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राज्य में न्यायालय से विधानसभा तक खुली, स्वास्थ्य विभाग की पोल

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बिलासपुर, 29 जुलाई 2024। 
छत्तीसगढ़ विधानसभा का यह सत्र बेहद छोटा था। इस छोटे से सत्र में सबसे संवेदनशील मुद्दा जो मानव संसाधन को सीधा प्रभावित करता है, पर सरकार की कलाई दो तरह से खुली। पहला सीएजी रिपोर्ट जो सत्र के अंतिम दिन प्रस्तुत की गई जानबूझकर और 26 जुलाई को बिलासपुर जिला अस्पताल में अवस्था को लेकर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने शासन को कड़ी फटकार लगाई। यह एक स्वत: संज्ञान ली गई जनहित याचिका है। जिस पर 13 अगस्त को सुनवाई होनी है। 
परंपरा अनुसार स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव को हलफनामा प्रस्तुत करना है। स्वास्थ्य विभाग की बादहाली को उजागर करने वाली एक और जनहित याचिका छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस बिलासपुर के संदर्भ में भी है। यह बहुचर्चित जनहित याचिका में हाई कोर्ट के निर्देश पर विभाग के सचिव ने भी 15 दिन तक मेडिकल कॉलेज बिलासपुर में ड्यूटी बजाई पर मेडिकल कॉलेज बिलासपुर की व्यवस्था में वैसा सुधार नहीं हुआ जो अपेक्षित था। बिलासपुर में जो भी सरकारी संस्थान सीधे जनता से जुड़ा है उसे पर हाईकोर्ट की नजर रहती है फिर भी सरकारी व्यवस्था है कि सुधारने का नाम नहीं लेती। मामला केंद्र के संस्थान रेलवे का हो या हवाई जहाज का यहां तक की सड़कों पर भी जनहित याचिका लगी। सीवरेज के आर्थिक घोटाले पर तो हाई कोर्ट ने एक दर्जन से अधिक अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया था नहीं हुई..... इस तरह बिलासपुर स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत एक महिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा की गई वित्तीय अनियमितता पर जनहित याचिका में ही एफआईआर का आदेश था अधिकारी रिटायर हो चुके हैं अभी तक एफआईआर नहीं हुई। सीएजी की जो रिपोर्ट प्रस्तुत हुई है उसे रिपोर्ट में रमन सिंह सरकार और भूपेश बघेल सरकार दोनों कटघरे में खड़े होते हैं। 
देश के तीन चौथाई जिलों में विशेषज्ञ डॉक्टर के पद खाली पड़े हैं सीएचसी में स्पेशल डाक्टरों के तीन चौथाई पद खाली पड़े हैं। रायपुर के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में नियमित कर्मचारियों के 280 पद में से मात्र 9 पद भरे गए 208 पर संविदा कर्मचारी भर दिए गए। आईसीयू में एक बिस्तर पर एक नर्स सच्चाई 20 बिस्तर पर एक नर्स। गैर आईसीयू वार्ड में तीन बिस्तर पर एक नर्स वास्तविकता 39 बिस्तर पर एक नर्स।
आयुर्वेद महाविद्यालय में डॉक्टर के 30 फ़ीसदी की कमी नर्स 60 फ़ीसदी कम जिले के 538 आयुर्वेद औषधालय में 130 पर कोई चिकित्सक नहीं इतने से ही समझ आता है कि छत्तीसगढ़ में मरीजों का इलाज बदहाल क्यों.... रिपोर्ट कहती है 50 करोड़ के उपकरण लगे ही नहीं पूरे प्रदेश में जितने भी दैनिक अखबार बड़े या छोटे प्रकाशित होते हैं उनमें ब्लॉक स्तर से लेकर जिला स्तर तक अस्पताल की सुप्रबंधन रोज समाचार बनता है। ₹400 से लेकर ₹5000 तक की रिश्वत आम बात है। मरीज इसेचड़होत्री मानते हैं यही सच्चाई है। खबर तो यहां तक है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि इस विभाग के भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी या कर्मचारी से अपना हिस्सा नियमित करने के लिए दबाव बनाते हैं।