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अब ताली नहीं पीठ लो माथा बिकने वाले हैं सरकारी बैंक

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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। मंदी महंगाई अपने ही निर्धारित लक्ष्य को न पाने के बाद अब केंद्र सरकार देश के मिडिल क्लास की ताबूत में सरकारी बैंकों को बेचकर अंतिम कील ठोकने जा रही है। संसद के मानसून सत्र में यह काम हो जाएगा बैलेंस शीट एडजस्ट करने के नाम पर पहले बैंकों का मर्जन किया गया फिर अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को लोन दिलाएगये एनपीए को रिटर्न ऑफ किया गया जिस इन्वेस्टमेंट का लक्ष्य सरकार ने स्वयं ही 1 लाख 75 हजार करोड़ रुपए रखा था 26 सरकारी कंपनियां बेचने की पूरी तैयारी थी किंतु ऐसा ना होता देख लक्ष्य को पटाकर पहले 1 लाख 65 हजार करोड़ रुपए किया गया। सुबह से शाम तक शाम से दूसरे सुबह तक बेचो बेचो खरीदो खरीदो की आवाज लगाने के बावजूद खजाने में मात्र 13 हजार 561 करोड़ ही आया लक्ष्य को फिर याद करें लक्ष्य था 1 लाख 75 हजार करोड़ सबक सिखा अब लक्ष्य रख लिया गया है 65 हजार करोड़ लेकिन इस बीच 7 सरकारी बैंकों को जो बचे ही हैं बेचने की पूरी तैयारी है वित्त मंत्रालय की फाइल कानून मंत्रालय जा चुकी है बैंकिंग सेक्टर न तो सरकार से संभल रहा है ना आरबीआई से 2014-15 में बैंक का घाटा 0 था उल्टा वे 37 हजार 540 करोड़ के लाभ में थे। 16-17 में 17 हजार करोड़ का घाटा, 17-18 में 85 हजार करोड़ का घाटा और अभी 66 हजार करोड़ का घाटा इस बीच स्टेट बैंक में 19000 कर्मचारि कम हुए । पूरे सरकारी बैंकों में 50000 कर्मचारी कम किए गए हैं। देश में 22 निजी बैंक है जिनकी कुल शाखाएं मात्र 28000 हैं। इसमें से 8 बैंक तो ऐसे हैं जो देश के 7 बड़े शहरों में ही शाखाएं होते हैं देश के भीतर एसबीआई की ही 24000 शाखाएं हैं, पीएनबी की 11,000, केनरा बैंक की 10,000, बैंक ऑफ बड़ौदा की 8500, बैंक ऑफ इंडिया की 5000, यूको बैंक 2377 कुल शाखाओं की संख्या लगभग 60000 है। निज़ी बैंक की शाखाएं मात्र 28000 हैं वह भी शहरी क्षेत्रों में तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कौन किसको और कहां सेवा प्रदान कर रहा है। देश का बैंकिंग इतिहास आईएलएनएफएफ मे डूबे 51 हजार करोड़ और डीएचएफएल में दुबाये गये 40 हजार करोड़ को कभी नहीं भूलेगा। बैंक बेचने के साथ ही रीफार्म का काम पूरा हो जाएगा और देश का मध्यमवर्ग सदा के लिए एक ऐसा जख्म लेकर जिएगा जो ना तो भरेगा ना ही प्लास्टिक सर्जरी से इसे छुपाया जा सकेगा।