के बीच मुद्दे को लेकर संतुष्टि बन जाए तो अदालत क्यों जाएं पर जब ऐसा नहीं होता तभी उचित अनुचित, न्याय अन्याय जानने के लिए अदालत नहीं तो कहां जाएं। 
प्रेस क्लब चुनाव के पूर्व की दो सामान्य सभा को याद करें पहले सामान्य सभा में ही एक वरिष्ठ पत्रकार ने प्रस्ताव रखा था आज तय करें अभी जो तय होगा दोनों पक्ष वादा करें कोई कोर्ट नहीं जाएगा यदि जाएगा तो सामान्य सभा के प्रस्ताव का उल्लंघन माना जाएगा और फिर सामान्य सभा ही तय करेगी की उसके साथ क्या व्यवहार किया जाए इस प्रस्ताव पर कोई सहमत नहीं हुआ। ऐसे में वरिष्ठ सदस्य का राय की मामले अदालत ना जाए उचित जान नहीं पड़ती। जब कोई संस्था शासन के पास स्वयं को पंजीकृत करती है तब उसके पास दो विकल्प होते हैं पहला वह शासन के स्टैंडर्ड बायोलॉजी को मान ले या अपना विधान स्वयं बनाकर जमा कर दे, दोनों ही स्थिति में उसे विधान का पालन करना पड़ेगा। यदि विधान का पालन नहीं होगा और पालन करने में कमी पाई जाएगी तब जहां विधान पंजीकृत है उस अधिकारी को हस्तक्षेप करना चाहिए। कुछ संस्थाएं और कुछ संस्थाओं को पंजीकृत अधिकारी छूट दे देते हैं मनमर्जी करने की। और यह गलत परंपरा पूरे भारत में चल रही है सो बिलासपुर में भी चल रही है और यह सतत जारी है। ऐसे में प्रत्येक क्षेत्र में सब कुछ नियम से हो नियम से होना चाहिए इस बात का जिक्र पत्रकार ही सबसे पहले करते हैं। जहां पर नियम अनुसार काम नहीं होता वहां की खबरें बनाते हैं ऐसे में पहला कर्तव्य कि मेरे यहां तो नियम से सब कुछ हो। को पालन करना चाहिए। नियम से ऊपर कोई नहीं है ना व्यक्ति ना संस्था यहां तक की कोर्ट भी नियम से ऊपर नहीं है ऐसे में संस्था को नियम से चलना चाहिए यदि नहीं चल रही है तो नियम अनुसार चले इसके लिए कोई सदस्य अदालत जाए, पीठासीन अधिकारी के पास जाए तो उसे अनुचित कैसे कहा जा सकता है। बेहतर तो यही होता कि नियम से चले इसकी पहल पदाधिकारी स्वयं कर लें किसी सदस्य को इस बात की जरूरत ही नहीं पढ़नी चाहिए कि वह पीठासीन अधिकारियों के पास जाए। और बताएं कि संस्था में विधान का पालन नहीं हो रहा है या आर्थिक अनियमितता है। आज आर्थिक अनियमितता इतना बड़ा प्रश्न चिन्ह हो गई है की पूरे भारत में कभी भी 24 घंटे में कभी भी जांच एजेंसी किसी का भी दरवाजा खटखटा देता है तब क्या। ऐसा किसी दिन कभी हो उससे बेहतर है कि या तो हम अपने घर की सफाई कर ले या अदालत चले जाएं की हुजूर हमारे घर की सफाई कर दो।
रही बात भरोसे की संस्था को जनता का भरोसा जीतने के पहले अपने सदस्यों का भरोसा जीतना है और यह तभी संभव है जब काम पारदर्शिता से हो। खाली एक दिन गौरवशाली परंपरा को याद करके हम मदर ऑफ डेमोक्रेसी नहीं बन सकते समाज में तमाम बुराइयां आई है तब या कैसे हो सकता है कि वे बुराइयां पत्रकारों के संस्था में नहीं आएंगे पत्रकार भी तो आम नागरिक है। मामले कोर्ट कचहरी अदालत तक ना आए ऐसी अपील हमारे हाई कोर्ट अधिवक्ता पत्रकार साथी आदरणीय सलीम काजी जी ने भी की पर वे स्वयं याद करें कि उन्होंने इसी संस्था के कितने मामलों में न्यायालय के समक्ष किसी का पक्ष रखा है। जब कभी भी दो पक्ष कोर्ट जाते हैं तो दोनों खुश होकर बाहर नहीं आते यही परंपरा है और न्यायालीन परंपरा यह है कि उसके दरवाजे समान रूप से हर नागरिक के लिए खुले हैं यहां तक की यदि फरियादी भारत का नागरिक नहीं है तब भी न्यायालय का दरवाजा उसके लिए खुला है। हमें अपनी न्यायालीन व्यवस्था में विश्वास है तभी तो उसके पास जाते हैं ऐसे में न जाना अपने आप में न्यायालीन व्यवस्था से भरोसा उठ जाने पर ही संभव है। और हमें न्यायालीन व्यवस्था पर भरोसा है।