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हम डूबेंगे और पूरे ब्राह्मणों को ले डूबेंगे
- By 24hnbc --
- Monday, 21 Apr, 2025
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बिलासपुर, 21 अप्रैल 2025।
भारतीय लोकतंत्र की बड़ी खूबी जिसे दक्षिणपंथी भाजपा समाप्त करने पर तुली है वह है चेक एण्ड बैलेंस की परंपरा देश में न्यायपालिका का जो सम्मान है इसका एक बड़ा उदाहरण राष्ट्रपति पद के एक चुनाव में मिलता है। व्ही व्ही गिरी, नीलम संजीव रेड्डी और देशमुख के बीच यह मुकाबल हुआ था तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने तब देश भर के सांसद एवं विधायकों से अपनी अंतरात्मा के आधार पर वोट करने की अपील की और व्ही व्ही गिरी इस चुनाव में जीते इस चुनाव को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई और न्यायालय में व्ही व्ही गिरी को जो राष्ट्रपति बन चुके थे नोटिस कर दिया। वे बयान के लिए कोर्ट पहुंचे बयान रिकॉर्ड कराया हालांकि बाद में यह याचिका खारिज हुई। अब 2025 देश का एक सांसद निशिकांत दुबे इसी सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश को लेकर धार्मिक युद्ध और जाने क्या-क्या का आरोप लगाता है। दुबे जी भाजपा के सांसद हैं उन्होंने कभी अपनी पार्टी के भीतर पार्टी मंच पर यह नहीं बताया कि देश में कहां-कहां धार्मिक युद्ध, गृह युद्ध चल रहा है। सभी लोग बचपन में ऐसी हरकतें करते हैं बदमाशी स्वयं करते हैं आरोप दूसरों पर लगा देते हैं। उम्र के साथ यह आदत समाप्त होती है पर दक्षिण पंथ क्योंकि प्रतिक्रियावादी होता है और पाखंड पर ही चलता है इसीलिए करो खुद और आरोप दूसरों पर लगा दो यह इसका स्थाई चरित्र बन जाता है। रूप बदलने इन्हें खूब आता है, तभी तो देश का संविधान बनते ही उसे खूब जलील किया गया उसके औचित्य और जरूरत पर ही प्रश्न चिन्ह लगाया। निशिकांत दुबे और उन जैसे ब्राह्मण के कारण ही डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 के दिन नागपुर में हिंदू धर्म छोडा और बौद्ध धर्म में प्रवेश कर गए। फिर भी इन ताकतों को उनका पुतला फूकने में शर्म नहीं आई और आज भी वह इसी परंपरा का पालन कर रहे हैं।
वेदों की ओर चलो क्योंकि वहीं से वर्ण व्यवस्था और जाति वाद को चलाया जा सकेगा हमारा संविधान मजबूत रहा तो वर्णव्यवस्था का शासन कैसे बनेगा। न्यायपालिका को भी मीडिया के सम्मान अपने पक्ष में ही चलने वाला बनाने की कोशिश है। सब हिंदू हो जाएं इस पक्ष में भाजपा के नेताओं के बयान आ रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह कह कर की दुबे और शर्मा के बयानों से भाजपा का कोई नाता नहीं है पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता है। जब राज्यपाल और उपराष्ट्रपति ही अपने पद की मर्यादा का पालन नहीं करेंगे तो उन जैसा व्यवहार को अपने लिए कवच बताते हुए कई निशिकांत खड़े हो जाएंगे। इसे कौन रोकेगा निर्वाचित होने के बाद ही शिक्षा और ब्यूरोक्रेसी में अपने ज़रूरत के लोगों को बैठालने के लिए नियम बदले गए। भारतीय शिक्षा बोर्ड बगैर परीक्षा के नौकरशाही में चयन का फार्मूला लाकर दक्षिणपंथी सोच वालो के लिए पूरी व्यवस्था बना दी गई।