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20 साल से एनटीपीसी के भू-विस्थापित भटक रहे है नौकरी के लिए

बिलासपुर। जिला मुख्यालय से लगे हुए सीपत एनटीपीसी में आज भी भू-विस्थापित अपनी नौकरी के लिए आंदोलन करते है। मार्च 2020 में भू-विस्थापति एनटीपीसी और जिला प्रशासन की त्रिपक्षीय बैठक में कलेक्टर ने एनटीपीसी प्रबंधन को भू-विस्थापितों को नौकरी का प्रकरण शीघ्र निपटाने कहा था। किन्तु सात माह बाद भी एक को भी नौकरी नही प्राप्त नही हुई।

 

प्रबंधन के गेट पर प्रभावित गांव कौड़ियां, जांजी, सीपत, पंधी और रलीया के भू-विस्थापितों ने धरना प्रदर्शन किया। अविभाजित मध्यप्रदेश 1999 से एनटीपीसी के लिए जमीनों का अधिग्रहण शुरू हुआ था। उस वक्त बिजली कारखाने के विरोध में बिलासपुर में बड़ा आंदोलन भी हुआ था। तब उच्च न्यायालय में एक बार स्थगन आदेश भी दे दिया था। आंदोलन कारियों ने एनटीपीसी स्थापना के विरोध में जो संयुक्त मोर्चा बनाया था, उसने लंबी अवधि तक कानूनी लड़ाईयां भी लड़ी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विभाजन के पूर्व जन सुनवाई निपटा ली गई थी। तब देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद जोगी की उपस्थिति में एनटीपीसी को शिलान्यास हुआ था। बिजली घर युपीए के शासन काल में लोकापिर्त हुआ। वर्ष 2014-15 में एनटीपीसी की तीसरी ईकाई का उद्घाटन और लारा एनटीपीसी का शिलान्यास युपीए के शासन काल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और ऊर्जा मंत्री ज्यातिराजे सिंधिया ने किया। उस वक्त मंच पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डाॅ रमन सिंह भी थे। वर्ष 2001 से लेकर अब 20 वर्ष गुजर चुके है। एनटीपीसी अपनी पुरी क्षमता से बिजली उत्पादन करता है। छत्तीसगढ़ की कृषि के लिए विश्व बैंक की मदद से जो बांध बनाए गए उनमें से कृषि के लिए आरक्षित पानी में से सीमा से अधिक भी किया जाता है। बिजली, कोयला, पानी, जमीन सब कुछ लेने के बाद स्थानीय भू-विस्थापितों को दो दशक से नौकरी के लिए रास्ता देखना पड़ रहा है। आंदोलन करना पड़ रहा है। यह तथ्य सभ्य समाज के लिए न्यायोचित स्थिति नही है।