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1975 रेल मंत्री की हत्या और आनंद मार्गी से उसका संबंध, विवेचना आज भी है जारी
- By 24hnbc --
- Tuesday, 11 Jan, 2022
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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। आज हम जिस कहानी से आपका परिचय करा रहे हैं वह कथानक भारतीय राजनीति कानून, जांच एजेंसी और ऐसे संगठन जो अपने अनुसार व्यवस्था को लागू कराने के लिए जबरदस्ती की हद तक जा सकते हैं जैसे विषय को समेटता है। 3 जनवरी 1975 रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या बिहार समस्तीपुर स्टेशन प्लेटफार्म नंबर 2 पर हो गई। यह हत्याकांड इस मायने में अनूठा है कि सीबीआई ने इस पूरे प्रकरण की जांच की बिहार में निष्पक्ष विचारण नहीं हो सकता था अतः दिल्ली के सेशन कोर्ट में ट्रायल चला 1975 में हुए हत्याकांड पर फैसला 2014 को सुनाया गया लगभग 39 साल यह मामला कोर्ट में चला अभियुक्तों को उम्र कैद की सजा हुई और सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में उन्हें जमानत दी, 20 अगस्त 2021 को दिल्ली हाईकोर्ट ने मृतक ललित नारायण मिश्रा के पोते की याचिका पर सीबीआई को फिर से जांच करने का आदेश दे दिया।
चलिए अब समझते हैं कि 3 जनवरी 1975 के दिन क्या हुआ ललित नारायण मिश्रा उस वक्त के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते थे। देश में राजनीति तनावपूर्ण हो रही थी और बिहार में जयप्रकाश नारायण की नाराजगी लगातार बढ़ रही थी ऐसा माना जाता है कि यदि एलएन मिश्रा की हत्या नहीं होती तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जयप्रकाश नारायण के बीच संवाद की कड़ी एलएन मिश्रा ही होते । 2 जनवरी के दिन एलएन मिश्रा का विमान दिल्ली से उड़ान भरता है और बेहद खराब मौसम के बावजूद पटना में लैंड करता है कहा जाता है कि धुंध इतनी जबरदस्त थी कि पायलट ने लैंडिंग से इनकार किया पर एलएन मिश्रा को किए हुए वादे को पूरा करना अच्छा लगता था लिहाजा उन्होंने खतरे के बावजूद विमान की लैंडिंग करवा ली, 3 जनवरी को उन्हें समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक बड़ी रेल लाइन का लोकार्पण करना था इसका उद्घाटन कार्यक्रम प्लेटफार्म नंबर 2 पर था जो अब प्लेटफार्म नंबर 3 के रूप में जाना जाता है और यहीं पर मिश्रा जी की समाधि भी बनी है। उद्घाटन कार्यक्रम शाम 5:00 बजे के लगभग था पास, इनविटेशन के आधार पर ही कार्यक्रम में आने की अनुमति थी उद्घाटन हो गया और मंत्री महोदय वापस हो ही रहे थे कि किसी ने उनके तरफ हथगोला फेंका बम गिरा फटा और मंत्री सहित 11 लोगों को गंभीर चोट आई जिसमें एलएन मिश्रा के भाई जगन्नाथ मिश्रा और उस समय के एमएलसी सूर्यनारायण के साथ रेलवे के कुछ कर्मचारी भी थे। क्योंकि मामला अति गंभीर था इसलिए घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद तुरंत ट्रेन से पटना रवाना कर दिया गया। अब यहीं से संदेश प्रारंभ होता है घटनास्थल से दरभंगा मेडिकल कॉलेज की दूरी मात्र 40 किलोमीटर थी इसके बावजूद स्पेशल ट्रेन से 132 किलोमीटर दूर पटना क्यों भेजा गया आमतौर पर साधारण स्थितियों में उस समय 132 किलोमीटर की दूरी ट्रेन से तय करने में 5 से 6 घंटा लगता था किंतु उस गाड़ी को पूरा 14 घंटे लगे। पटना पहुंचने के बाद इलाज तो प्रारंभ हुआ पर मंत्री महोदय की जान न बच सकी। पहले आरपीएफ ने एफ आई आर दर्ज की क्योंकि हमला प्लेटफार्म पर हुआ था बाद में यह जांच सीआईडी को दे दी गई और फिर सीबीआई ने जिन लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया उनका नाम लिखने के पूर्व एक संगठन की चर्चा जरूरी है और उसके बारे में समझना भी जरूरी है आनंद मार्गी नाम की संस्था का उन दिनों बड़ा बोलबाला था और बिहार में पीआर सरकार जिसे लोग आनंदमूर्ति बाबा के नाम से जानते थे इसका प्रमुख था। आनंद मार्ग ज्ञान का कैप्सूल डाइट है। वैदिक, नैतिक, तंत्र मंत्र, पोशाक भगवा, साफा और चेहरे पर दाढ़ी यह इनकी ट्रेडमार्क हुआ करती थी। सदविप्रराज चाहे जबरदस्ती करना पड़े आनंद मार्गी प्राप्त करना चाहते थे।
पीआर सरकार आनंदमूर्ति ने इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अवधूत सेना भी बनाई थी और उसे हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी प्राप्त था। 29 दिसंबर 1971 में पटना पुलिस ने पीआर सरकार को हिरासत में भी लिया था तब उस पर उन लोगों की हत्या की साजिश रचने का आरोप था जो संघ को छोड़कर चले गए उसने एक से अधिक बार अपने समर्थकों को यह मैसेज दिया कि तब तक सांत्वना बैठना जब तक उद्देश्य हासिल ना हो जाए। सीबीआई की चारसीट बताती है कि भागलपुर जिले के श्रीमोहन गांव में एक गुप्त मीटिंग हुई जिसमें विनिया आनंद, संतोष आनंद, विश्वेश्वरा आनंद तीनों ही आनंदमूर्ति समर्थक हैं उस मीटिंग में थे और इस मीटिंग में दुश्मनों की जो सूची बनी उसमें पहला नाम माधवानंद, दूसरा ललित नारायण मिश्र और तीसरा अब्दुल गफूर बिहार के मुख्यमंत्री का था। ललित नारायण मिश्रा की हत्या के लिए विनय आनंद उर्फ जगदीश को चुना गया। बम का इंतजाम रामाश्रय प्रसाद ने किया उसने पांच बम का इंतजाम किया था। हत्यारे 1 जनवरी अर्थात नए साल के प्रथम दिन ही बस से पहुंच गए थे साथ में संतोष आनंद, सुदेव आनंद भी थे घटनास्थल पर हत्या की नियत से जो बम फेंके गए उनमें से एक बम नहीं फटा था और इस बम को गेंद समझकर एक 10 साल का बच्चा घर ले गया और खेलते खेलते यह घर पर फटा उससे भी 2 लोग घायल हुए 3 जनवरी के दिन पटना के यू एन आई दफ्तर में हाथ से लिखा हुआ एक पत्र पहुंचा जिसमें प्रिंटेड पर्चा भी था और हत्याकांड की जिम्मेदारी सशस्त्र क्रांतिकारी छात्र संघ ने ली। सीबीआई ने 11000 पेज का चालान प्रस्तुत किया था। मामले की सुनवाई के दौरान 24 जज गए तब कहीं जाकर फैसला हुआ। 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने 1977 में तारगडे जांच आयोग बना दिया था जांच आयोग ने उसी समय यह निष्कर्ष दे दिया था कि सीबीआई आनंद मार्गियों को जबरदस्ती फंसाया जा रहा है ललित नारायण मिश्रा की पत्नी ने भी उस समय के केंद्रीय गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह को एक पत्र लिखा था और कहा था कि उन्हें सीबीआई जांच में भरोसा नहीं इस सब के बावजूद सत्र न्यायालय नई दिल्ली में मुकदमा चला सीबीआई ने 161 गवाह प्रस्तुत किए बचाव पक्ष की ओर से लगभग 40 लोगों की गवाही हुई और आरोपियों को न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई इस कहानी का अंत नहीं लिखा जा सकता है क्योंकि हाईकोर्ट ने 20 अगस्त 2021 को फिर से जांच के आदेश दे दिए हैं। अब इस हत्याकांड को आज की परिस्थितियों के अनुसार समझें 1975 में आनंद मार्गी एक बड़ा नाम था इनकी पोशाक और आज के धर्म सभा में जाकर संविधान को महात्मा गांधी को अपशब्द कहने वाले की वेशभूषा एक जैसी है तब भी ऐसी ताकतें थी जो अपने अनुसार व्यवस्था बनाने के लिए जबरदस्ती करना चाहती थी और वही स्थिति आज भी है हम नागरिकों का कर्तव्य है कि देश को एक रखने के लिए संविधान पर कड़ाई से डटे रहें और संविधान ने सत्ता परिवर्तन का जो विकल्प हमें दिया है उसी का उपयोग करें यही श्रेष्ठ लोकतंत्र है।