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पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड आज क्यों जरूरी है चर्चा .....
- By 24hnbc --
- Tuesday, 14 Dec, 2021
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समाचार - बिलासपुर
बिलासपुर। बिलासपुर को छत्तीसगढ़ के शांत शहरों में से एक माना जाता है इसके बावजूद 19 दिसंबर 2010 की रात्रि दैनिक भास्कर के पत्रकार सुशील पाठक को उनके चटर्जी गली सरकंडा निवास के बाहर मुख्य रोड पर शूटर्स ने गोली मार दी। फायर इतने पास से किए गए थे कि बचने की कोई संभावना ही नहीं थी सुशील की मृत्यु घटनास्थल पर ही हो गई यह घटना कोई आम घटना नहीं थी दैनिक भास्कर शहर का ही नहीं देश का नाम किन अखबार है और मृतक बिलासपुर प्रेस क्लब का सचिव भी था इस नाते शांत शहर में बवाल तो होना था हुआ भी तत्कालीन एसपी और उनका महकमा घटना की संवेदनशीलता को समझ रहा था लिहाजा तुरंत सक्रिय हुआ उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद दाह संस्कार भी हो गया। राज्य में भारतीय जनता पार्टी का शासन था मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह थे और शहर के विधायक अमर अग्रवाल स्वयं कैबिनेट मंत्री थे इतना ही नहीं इसी शहर से विधानसभा अध्यक्ष भी थे लिहाजा प्रशासन पर दबाव भी था पुलिस ने आनन-फानन में एक ऐसी गलती की जिसके कारण यह प्रकरण आज भी अनसुलझा है पहले बादल खान नाम के व्यक्ति को हिरासत में लिया गया फिर उसके बयान के आधार पर अरपा नदी में हत्या में प्रयुक्त हथियार ढूंढने का शो हुआ मिलना जुलना कुछ था नहीं किंतु दिखाने के लिए काफी देर नाटक चला । इस बीच में पत्रकारों ने धरना प्रदर्शन भी प्रारंभ कर दिया था 2011 में विधानसभा सत्र के दौरान डॉक्टर रमन ने जो कि मुख्यमंत्री थे ने नेता प्रतिपक्ष जो कि कांग्रेस से थे को भरोसा दिया की मृतक पत्रकार के हत्यारों को बक्सा नहीं जाएगा न्याय होगा और मामला सीबीआई जांच के लिए अनुशंसित कर दिया इधर पुलिस जिसे हत्या का आरोपी बता रही थी बादल खान के खिलाफ 90 दिन में भी चालान लेकर नहीं गई लिहाजा उसे डिफॉल्ट जमानत प्राप्त हो गई कहने वाले तो यहां तक दावा करते हैं कि बादल खान का अंदर जाना चालान प्रस्तुत न होने पर बाहर आ जाना के पीछे भी अच्छी खासी डील हुई थी क्योंकि मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था लिहाजा सीबीआई के जांच दल ने बिलासपुर सर्किट हाउस कमरा नंबर 1-2 को अपना ऑफिस बना लिया दर्जनों लोगों से पूछताछ का क्रम चला तब अखबारों में एक ही चर्चा होती थी आज किस का बयान हुआ सीबीआई ने कई पत्रकारों से भी पूछताछ की कारण यह था कि मृतक पत्रकार पहले क्राइम बीट भी देखा करता था उसे एसईसीएल, कोल कंपनी के समाचारों को कवर करने की जिम्मेदारी भी थी और इस सब के साथ वह कोल धंधे के परिवहन में भी शामिल था पैतृक जमीनों का विवाद भी कई बार चर्चा में आया लिहाजा शहर के हर उस पत्रकार से पूछताछ हुई जो कोयला और जमीन के धंधे में शामिल था इसी दौरान सीबीआई का वह जांच दल जो इस मामले की जांच कर रहा था उसका अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक डीके राय कॉन्स्टेबल लक्ष्मी नारायण और एक अन्य स्वतंत्र व्यक्ति तपन गोस्वामी को सीबीआई ने ही रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार कर लिया रामबहादुर नारंग नाम के व्यक्ति ने शिकायत की थी कि जांच दल का अधिकारी बार-बार बयान के लिए बुलाता है और हत्याकांड में शामिल न होने के लिए 2 लाख रुपये की रिश्वत मांगता है मंदिर चौक स्थित एक अपार्टमेंट में छापा मारा गया 2 लाख रुपये जप्त भी बताए गए और 3 लोगों को हिरासत में लिया गया यहीं से एक बार सीबीआई की जांच टीम बिखर गई और उसकी प्रतिष्ठा पर जो धब्बा लगा वह हमेशा शहर की जनता को याद रहेगा। लोग कहते हैं कि सीबीआई देश की श्रेष्ठ जांच एजेंसी है किंतु छत्तीसगढ़ में आरोपी इतने शातिर हैं कि सीबीआई को उन्होंने एक बार नहीं तीन बार मात दी है और मौत भी इस तरह से की सीबीआई की ही बदनामी हुई रिश्वत कांड के जंजाल से मुक्ति पाने के बाद सीबीआई ने रामबहादुर नारंग, राजेश ठक्कर जिन्हें आरोपी बनाया गया था और जिनके विरुद्ध 302, 301, 25, 27 आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था उस मामले में सीबीआई विशेष अदालत रायपुर में क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी । सीबीआई ने 5 साल तक जांच की और मामला हल नहीं हुआ 30 सितंबर 2018 को विशेष न्यायाधीश सीबीआई पंकज जैन ने क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली इस बीच में बिलासपुर प्रेस क्लब और मृतक की पत्नी की ओर से हाईकोर्ट में रिट पिटिशन भी लगी जिसमें कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई ने बंद लिफाफे में रिपोर्ट भी प्रस्तुत की अभी भी यह रिट पिटिशन निराकृत नहीं हुई है। 19 दिसंबर 2010 के हत्याकांड को 10 वर्ष से अधिक हो चुका किंतु बिलासपुर के पत्रकारों को, मृतक पत्रकार की पत्नी को, उसकी एक बच्ची को आज तक यह पता नहीं चला कि हत्यारे कौन थे। आज इस घटनाक्रम को फिर से लिखने का एक कारण यह भी है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है जो उस समय मुख्यमंत्री था आज विपक्ष में बैठा है और नेता प्रतिपक्ष जो पहले विधानसभा अध्यक्ष थे वे ही हैं जो आज मुख्यमंत्री हैं वो 2010 में विपक्ष में थे केवल भूमिकाएं बदली है पर प्रश्न वहीं के वहीं हैं क्या कोई विधायक इस सत्र में शून्यकाल के दौरान इस मसले को उठाएगा जब तक सत्र चल रहा है हम सुशील पाठक हत्याकांड के अन्य पहलुओं पर पाठकों को जानकारी उपलब्ध कराते रहेंगे।