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अस्पताल एक धंधे अनेक चौथी किस्त

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समाचार -
बिलासपुर - आमतौर पर सभी अस्पतालों में एक मंदिर होता है मंदिर नहीं तो किसी एक देवी देवता की तस्वीर लगती है ऐसा माना जाता है कि बीमार व्यक्ति के स्वास्थ्य की चाबी ऊपर वाले के पास ही हैं और डॉक्टर केवल निमित्त मात्र है यह सिद्धांत व्यवहारिक रूप से बहुत अच्छा है किंतु जब अस्पताल परिसर में मंदिर असल में चर्च हो और उस चर्च की गतिविधियां धार्मिक से बढ़कर मतांतर की हो जाए तो यही मंदिर धर्मांतरण का काम करने लगता है और समाज के बीच आलोचना का केंद्र बनता है। मिशन अस्पताल के अंदर जो विश्वासी मंदिर चल रहा है वह इन दिनों मतांतर का केंद्र बन गया है,
पहले जब अस्पताल अपने मूल स्वरूप में संचालित था तब इस स्थान पर मरीजों के तीमरदार इस भावना से मंदिर में खड़े होते थे की परमपिता परमेश्वर उनके परिचित का स्वास्थ्य जल्दी ठीक करेगा इस स्थान से वास्ता रखने वाले कुछ लोग अस्पताल के भीतर भर्ती मरीजों से मिलकर उनके लिए प्रार्थना भी करते थे धीरे धीरे यहीं से मरीजों को अपने धर्म में लाने का खेल शुरू हो गया । अस्पताल में मरीजों की संख्या घटती गई किंतु विश्वासी मंदिर में अब मरीजों के स्थान पर आसपास के लोगों का आना बढ़ गया पहले केवल रविवार की सुबह विशेष प्रार्थना होती थी किंतु अब यह प्रार्थना रोज होती है अब जो नागरिक आते हैं वे आस्था के अतिरिक्त अपनी निजी समस्याएं भी लेकर आते हैं और विश्वासी मंदिर के कर्ताधर्ता पवित्र पानी, झाड़ फूंक और मंत्र उपचार से उनकी समस्याएं खत्म करने का दावा भी करते हैं ऐसा बताया जाता है कि यह सब क्रिया निशुल्क नहीं है देखा भी जाता है की बाहरी लोग मंदिर की संचालन टीम को लिफाफे देते रहते हैं मिशन अस्पताल के बाहर प्रार्थना के पूर्व जो ऑटो वाले लोगों को प्रार्थना के लिए लेकर आते हैं वह बतते हैं कि गृह क्लेश, शराब खोरी छुड़वाना, झाड़-फूंक जैसे परेशानियां वाले लोग अंधशद्धा के साथ आते हैं इस तरह बंद अस्पताल परिसर के भीतर स्थित चर्च जो विश्वासी मंदिर का टैग लगाए हैं इन दिनों मतांतर का केंद्र बना है तो अस्पताल एक धंधे अनेक।