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सन् 2002 से चल रहा है छत्तीसगढ़ में डामर घोटाला
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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से डामर घोटाला पर चर्चा शुरू हुई है इस बार उच्च न्यायालय सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं है और उसे दोबारा जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। पहली बार यह मामला एक जनहित याचिका के द्वारा उठाया गया याचिकाकर्ता वीरेंद्र पांडे का कहना है कि प्रदेश भर में 21 सड़कों के निर्माण के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से 1200 करोड़ का कर्ज लिया गया उसमें से 200 करोड़ का घोटाला हो गया। पहली बार यह जनहित याचिका 2014 में दाखिल की गई एक बार निराकृत हो चुकी है और दोबारा उस पर सुनवाई हो रही है असल में छत्तीसगढ़ में डामर घोटाले का आरोप सबसे पहले 2002 में उस समय के कैबिनेट मंत्री नोबेल वर्मा ने लगाना शुरू किया। 2003 में सत्ता परिवर्तन हो गया और डामर घोटाला फिर से सुर्ख़ियों से हट गया। दूसरी बार इस मामले पर कोरबा के आरटीआई कार्यकर्ता अमरनाथ अग्रवाल ने काम करना प्रारंभ किया उन्होंने आरटीआई के माध्यम से दस्तावेज इकट्ठे किए और आरोप लगाया कि पीडब्ल्यूडी विभाग में सड़क निर्माण के लिए 40 फर्जी बिल प्रस्तुत कर 10.33 करोड़ का भुगतान प्राप्त कर लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि बिल भुगतान कराने डामर परिवहन के लिए जिन गाड़ियों का नंबर दर्ज किया गया था वह स्कूटर मोटरसाइकिल व मोपेड के हैं उस समय आरटीआई कार्यकर्ता ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि विभिन्न ने सड़क निर्माण हेतु बी बी वर्मा एंड कंपनी को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 10.77 करोड का कार्य 16 जनवरी 2006 को सौंपा गया था इस काम में कंपनी द्वारा भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड के 21 एवं हीनहोल कंपनी से 19 डामर इमर्शन के छद्म बिल प्रस्तुत कर अन आवेदकों के द्वारा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से ₹10. 33 कडोड़ का भुगतान प्राप्त किया गया निर्माण एजेंसी ने हीनहोल कंपनी विशाखापट्टनम से वर्ष 2006-07 में क्रय किए गए 5 से 10 टन डामर एमल्शन के बीपीसीएल के 21 और हीनहोल कंपनी के 19 छद्म बिल के माध्यम से पैसा निकाला। उस समय आरटीआई कार्यकर्ता ने कोरबा सहित अलग-अलग जिलों के न्यायालयों में वाद दायर किया और कोर्ट के निर्देश पर विभिन्न थानों में कंपनी के विरुद्ध एफआईआर हुआ बाद में इसी संबंधित घोटाले को वीरेंद्र पांडे ने जनहित याचिका के माध्यम से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया। तब कोर्ट ने कार्यवाही के निर्देश के साथ जनहित याचिका का निराकरण किया था। कोर्ट ने जिस तरीके के निर्देश दिए थे उन्हें पर लंबे समय तक कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं हुआ था आत: याचिकाकर्ता ने सरकार की तरफ से की गई कार्यवाही की जानकारी उपलब्ध कराने की मांग की, सरकार ने चीफ जस्टिस अरुप कुमार गोस्वामी की डिविजन बेंच में बताया कि इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए अनुमति दी जा रही है। न्यायालय सरकार के द्वारा प्रस्तुत जवाब से संतुष्ट नहीं हैं उसने कहा कि सरकार उन दस्तावेजों को कोर्ट में फाइल करें जिसमें कार्यवाही करने का उल्लेख किया गया है साथ ही इसकी एक प्रति याचिकाकर्ता को भी उपलब्ध कराई जाए ऐसा माना जाता है कि चुनाव के ऐन पहले 200 करोड़ के डामर घोटाले पर एक बार फिर से सुनवाई शुरू होना सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है क्योंकि जब घोटाला हुआ था तब भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी किंतु इस घोटाले में जिन लोगों ने हाथ साफ किया उनमें से कुछ कांग्रेस के बड़े नेता हैं।