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संविधान की पांचवी अनुसूची के कारण संरक्षित है आदिवासी

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बिलासपुर, 9 अगस्त 2023।
आज विश्व आदिवासी दिवस है और दैनिक अखबारों सहित यहां वहां विज्ञापन के मार्फत शुभकामना दी जा रही है। भारतीय संविधान में यदि पांचवी अनुसूची न होती तो भारतीय भूभाग के मूल वनवासी को लोकतांत्रिक अतिक्रमण अब तक समाप्त कर चुके होते। संविधान सभा में 33 एसटी सदस्य थे, एक भूभाग पाकिस्तान के रूप में चिन्हांकित हुआ तो इनकी सदस्य संख्या घटकर 29 हो गई। पांचवी अनुसूची निर्माण के लिए जिन दो उप समितियों को बनाया गया आश्चर्य जनक बात है कि उनमें केवल दो एसटी सदस्य थे फिर भी पांचवी अनुसूची ही है जो बहुमत वाले लोकतंत्र में एसटी वर्ग को रक्षा कवच देती है अन्यथा वर्तमान हालात जहां पर क्रॉनिक पूंजीवाद सत्ता के साथ हाथ मिला चुका है में हमारे जल, जंगल, जमीन चट करने के लिए आतुर हैं। जब हम विश्व आदिवासी दिवस मनाते हैं तो यह केवल इस वर्ग के सांस्कृतिक संरक्षण की बात नहीं है सांस्कृतिक संरक्षण के साथ देश की संपदा का भी संरक्षण है। भारत का संविधान 2 साल 11 महीने 18 दिन 165 दिन की बैठक का परिणाम है और इस संविधान के निर्माण में एसटी वर्ग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांकेर से राम प्रसाद पोटाई वर्तमान झारखंड से जयपाल सिंह मुंडा, बोनी पास लकड़ा, देवेंद्र नाथ सामंत, जेम्स नाथ और मोहन निकोलस की सक्रिय भूमिका रही इनमें से तीन का संविधान पर हस्ताक्षर भी है। रामप्रसाद पोटाई कांकेर से सांसद भी रहे, हर भौगोलिक स्थान पर एक सा कानून प्रशासनिक प्रणाली नहीं चल सकती पांचवी अनुसूची यही बताती है। अभी कुछ ही साल हुए हैं जब पत्थलगड़ी एक आंदोलन के रूप में चला जिसने यह फिर से बताया कि पांचवी अनुसूची के क्षेत्र कुछ विशेष मायने रखते हैं और इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। भारत के संविधान निर्माण में एसटी वर्ग की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता इसे इस भूमिका को वर्तमान संदर्भ में अध्ययन करने और अध्ययन करके आम जनता को बताने की जरूरत है। बिलासपुर का ही उदाहरण ले संभाग में जिले में पर्याप्त उच्च शिक्षा के केंद्र हैं पर एसटी वर्ग के अध्ययन, अध्यापन, शोध के मामले में उच्च शिक्षा की स्थिति उल्लेखनीय नहीं चिंताजनक है। बाजारवाद के दबाव में एंथ्रोपोलॉजी विषय को खारिज कर दिया गया और समाजशास्त्र और सोशल वर्क को बाजार की डिमांड पर आगे बढ़ाया गया शिक्षाविदों को इस षड्यंत्र को समझना चाहिए जिसकी उम्मीद कम है। छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजनीति में सत्ता के कुछ आधार एसटी जनप्रतिनिधियों को अपने षडयंती दिमाग से उपयोग करते हैं। एसटी वर्ग के सदस्यों को चाहिए कि वे इन तौर-तरीकों को वक्त पर समझें उनके कंधे पर स्वयं अपने को संरक्षित करने की जिम्मेदारी तो है ही साथ में धरती की प्राकृतिक संपदा की रक्षा की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधे पर है। छत्तीसगढ़ में यह भूमिका विशेष है।