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कैथोलिक वर्ग के स्कूलों में भी जमकर हो रही अनियमितता

आरोपी लिपिक का निलंबन और बहाली पर आदेश दिखाने से इनकार

24hnbc.com
बिलासपुर, 30 सितंबर 2024। 
भारत माता उच्चतर माध्यमिक शाला में कार्यरत शिक्षकों को शासकीय अनुदान वाली नौकरी के नाम पर 15 लाख की धोखाधड़ी हुई थी। स्कूल के लिपिक ग्लोरियो खलको को न्यायालय से राहत मिली और उन्हें अग्रिम जमानत मिल गई। पर स्कूल प्रबंधन में उन्हें निलंबित कर दिया है। निलंबित करने वाले पदाधिकारी इस बात का जवाब नहीं देते कि कर्मचारियों को 15 लाख वसूली के लिए निलंबन किया गया, या कार्य से अनुपस्थित रहने के कारण। भारत माता स्कूल का यह मामला कुछ दिन पहले तब चर्चा में आया जब स्कूल में नौकरी करने वाले अभिजीत दास, गौरव मिश्रा, मुकेश कश्यप एवं स्मिता श्रीवास्तव ने स्कूल के मुख्य लिपिक ग्लोरियो खलको के विरुद्ध थाना तारबहार में शिकायत करवाई और पैसा लेकर काम नहीं करने की बात कही। 
पुलिस ने लिपिक और उसके पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। बाद में लिपिक को अग्रिम जमानत मिल गई और दूसरी ओर शाला प्रबंधन ने उसका निलंबन कर दिया। और कुछ ही दिन बाद बहाली कर दी।
 इन दिनों शहर की ईसाई शिक्षण संस्थाओं का बुरा दौर चल रहा है। एक तरफ बर्जेस स्कूल में एनसीईआरटी के स्थान पर निजी प्रकाशक की पुस्तक, फीस बढ़ोतरी, यूनिफॉर्म में बदलाव की शिकायत है तो दूसरी ओर भारत माता जैसे प्रतिष्ठित शाला में नौकरी लगाने के नाम पर पैसा खा लेने का मामला चर्चा में है।
प्रबंधन कोटे और अनुदानित कर्मचारी की वेतन के बीच जमीन आसमान का अंतर है। प्रबंधन कोटे का कर्मचारी यदि 10000 प्रति माह पर है तो अनुदान खंड वाला व्यक्ति 80 से 90000 रुपया प्रति माह पता है। काम की दृष्टि से देखे तो प्रबंधन कोटे वाले पर काम का दबाव अधिक है। क्योंकि उसे नौकरी चल जाने का डर भी है। 
जिन शिक्षकों से लिपिक ने पैसा लिया था उनका कहना है कि प्रत्यक्ष तो नहीं अप्रत्यक्ष दबाव जरूर डाला जाता है। हमने लिपिक के निलंबन और बहाली आदेश की कॉपी मांगी थी, पर अभी तक दिखाई नहीं गई। लिपिक के ऊपर जिस तरह के गंभीर आरोप हैं। उसकी बहाली के बाद उसे इसी स्थान पर रखना सीधा संकेत है कि प्रबंधन का लिपिक के साथ कुछ विशेष संबंध है। 
इन दोनों ईसाई शैक्षणिक संस्थाओं की जिस स्तर पर शिकायतें आ रही है कोई बड़ी बात नहीं की कैथोलिक वर्ग का यह शिक्षा समिति छत्तीसगढ़ में जिन 22 स्कूलों का प्रबंध करता है में भी बड़ी वित्तीय अनियमितता हो। प्रबंधन के कर्मचारियों की संख्या इतनी तो है ही की वे ईपीएफ के दायरे में आए, पर ऐसा है नहीं सब मैनेजमेंट कोटे के कर्मचारी ईपीएफ कोटे में नहीं आते। साथ ही कुछ गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को तो कलेक्टर दर का वेतन मान भी नहीं मिलता।