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नाम के संत ना धर्म कि समझ, ना कानून का ज्ञान

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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। इन दिनों देशभर में जो लोग विभिन्न आयोजन कर किसी एक समूह का समूलनाश करने का आवाहन करते घूम रहे हैं उन्हें धर्म का ज्ञान नहीं है यह तो स्पष्ट है पर उनकी बुद्धि पर तरस इसलिए आता है कि उन्हें कानून का भी ज्ञान नहीं है। भारतीय दंड विधान के पहले अंतरराष्ट्रीय कानून की चर्चा करें नरसंहार पर 9 दिसंबर 1948 में ही अंतरराष्ट्रीय संधि बनी और जिन्होंने इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है उन पर भी यह लागू होती है। आज जो लोग भारत देश में किसी एक समूह को नष्ट करने के लिए हिंसा की बात करते हैं उन्हें यह भी जानना चाहिए कि इस अंतरराष्ट्रीय कानून के सेक्शन 260 ए ।।। और आर्टिकल 2 यह कहता है कि शरीर की हिंसा ही नहीं मस्तिष्क पर चोट भी गैर कानूनी मानी जाएगी जिस तरीके के भाषण दिए जा रहे हैं उनसे समूह विशेष के लोगों के दिमाग पर, मन पर, भावनाओं पर चोट तो लग ही रही है इन दिनों नागरिकों को एक कानून और याद रखना चाहिए जो हमारे संविधान में ही है । 1988 में कानून बना जिसमें लिखा है कि धार्मिक स्थान का राजनैतिक उपयोग नहीं होगा धार्मिक स्थान पर हथियार अस्त्र शस्त्र एकत्र नहीं किए जा सकेंगे और धार्मिक स्थान का उपयोग समरसता को बिगाड़ने के लिए नहीं किया जा सकता किंतु इन दिनों धार्मिक स्थान का राजनैतिक उपयोग बड़े जोर शोर से हो रहा है देश में एक ही संसद है किंतु इन दिनों स्थान स्थान पर संसद के आगे धर्म शब्द लगाकर धर्मसंसद आयोजित की जा रही है जिन्हें इन गतिविधियों पर रोक लगाना है वे ही इन सब को बढ़ावा दे रहे हैं संवैधानिक पदों पर बैठे लोग याद रखें कि उन्होंने संविधान की शपथ ली है जिसके तहत उन्हें संविधान का न केवल पालन करना है बल्कि उसे अछुन भी रखना है। असल में धर्म समस्या नहीं है समस्या है धार्मिक उन्माद जैसे-जैसे धर्म अध्यात्म से दूर होगा वह उन्माद की श्रेणी में फंसता जाएगा जैसा कि इन दिनों हो रहा है हम नागरिकों का यह कर्तव्य है की देश के कंपोजिट कल्चर को समझें और अपने धर्म के उस पक्ष को भी समझें जिसके कारण वह सनातन है उन्माद से बचें और उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाए।