जाने क्या है अटल भू जल योजना
- 24HNBC अटल भूजल योजना-भूजल प्रबंधन पर इस बड़ी योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 दिसंबर 2019 को किया गया. आज हम आपको इस कार्यक्रम और दिशानिर्देशों के बारे में संक्षेप में बताएंगे- साथ ही आप इसके संस्थागत ढांचे, प्रक्रिया और इसमें किन चीजों को शामिल किया गया है किनको नहीं, के बारे में भी जानेंगे, जिनका इस्तेमाल कार्यक्रम के दौरान चुनिंदा राज्यों में किया जाएगा।
- भारत में भूजल की अहमियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत में ग्रामीण इलाकों में लगभग 85 फीसदी और शहरों में 50 फीसदी आबादी भूजल पर निर्भर है। सिंचाई के लिये भी लगभग 65 फीसदी भूजल का ही उपयोग होता है ताकि खाद्य और अन्य कृषि उत्पादों को बढ़ाया जा सके। इतना ही नहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की भी जल संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। हालांकि भूजल के इस अनियमित और बढ़ते अतिदोहन के चलते भूजल स्तर में तेजी से गिरावट आई है। इस समस्या से निपटने के लिये भारत सरकार ने देश के विभिन्न भागों में भूजल प्रबंधन के लिये अहम कदम उठाए हैं।
- अटल भूजल योजना इसी दिशा में ऐसा ही एक संयुक्त कदम है जिसका मकसद देश के 7 चुनिंदा राज्यों के भूजल की कमीं से जूझने वाले क्षेत्रों में बेहतर भूजल प्रबंधन करना है, इन राज्यों में गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। इसके लिये यहां सामुदायिक भूजल प्रबंधन पर आधारित प्रयासों को अपनाया जाएगा. यह अपनी तरह की पहली योजना है जिसमें समुदाय आधारित नियोजन, निगरानी, भूजल डाटा का साझा इस्तेमाल के साथ भूजल प्रबंधन के जटिल विज्ञान को आसान बनाने के लिये सामुदायिक भूजल प्रबंधन भी शामिल है।
- इस योजना को 7 राज्यों के 78 जिलों की 8350 ग्राम पंचायतों में 5 सालों के लिये 2020-2025 तक क्रियान्वित किया जाएगा। 6000 करोड़ की इस योजना में 50 फीसदी फंड विश्व बैंक का और 50 फीसदी भारत सरकार लगाएगी। यह कार्यक्रम अपने आप में अनोखा इस लिये है क्योंकि यह एक तो सामुदायिक भूजल प्रबंधन पर आधारित है, दूसरे इसमें विभिन्न राज्य और केंद्र स्तरीय योजनाओं का सहयोग लिया जाएगा और साथ ही इसमें वित्तपोषण के एक नए तरीके को अपनाया जाएगा- पी फॉर आर (प्रोग्राम फॉर रिजल्ट)– इसमें विश्व बैंक भारत सरकार को तभी फंड देगा जब योजना के समझौता पत्र में लिखित परिणामों को प्राप्त कर लिया जाएगा।.
- योजना के क्रियान्वयन में लगने वाली लागत को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है. पहला-संस्थागत सशक्तिकरण और क्षमता निर्माण- जिसमें हितधारकों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर होने वाले खर्चे शामिल हैं ताकि भूजल गवर्नेंस को सभी स्तरों पर बेहतर किया जा सके और दूसरा प्रोत्साहन राशि, जिसका उद्देश्य राज्यों को ऐसे कदम उठाने के लिये प्रोत्साहित करना है जो भूजल संसाधनों के चिरकाल प्रबंधन को सुनिश्चित करें, सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करें और राज्य और केंद्र की मौजूदा योजनाओं के साथ सहयोग और कन्वर्जेंस सुनिश्चित करें। योजना में ‘चैलेंज मैथड’ भी शामिल है-जिसका मतलब है जो राज्य अपने यहां सही स्थान का चयन करेंगे, तकनीकी और नवाचार को प्रोत्साहन देंगे, सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करेंगे, त्वरित क्रियान्वयन, पारदर्शिता और जवाबदेही को अपनाएंगे उन्हें समय पर धनराशि उपलब्ध करा कर प्रोत्साहित किया जाएगा।
- 6000 करोड़ रू की इस योजना में 4600 करोड़ प्रोत्साहन राशि के रूप में आरक्षित है जबकि शेष 1400 करोड़ संस्थागत सशक्तिकरण और क्षमता निर्माण के लिये रखा गया है। विश्व बैंक द्वारा दी जाने वाली 3000 करोड़ की सहायता राशि पूरी तरह से प्रोत्साहन राशि के रूप में रखी गई है तो वही दूसरी ओर भारत सरकार इसमें 1600 करोड़ का योगदान देगी और संस्थागत क्षमता निर्माण के लिये 1400 करोड़ लगाएगी।
- डिस्बर्समेंट लिंक्ड इंडिकेटर्स (डीएलआई) ऐसे पूर्व निर्धारित परिणामोन्मुखी संकेतक या मानक हैं जिनके पूरा होने के पश्चात ही विश्व बैंक फंड आबंटित करेगा। योजना के दिशानिर्देशों में 2 मुख्य परिणामोन्मुखी क्षेत्रों के लिये 5 डीएलआई का जिक्र किया गया है। पहला परिणाम क्षेत्र है संस्थागत सशक्तिकरण फ्रेमवर्क और प्रभावी भूजल डाटा मॉनिटरिंग जो डीएलआई#1-भूजल संबधी सूचनाएं और रिपोर्ट को सार्वजनिक करना, को पाने की कल्पना करता है; डीएलआई#2 – सामुदायिक जल सुरक्षा योजनाओं को तैयार करना; और डीएलआई#5 – भूजल स्तर में आने वाली गिरावट की दर को सुधारना. दूसरा परिणाम क्षेत्र- भूजल संबंधी क्रियाकलापों के बेहतर नियोजन और क्रियान्वयन है जिसमें डीएलआई#3 – स्वीकृत जल सुरक्षा योजनाओं को विभिन्न मौजूदा और नई योजनाओं के साथ कन्वर्जेंस द्वारा सार्वजनिक वित्त की व्यवस्था करना और डीएलआई#4-- जल उपभोग के प्रभावी तरीकों को अपनाना आवश्यक रूप से शामिल हैं. डीएलआई#4 के क्रियान्वयन के लिये अधिकतम 40 फीसदी राशि इस्तेमाल की जा सकती है।